परिवारवाद, भ्रष्टाचार और जातिवाद में घिरे चुनाव

लम्बी हिचकिचाहट के बाद अंतत इंडियन ब्लाक द्वारा तेजस्वी यादव के भावी मुख्यमंत्री होने की घोषणा कर दी गई है। इससे पहले कांग्रेस सहित महागठबंधन की पार्टियों में सीटों के विभाजन को लेकर भी बड़ी कशमकश चलती रही है। बिहार की राजनीति में बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं, जिनका कोई संतोषजनक हल निकाल पाना बेहद कठिन है। इस प्रदेश की राजनीति बड़ी सीमा तक जातिवाद के स्तम्भों पर खड़ी दिखाई दे रही है और जातियां-दर-जातियां भी उलझन में ही उलझी रही हैं। आज भी बिहार को खुशहाल प्रदेश नहीं माना जाता। लालू प्रसाद यादव के 10 वर्ष के शासन को प्रत्येक पक्ष से जंगल राज ही माना जाता रहा है। उनके समय में भ्रष्टाचार शिखर पर था और इससे भी ऊपर परिवारवाद का ही डंका बजता था। इसलिए आज भी चाहे लालू प्रसाद तो  एक तरह से राजनीति से अलग हुए दिखाई देते हैं, परन्तु उनके परिवार पर लगातार परिवारवाद और भ्रष्टाचार को लेकर उंगलियां उठती रही हैं।
तेजस्वी यादव को अब महागठबंधन द्वारा मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने से परिवारवाद और भ्रष्टाचार के दोनों मुद्दे उछालने के लिए भाजपा और महागठबंधन की अन्य विपक्षी पार्टियों को बड़ा अवसर मिल जाएगा, क्योंकि लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव आज भी तरह-तरह के भ्रष्टाचार के मामलों में उलझे कचहरियों के चक्कर काट रहे हैं। लालू प्रसाद यादव कई मामलों में ज़मानत पर हैं, परन्तु अब तक वह लम्बी सज़ा भी काट चुके हैं। ऐसी स्थिति में अब तेजस्वी यादव ने अपना यह  संकल्प भी ज़रूर प्रकट किया है कि वह भ्रष्टाचार के मामले में किसी तरह का कोई समझौता नहीं करेंगे। उनकी उम्र चाहे 35 वर्ष है परन्तु अब तक वह दो बार कुछ-कुछ समय के लिए उप-मुख्यमंत्री के पद पर ज़रूर रह चुके हैं। 
दूसरी तरफ नैशनल डैमोक्रेटिक फ्रंट (एन.डी.ए.) ने चाहे अब तक स्पष्ट रूप में नितीश कुमार को अपना सम्भावित मुख्यमंत्री नहीं घोषित किया, परन्तु चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के प्रभावशाली नेता अमित शाह ने ज़रूर यह कहा है कि एन.डी.ए. नितीश कुमार के नेतृत्व में ही यह चुनाव लड़ेगा और वही बिहार के प्रभावी राजनीतिज्ञ हैं, परन्तु क्या इस बार मुख्यमंत्री का गुणा नितीश कुमार पर पड़ेगा? इस संबंध में अभी भी विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। विगत लम्बी अवधि से भाजपा का बिहार की राजनीति पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है। उदाहरणतया विगत 2020 के विधानसभा चुनावों में भाजपा 110 सीटों पर लड़ी थी, जिनमें से उसे 74 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 19.46 था।
दूसरी तरफ नितीश कुमार की जनता दल (यू) ने 43 सीटों पर ही जीत हासिल की थी और उसकी वोट प्रतिशतता 15.39 थी। इस बार चाहे ये दोनों पार्टियां बराबर 101 और 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं परन्तु इस समय नितीश के स्वास्थ्य संबंधी सवाल भी उठे हैं और उन परअवसरवादी राजनीतिज्ञ होने का आरोप भी लगता रहा है। चाहे इस बार एन.डी.ए. को इस बात का लाभ ज़रूर हुआ है कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी एन.डी.ए. की एक सहयोगी पार्टी के रूप पर चुनाव लड़ रही है। पिछली बार चिराग पासवान ने अपनी पार्टी द्वारा ज्यादातर उम्मीदवार उतार कर नितीश कुमार को भारी नुक्सान पहुंचाया था। परिवारवाद, भ्रष्टाचार और जातिवाद में उलझी बिहार की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो निकट भविष्य में होने जा रहे चुनावों में ही पता चलेगा, क्योंकि इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी मैदान में है और वह अपना कितना प्रभाव दिखाने में सफल होती है और यह भी कि उसके मैदान में आने से वोट प्रतिशत पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह भी देखने वाली बात होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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