अंतिम सांसें गिन रहा नक्सलवाद

साल 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती बताया था लेकिन अब नक्सलवाद का दायरा कम हो रहा है। गृह मंत्रालय ने 31 मार्च 2026 नक्सल की समस्या के समूल नाश की डेडलाइन तय की है। इस परिणाम यह है कि 2013 में कई राज्यों के 126 ज़िलों में फैला नक्सलवाद अब महज कुछ ही ज़िलों में अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। नक्सल की समस्या को 2026 तक जड़ से खत्म करने का गृहमंत्री अमित शाह ने देश की जनता से वादा भी किया है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2025 में 836 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और 1,639 नक्सली आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में शमिल हो गए। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों में एक पोलित ब्यूरो सदस्य और एक केंद्रीय समिति सदस्य शामिल हैं।
हाल ही में, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में 200 से ज्यादा नक्सलियों और माओवादियों ने सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। बीते 2 अक्तूबर को बस्तर क्षेत्र के बीजापुर ज़िले में 103 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। 14 अक्तूबर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में शीर्ष माओवादी नेता भूपति समेत 61 माओवादियों ने समर्पण किया। छत्तीसगढ़ के सुकमा और कांकेर ज़िलों में भी 78 माओवादियों ने हथियार डाले। 17 अक्तूबर को छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में 208 नक्सलियों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उप-मुख्यमंत्री विजय शर्मा के सामने आत्मसमर्पण किया। इनमें केंद्रीय समिति के सदस्य रुपेश समेत कई बड़े नेता शामिल थे। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक, साल 2000 से 2025 के बीच माओवाद से जुड़ी हिंसा में 4,944 माओवादियों, 2,717 सुरक्षाकर्मियों, 4,128 नागरिकों और 252 अज्ञात लोगों सहित कुल 12,041 लोगों की मौत हुई है।  
भारत में नक्सलवाद की चिंगारी साल 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से भड़की थी। सिलीगुड़ी में सीपीआई (एम) के कट्टरपंथी धड़ों ने जमींदारों के खिलाफ कर्ज में डूबे आदिवासियों और भूमिहीन किसानों के साथ मिलकर अभियान शुरू किया। 25 मई को पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर की तीर-कमान से हत्या कर दी गई। पुलिस की गोलीबारी में आठ महिलाओं, दो बच्चों और एक पुरुष की मौत हुई। इसके साथ ही सशस्त्र संघर्ष फैलना शुरू हुआ और चीन की मीडिया ने इसे ’स्प्रिंग थंडर ओवर इंडिया’ करार दिया। इससे दो साल पहले एक स्थानीय सीपीआई(एम) नेता चारू मजूमदार ने गुरिल्ला युद्ध के जरिए इंडियन स्टेट को उखाड़ फेंकने के मकसद के साथ ’आठ दस्तावेज’ तैयार किए। कानू सान्याल व जंगल संथाल के साथ मिलकर उन्होंने शुरुआत में नक्सलबाड़ी आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन बाद में श्रीकाकुलम, तेलंगाना, बिहार समेत दंडकारण्य के जंगलों तक फैल गया। यह आंदोलन भले ही स्थानीय मुद्दों से जुड़ा हुआ था, लेकिन इसका राजनीतिक लक्ष्य कहीं बड़ा था: चीन के उदाहरण को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र क्रांति के जरिए सत्ता पर कब्जा करना। सीपीआई(एम) के रेडिकल धड़े ने अपना आधार बढ़ाने के लिए आदिवासियों की शिकायतों पर ध्यान केंद्रित किया। साल 2004 में, पीपुल्स वार व एमसीसी का विलय होकर सीपीआई (माओवादी) का गठन हुआ। उसी साल अक्तूबर में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी ने शांति वार्ता की मेजबानी की और माओवादी नेताओं को राज्यातिथि के रूप में रखा। हालांकि ये वार्ता विफल रही और दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे पर अपने फायदे के लिए लाभ उठाने का आरोप लगाया। जैसे-जैसे माओवादी जनता का आधार खोते गए, वैसे ही उनका सामाजिक-आर्थिक एजेंडा भी सार्वजनिक विमर्श में बेमानी होता चला गया।  
कुछ विशेष क्षेत्र अभी भी नक्सलियों के प्रभाव में हैं। सरकार और सुरक्षा बल इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिससे उम्मीद है कि जल्द ही पूरे देश से नक्सलवाद का पूरी तरह से सफाया हो जाएगा। ऐसे में सरकार मार्च, 2026 तक अपना लक्ष्य हासिल कर सकती है। वहीं वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों की श्रेणी में यह संख्या 18 से घटकर केवल 11 रह गई है। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित इन 11 ज़िलों में बीजापुर, दंतेवाड़ा, गरियाबंद, कांकेर, मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, नारायणपुर और सुकमा (सभी छत्तीसगढ़), पश्चिमी सिंहभूम (झारखंड), बालाघाट (मध्य प्रदेश), गढ़चिरौली (महाराष्ट्र) और कंधमाल (ओडिशा) शामिल हैं। इनमें तीन सर्वाधिक प्रभावित ज़िले में भी शामिल हैं। छत्तीसगढ़ में केवल बीजापुर, सुकमा व नारायणपुर ही वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से सबसे ज्यादा प्रभावित ज़िले हैं। इन ज़िलों की लालबंदी तोड़ना बहुत मुश्किल नहीं है, क्योंकि सुरक्षा बलों को नक्सलियों की मोर्चेबंदी का पूरा ज्ञान हो चुका है। इससे यह भी साबित हो गया है कि नक्सलवाद को खत्म करना असंभव नहीं था, जैसा कि पहले की कांग्रेस नेतृत्व की यूपी, सरकार नाटक करती रही।   प्रधानमंत्री मोदी ने एक सार्वजनिक मंच से कहा है कि बीते 75 घंटे में 303 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, यह कोई सामान्य घटना नहीं है। प्रधानमंत्री ने नक्सली माओवाद पर अपनी पीड़ा और सरोकार भी व्यक्त किया है कि उन भटके हुए नौजवानों ने देश का विकास अवरुद्ध किया है। नक्सलियों ने स्कूल, अस्पताल तक नहीं बनने दिए। वे सड़क-निर्माण के खिलाफ रहे। फिर भी एक ‘शहरी नक्सली’ जमात ने उन आतंकियों को समर्थन दिया और उनकी पैरोकारी करती रही। सरकार को ऐसी ताकतों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो देश की तरक्की में बाधा बनते हों। और हिंसा का किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र में आपसी बातचीत और सहमति से व्यवस्था चलती है।

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