नई सरकार-आर्थिक चुनौतियां

केन्द्र की नई सरकार के समक्ष आर्थिक मोर्चे पर बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। चाहे गत पांच वर्षों में मोदी सरकार ने कई अन्य बड़े क्षेत्रों में अच्छी उपलब्धियां हासिल की हैं। नये पद-चिन्ह भी डाले हैं। आम लोगों के मनों को अपनी सक्रियता से उत्साहित भी किया है, परन्तु आगामी समय में सरकार को ऐसे कदम उठाने की ज़रूरत होगी, जिनसे देश की आर्थिकता को बड़ा उत्साह मिले और यह मज़बूत हो। इसी वर्ष जनवरी के महीने में देश की विकास दर कम होने और बेरोज़गारी के बढ़ने की खबर आई थी, परन्तु उस समय सरकार ने इन आंकड़ों को अधूरे बताते हुए इस रिपोर्ट को जारी नहीं होने दिया था, जिस कारण संबंधित विभाग के दो सदस्यों ने इस्तीफा भी दे दिया था। परन्तु अब सरकार बनते ही इन आंकड़ों को सामने लाया गया। इसमें वर्ष 2017-18 के दौरान देश में बेरोज़गारी का आंकड़ा 6.1 प्रतिशत पहुंच गया है। गत 45 वर्षों के मुकाबले यह आंकड़ा सबसे अधिक है। इसके साथ चिंता की बात यह भी सामने आई है कि देश की तिमाही विकास दर काफी कम हुई है। यह 5.8 प्रतिशत रही है। जबकि वर्ष 2018-19 के दौरान यह 6.8 प्रतिशत रही थी। इससे यह प्रकट होता है कि इस समय के दौरान विकास दर का आंकड़ा भी सुस्त हुआ है। इसके कई कारण गिनाये जा सकते हैं, जिनमें कृषि उत्पादन में लक्ष्य पूरे न होना, समूचे निर्माण की गति धीमी होना तथा औद्योगिक उत्पादन का कमज़ोर होना कहा जा सकता है। नि:संदेह गत समय के दौरान सरकार ने यह प्रयास किया था कि इन क्षेत्रों की रफ्तार ढीली न पड़े, परन्तु उसमें वह सफल नहीं हो सकी थी। प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया था, परन्तु उनका कोई अधिक असर हुआ दिखाई नहीं दिया। आगामी समय में सरकार द्वारा भारत को दुनिया की एक बड़ी शक्ति के तौर पर उभारने का दावा किया जा रहा है, परन्तु सरकार द्वारा इस संबंधी प्राथमिक कमियों को पूरा करना बेहद ज़रूरी है। इनके लिए क्रमवार ठोस कदम उठाये जाने चाहिए। नि:संदेह बेरोज़गारी के आंकड़े चिंता पैदा करने वाले हैं। बड़ी संख्या में बेरोज़गार नौजवान समूचे समाज की आर्थिकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। बीमार मानसिकता का शिकार हो सकते हैं। बेरोज़गारी की समस्या देश के लिए हमेशा ही बड़ी बनी रही है। इसने बड़े स्तर पर युवाओं को दीमक लगा दिया है। इसलिए नई सरकार को इस बड़ी होती समस्या की ओर प्राथमिक आधार पर ध्यान देना चाहिए। इसके साथ-साथ बड़ी संख्या में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों को एक स्तर पर लाने के लिए भी प्राथमिक आधार पर कार्य करना चाहिए। हमें इस बात का बेहद अफसोस है कि पूर्व सरकारों ने जन-संख्या की दर कम करने के लिए कोई भी गम्भीर प्रयास नहीं किये, जबकि इस समस्या को मुख्य समस्या समझा जाना चाहिए। हम यह विश्वास से कह सकते हैं कि यदि सरकार जन-संख्या के मामले में इसी तरह बेपरवाह बनी रही तो अज़गर की तरह बढ़ती जन-संख्या किसी भी खतरनाक बम से कम नहीं होगी। नि:संदेह बेरोज़गारी की समस्या भी इससे जुड़ी हुई है। नई सरकार के बनते ही सरकार द्वारा किसानों तथा अन्य आम लोगों के लिए कुछ ऐसी योजनाओं का ऐलान किया गया है, जो लागू होने से उनको आर्थिक पक्ष से कुछ राहत मिल सकती है, परन्तु इसके साथ-साथ हर हाल में देश की आर्थिकता को मज़बूत बनाना और खास तौर पर रोज़गार के संसाधन बढ़ाना समय की ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द