रूस की जंग में फंसे भारतीयों की वापसी कब ?

126 भारतीय नागरिकों को सुनहरे सपनों का झासा देकर रूस भेजा गया जहां उन्हें जबरन रूसी सेना में भर्ती कर युद्ध में झोंक दिया गया। यह त्रासदी अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही बल्कि बेरोज़गारी, मानव तस्करी और वैश्विक भू-राजनीति का खतरनाक मेल बन चुकी है। 27 जून को नई दिल्ली के एआईसीसी मुख्यालय, इंदिरा भवन में कांग्रेस सांसद और पंजाब प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िग ने इस मुद्दे को सार्वजनिक किया। उनके साथ पीड़ित परिवार भी मौजूद थे जिनके युवा सदस्य नौकरी के बहाने रूस भेजे गए और फिर लौट नहीं सके।
एक दैनिक अंग्रेज़ी समाचार की फरवरी 2024 की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय युवाओं को ‘आर्मी सिक्योरिटी हेल्पर’ की नौकरी का झासा देकर प्रति माह 1.95 लाख रुपये वेतन और बोनस का वादा किया गया। असलियत में उन्हें रूसी सेना में जबरन भर्ती कर दिया गया और युद्ध में भेज दिया गया। कई को धमकाया गया कि इंकार करने पर जेल भेज दिया जाएगा। सबसे दर्दनाक कहानी पंजाब के मंदीप कुमार की है, जो विकलांग हैं, फिर भी मारपीट कर उसे स्नाइपर की ट्रेनिंग दी गई। मंच पर परिवारों ने अपने बेटों की रूसी सेना की वर्दी में तस्वीरें दिखाईं जो इस शोषण की भयावहता उजागर करती हैं। 126 में से लगभग 100 भारतीय किसी तरह वापस लौटे हैं, कई घायल और मानसिक रूप से टूट चुके हैं। 14 भारतीय अब भी लापता हैं, जिनमें 9 उत्तर प्रदेश, 3 पंजाब, 1 महाराष्ट्र और 1 जम्मू-कश्मीर के हैं।
संयुक्त राष्ट्र की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि रूस विकासशील देशों के नागरिकों को धोखे से सैन्य भर्ती कर यूक्रेन युद्ध में झोंक रहा है।कुछ संगठनों द्वारा की एक अंतर्राष्ट्रीय जांच में खुलासा हुआ कि 2025 की शुरुआत तक 48 देशों के 1,500 से अधिक विदेशी नागरिक जिनमें सैकड़ों दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी शामिल हैं, इसी तरह धोखा खाकर रूसी सेना में भर्ती हुए।
अंतरर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार हर साल करीब 2.9 करोड़ भारतीय विदेश में रोज़गार की तलाश में जाते हैं। भारत के विदेश मंत्रालय ने 2024 में माना कि 1,200 से अधिक भारतीय एजेंटों के शिकार बने लेकिन 2020 से अब तक केवल 300 मामलों में ही सज़ा हो पाई है। यह केवल कानून व्यवस्था नहीं बल्कि नीतिगत विफलता को भी दर्शाता है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2024 की रिपोर्ट में रूस की इस जबरन भर्ती को ‘मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन’ बताया है। सैकड़ों भारतीयों और अन्य विदेशियों को बिना प्रशिक्षण के युद्ध में झोंक दिया गया। फिर भी भारत की प्रतिक्रिया बेहद धीमी रही। मंदीप कुमार के भाई जगदीप सिंह ने बताया कि 18 महीने से दूतावास के चक्कर काट रहे हैं, लकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।  ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय के अनुसार रूस में खुद की सैन्य भर्ती में 80 प्रतिशत तक गिरावट आई है। इसलिए वे विदेशियों को मोटा वेतन, बोनस और नागरिकता का लालच देकर भर्ती कर रहे हैं।
पूरी दुनिया रूस के सैन्य विस्तार और विदेशी नागरिकों के शोषण पर नज़र रख रही है। भारत को तय करना है कि वह अपने नागरिकों को बचाएगा, मानव तस्करी पर लगाम लगाएगा या आर्थिक विवशता के कारण युद्ध में अपने युवाओं को खो देगा। 14 लापता भारतीयों का कोई अता-पता नहीं। उनके परिवार हर मंच पर गुहार लगा चुके हैं। अब देखना है कि सरकार पीड़ित लोगों की आवाज़ को सुनेगी या ये भी सन्नाटे में गुम हो जाएंगी। (युवराज)

#रूस की जंग में फंसे भारतीयों की वापसी कब ?