उनका है तो परिवारवाद, इनका है तो समाजवाद ?
गत दिनों लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान अपनी सरकार की उपलब्धियां तो कम गिनाईं परन्तु विपक्ष पर अधिक हमलावर रहे। उन्होंने एक बार फिर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी व राहुल गांधी पर निशाना साधा। कांग्रेस पार्टी पर परिवारवादी राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि देश ने जितना परिवारवाद का खमियाज़ा उठाया है, खुद कांग्रेस ने भी उसका उतना ही खमियाज़ा उठाया है। सदन में ही जब कांग्रेस की ओर से भाजपा में फलते फूलते परिवारवाद पर सवाल किया गया तो मोदी ने कहा कि उनके लिए परिवारवाद का मतलब एक ही परिवार के कई लोगों के राजनीति में आने से नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अगर किसी परिवार में अपने बलबूते पर व जनसमर्थन से एक से अधिक लोग राजनीतिक क्षेत्र में भी प्रगति करते हैं, उसको हमने कभी परिवारवाद नहीं कहा है। हम उस परिवारवाद की चर्चा करते हैं, जब पार्टी को परिवार चलाता है, जो पार्टी परिवार के लोगों को प्राथमिकता देती है, पार्टी के सारे निर्णय परिवार के लोग ही करते हैं, वह परिवारवाद है। न राजनाथ सिंह की कोई राजनीतिक पार्टी है न अमित शाह की कोई राजनीतकि पार्टी है। यानी प्रधानमंत्री ने नेहरू-गांधी परिवार पर हमला बोलने की सुविधाजनक परिभाषा गढ़ डाली। अमित शाह व राजनाथ सिंह का नाम लेकर उन्हें सदन में इसलिये सफाई देनी पड़ी क्योंकि कांग्रेस और कई विपक्षी नेता अक्सर यह सवाल करते हैं कि गृह मंत्री अमित शाह के पुत्र जय शाह बीसीसीआई के सचिव से लेकर एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के अध्यक्ष तक किस आधार पर बन जाते हैं? विपक्ष पूछता है कि जय शाह के पास अमित शाह का पुत्र होने के अतिरिक्त ऐसी कौन सी योग्यता है जिसके आधार पर उन्हें इतने महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त मनोनीत या निर्वाचित कराया जाता है? इसी तरह राजनाथ सिंह के एक पुत्र जहां भाजपा से विधायक हैं, वहीं दूसरे भी किसी महत्वपूर्ण पद पर आसीन हैं।
मोदी ने परिवारवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुये अपनी ही पार्टी के अनुराग ठाकुर, पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, वसुंधरा व ज्योतिरादित्य सिंधिया, देवेंद्र फडनवीस, जतिन प्रसाद, आर. पी. एन. सिंह, राव इंदरजीत सिंह व किरण रिजिजू जैसे उन अनेक नेताओं का बचाव किया जो अपनी पैतृक राजनीति के ही प्रतीक हैं। परन्तु प्रधानमंत्री के अनुसार जो पार्टी एक परिवार चलाता है, जो पार्टी परिवार के लोगों को प्राथमिकता देती है, जिस पार्टी के सारे निर्णय एक ही परिवार के लोग करते हैं, ऐसे दलों व नेताओं के परिवारवाद का देश ने खमियाज़ा उठाया है? तो प्रधानमंत्री को यह भी बताना चाहिये कि 2014 तक भाजपा का जिस बाल ठाकरे व उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में 25 वर्षों तक गठबंधन रहा और महाराष्ट्र में अनेक लोकसभा व विधानसभा चुनाव भाजपा-शिवसेना मिलकर लड़े, वह परिवारवादियों से समझौता था या नहीं? इसी तरह जो शिरोमणि अकाली दल (बादल) परिवार की पार्टी है और किसान आंदोलन से पूर्व दशकों तक भाजपा की सहयोगी रही है। उसका परिवारवाद प्रधानमंत्री की परिभाषा से कैसे अलग है? इसी तरह भाजपा जब चाहे तब हरियाणा में एक ही परिवार की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल से समझौता कर सकती है। आज भी भाजपा हरियाणा में जिस जननायक जनता पार्टी (जे जेपी) के साथ सत्ता की साझेदार है, वह भी एक ही परिवार की पार्टी है। इसी तरह भाजपा जब चाहे कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद की पारिवारिक पार्टी पीडीपी से समझौता कर सकती है? बिहार में राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी क्या परिवारवाद की पार्टी का प्रतीक नहीं? कर्नाटक में भाजपा परिवारवादी राजनीति करने वाले येदियुरप्पा के हाथों में क्यों खेलती है? इसी तरह के और भी कई परिवारवादीदल हैं जिनसे भाजपा गठबंधन करने में परहेज़ नहीं करती। सवाल यह है कि जब प्रधानमंत्री कहते हैं कि परिवारवाद का देश ने खमियाज़ा उठाया है। फिर आखिर उन्हीं की परिभाषा वाले ‘परिवारवादियों’ से भाजपा के गलबहियां करने का अर्थ व औचित्य क्या है?
दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा नेताओं को कांग्रेस व कांग्रेस सहयोगी दलों में ही सारा परिवारवाद नज़र आता है। इन्हें केवल राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव जैसे नेता ही परिवारवादी राजनीति के प्रतीक नज़र आते हैं। उन्हें राहुल गांधी की परिवारक कुंडली तो नज़र आती है परन्तु उनका कन्याकुमारी से कश्मीर व मणिपुर से मुंबई तक की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ नज़र नहीं आती? लालू यादव व मुलायम सिंह यादव की सामाजिक न्याय की वजह से भी भाजपा उनकी पार्टी की वैचारिक विरोधी है जिसके चलते इन पर परिवारवाद का आरोप लगाती है। पिछले दिनों भाजपा द्वारा लाल कृष्ण आडवाणी को ‘भारत रत्न’ देकर उन्हें हाशिये पर धकेलने का पश्चाताप किया गया। भाजपा के विपक्ष का परिवारवाद तो परिवारवाद दिखाई देता है परन्तु अपना परिवारवाद समाजवाद नज़र आता है।




