शिव सेना की विरासत के लिए जारी है संघर्ष

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव अभियान अपने चरम पर है। भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को कड़ी टक्कर देने के लिए ‘इंडिया’ गठबंधन महाराष्ट्र पर भरोसा कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र को जीतने और ‘अब की बार 400 पार’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए अपने नाम और चेहरे पर भरोसा कर रहे हैं। महा विकास अघाड़ी को उम्मीद है कि उन्हें मतदाताओं का समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके ‘अवास्तविक सपने’ से वंचित कर देगा। महाराष्ट्र के 48 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए 20 मई को पांचवां चरण आखिरी है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला शिवसेना गुट, दोनों ही बाला साहेब ठाकरे के सच्चे उत्तराधिकारी होने का दावा कर रहे हैं। दोनों मुम्बई पर राजनीतिक कब्ज़ा चाहते हैं। उद्धव ठाकरे भी नियंत्रण खोने का जोखिम नहीं उठा सकते।
यह तब है जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो गुट—एक का नेतृत्व शरद पवार और दूसरे का नेतृत्व उनके भतीजे अजीत पवार कर रहे हैं, भी राज्य की राजनीति में अपनी-अपनी प्रासंगिकता के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। महाराष्ट्र के चुनाव पर नज़र रखने वालों के लिए परिणाम पर अटकल लगाना भी मुश्किल हो गया है। महाराष्ट्र में ये आम चुनाव संभवत: तय कर देंगे कि दोनों में से कौन से गुट का भविष्य है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो गुटों का भी यही हाल है।
 इस बीच यह भावना बढ़ती जा रही है कि अगर कुल मिलाकर कोई फैसला ले रहा है, तो वह एकनाथ शिंदे नहीं हैं, देवेंद्र फडनवीस नहीं हैं, उद्धव ठाकरे नहीं हैं, यहां तक कि पुराने योद्धा शरद पवार भी नहीं हैं, बल्कि एकमात्र अजीत पवार हैं।
शरद पवार ‘83’ के हैं और उन्होंने हार मान ली है, लेकिन उद्धव ठाकरे अपने पिता की शिवसेना पर फिर से कब्ज़ा करने पर आमादा हैं। उद्धव ठाकरे के लिए 2024 का आम चुनाव उनकी परीक्षा है।
राज्य में पांचवें और अंतिम चरण में 14 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है और ऐसी चर्चा है कि अजित पवार का प्रभाव सभी 14 निर्वाचन क्षेत्रों में महसूस किया जायेगा। क्यों, यह जानने के लिए कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। बारामती लोकसभा चुनाव, जो तीसरे चरण में हुआ और जिसमें अजित पवार की पत्नी सुनेत्र पवार ने शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले, जो मौजूदा सांसद हैं, से मुकाबला किया। राकांपा का अजित पवार गुट पहले ही बारामती में जीत का दावा कर चुका है और आम तौर पर लोगों का मानना है कि इसके बारे में दो तरीके नहीं हो सकते। बारामती टेम्पलेट काम कर गया और अन्य लोकसभा क्षेत्रों में भी काम करेगा।बारामती टेम्पलेट में लाखों मतदाताओं के मन में चुनाव चिन्हों पर भ्रम पैदा करना शामिल है। चुनाव चिन्हों को लेकर भ्रम की स्थिति शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में विभाजन की विरासत है।
‘असली शिवसेना’ टैग की लड़ाई खत्म नहीं हुई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और यूबीटी सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे शिव सैनिकों की वफादारी और बाला साहेब ठाकरे की विरासत का दावा कर रहे हैं। शिवसेना की विरासत की लड़ाई पर कोई विराम नहीं लगा है।
आदित्य ठाकरे के अनुसार उद्धव ठाकरे खुद को बाला साहेब ठाकरे का सच्चा उत्तराधिकारी मानते हैं और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का कहना है कि वह बाला साहेब की विचार धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का भाजपा के साथ गठबंधन का अपना महत्व है। शिंदे का कहना है कि जब उद्धव ने ‘घृणास्पद’ कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का फैसला किया तो शिवसेना (यूबीटी) ने शिव सैनिकों का समर्थन खो दिया। इसलिए अजित पवार ने महाराष्ट्र में राजग के चुनावी रथ पर अपनी पकड़ बना ली है। हालांकि पांचवें चरण के चुनाव में मुम्बई मेट्रोपॉलिटनरीजन (एमएमआर), नासिक और खंडेश के कुछ हिस्सों में दोनों शिव सेना—एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिव सेना के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा।
एकनाथ शिंदे ‘भाजपा कठपुतली’ की उस छवि से भी छुटकारा पाना चाहते हैं जिससे वह ग्रस्त हैं। आम शिव सैनिकों को दोयम दर्जे की भूमिका निभाना पसंद नहीं है। मुम्बई लोकसभा सीटों के लिए महायुति के ‘खराब उम्मीदवार चयन’ की भी चर्चा है। ‘इंडिया’ गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने महाराष्ट्र के मतदाताओं से बेहतर कल के लिए भाजपा को छोड़ने की अपील की है जबकि राजग नेताओं ने बेहतर भविष्य के लिए भाजपा को चुनने का आह्वान किया है। (संवाद)