मामला मतदाता सूची का

नैतिकता की पुकार और मर्यादा का स्तर भूल कर आज राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर कीचड़ उछालने लगी हैं जोकि अवाम के लिए परेशान करने वाला और दु:खद कार्य है। ऐसे में समाधान तलाशने की ज़रूरत पर पानी फिर जाता है। पहले समझ लिया जाये कि मतदाता सूचियों का अपडेशन होता कैसे है। इसमें से सैकड़ों लोग (स्त्री-पुरुष) ऐसे हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में चुनाव प्रक्रिया की ड्यूटी का निर्वाह किया है। काम निर्वाचन आयोग का ही है।
 कायदे के अनुसार उनकी ज़िम्मेदारी है कि घर-घर सर्वेक्षण और वार्षिक पुनरीक्षण करके मतदाता सूची को ठीक और पूरा करें, अपडेशन का यह कार्य आयोग द्वारा प्रत्येक राज्य में स्थित उनके दफ्तर द्वारा सम्पन्न किया जाता है। 
स्थानीय निकाय इसमें मदद करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि हर घर का क्रमांक होना चाहिए। सर्वेक्षकों के पास पहले किए सर्वे का डेटा दर्ज होता है। घर-घर सर्वे किया जाता है। किसी सदस्य के गुज़र जाने या नए मतदाता के नाम को लेकर काटने-जोड़ने का काम किया जाता है। इस प्रकार पहले की सूची में संशोधन और बदलाव का कार्य पूरा होता है। इस प्रक्रिया की सुपरवाइजर जांच करते हैं। बदलाव का प्रदर्शन सार्वजनिक स्तर पर होता है, लेकिन इस पूरी सावधानी के बावजूद इसे नागरिकता का प्रमाण-पत्र नहीं माना जाता।
इसे समझा जा सकता है कि हमारे यहां कोई खास शरणार्थी कानून नहीं है। क्योंकि भारत ने 1931 की शरणार्थी संधि या 1967 के प्रोटोकाल पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। जबकि नैतिकता के आधार पर भारत ने कई बार शणार्थियों को आश्रय दिया है। दलाईलामा का उदाहरण बहुत चर्चित है। ऐसे केस को गृह मंत्रालय देखता है और निश्चित करता है कि कौन वैध है या अवैध है। घर-घर सर्वे में ऐसे मामलों में सन्देह की जगह है, जिसे निश्चित करने का कार्य भी गृह मंत्रालय ही करता है। इस प्रक्रिया में कई बार समय लग जाता है क्योंकि दस्तावेज़ देखने होते हैं और आसपास के लोगों से पूछताछ करनी होती है। सावधानी की ज़रूरत रहती ही है।
इस समय विपक्ष द्वारा जो प्रदर्शन रैलियां, टी.वी. में बहस सत्ता पक्ष को चुनौती देने के ढंग पर की जा रही है उसमें यह देखना ज़रूरी है कि नागरिकता के प्रमाण के मामले में उन विसंगतियों की जांच की ज़रूरत है, जिनमें भेदभाव है, एक ही घर में बहुत से मतदाता के होने का सवाल है। रिपोर्ट न की गई या गलत मौतों को दिखाया गया है। बहुत से लोग फिक्रमंद हैं कि डिजिटल स्मार्ट भारत में, जिस पर भारत के नेता गर्व करते हैं, ऐसी विसंगतियों से जूझना पड़ रहा है। 
विपक्ष के नेता राहुल गांधी बार-बार ऐसे बयान जारी कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने वोट चोरी की है, जोकि संविधान के खिलाफ है और वह यह चोरी होने नहीं देंगे। बिहार चुनाव आने वाला है। इसलिए बिहार में उन्होंने मोर्चा खोल रखा है और तेजस्वी यादव उनका भरपूर साथ दे रहे हैं। 
इस मामले को जितना पेचीदा बना दिया गया है उतना है नहीं। इसे राजनीतिक मसले को तौर पर भी नहीं देखना चाहिए। जैसा कि पक्ष और विपक्ष के गरमागर्म बयानों और तीखे तेवर से नज़र आ रहा है। होना यह चाहिए कि मतदाता सूची में जहां भी जो भी गड़बड़ नज़र आती है, उसे प्रमाण आधारित दस्तावेज़ों के ज़रिये ठीक किया/करवाया जाये, लेकिन यहां तो मामला उच्चतम न्यायालय तक ले जाया गया है। सुधार के लिए ग्राम चौकीदार, ग्राम पंचायत, नगर पंचायत को विसंगतियों को जांचने के काम में शामिल किया जा सकता है।

#मामला मतदाता सूची का