सरकार को विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत

चीन के किंगदाओ शहर में 25 और 26 जून को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत का कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ जाना स्पष्ट रूप से दिखा, जब एक संयुक्त वक्तत्व तैयार किया गया, जिसमें सदस्यों से आतंकवाद से मिलकर लड़ने का आह्वान किया गया। संयुक्त वक्तत्व में बलूचिस्तान में हमलों का उल्लेख तो किया गया, परन्तु 22 अप्रैल को पहलगाम में हुई पर्यटकों की हत्याओं का कोई उल्लेख नहीं था। 
2025 शिखर सम्मेलन के मेजबान देश चीन की अध्यक्षता में हुई बैठक में भारत और पाकिस्तान सहित सभी सदस्यों के बीच चर्चा के बाद संयुक्त वक्तत्व तैयार किया गया। स्वाभाविक रूप से सिंह ने इस एकतरफा संयुक्त वक्तत्व पर हस्ताक्षर नहीं किये। एससीओ में नियम यह है कि हर प्रस्ताव सर्वसम्मति के आधार पर होना चाहिए। इसलिए भारत की आपत्ति के परिणामस्वरूप संयुक्त वक्तत्व जारी नहीं किया जा सका। 
एससीओ में वर्तमान में दस सदस्य हैं—चीन, रूस, भारत, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताज़िकस्तान और उज़्बेकिस्तान। भारतीय अधिकारियों ने दावा किया कि उक्त वक्तत्व चीन द्वारा पाकिस्तान के पक्ष में दिया गया था। यह सच हो सकता है, लेकिन फिर रूस सहित अन्य सात सदस्यों का क्या? क्या इसे हमारे विदेश मंत्रालय की विफलता समझा जाए कि एससीओ के सभी मध्य एशियाई सदस्य देश भारत के समर्थन में नहीं आये? यहां तक कि रूस ने भी भारतीय दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए बयान में संशोधन करने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया। इस साल के अंत में चीन के तियानजिन में एससीओ शिखर सम्मेलन आयोजित किया जायेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग ले सकते हैं। ज़ाहिर है वहां उनकी चीनी राष्ट्रपति शीजिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और अन्य नेताओं से मुलाकात होगी। रक्षा मंत्रियों की हालिया बैठक की तरह इस शिखर सम्मेलन में भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का मुद्दा उठेगा। ऐसे में हल सम्भव प्रयास किया जाएगा कि शिखर सम्मेलन के वक्तत्व भारतीय दृष्टिकोण शामिल हो।
इस साल के अंत में एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले 6 और 7 जुलाई को ब्राज़ील में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित किया जायेगा। उस बैठक में भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का मुद्दा उठेगा। पाकिस्तान ब्रिक्स का सदस्य नहीं है। इस तरह किंगदाओ बैठक में इस्लामाबाद की ओर से जो दबाव था, वह ब्राज़ील शिखर सम्मेलन में नहीं होगा, लेकिन हर देश ने कोई न कोई रुख अपनाया है और यह अचानक नहीं बदलता। इसके लिए लगातार समझाने और तथ्यों को पेश करने की ज़रूरत होती है। 
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं। इन दिनों में भारतीय राजनयिकों को सदस्य देशों से मिलकर उन्हें भारत के खिलाफ आतंकी हमलों में पाकिस्तान की संलिप्तता के बारे में पूरे तथ्यों के साथ भारतीय स्थिति के बारे में समझाने का पूरा प्रयास करना होगा। ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका प्रमुख सदस्य हैं। शिखर सम्मेलन में किसी भी तरह की शर्मिंदगी से बचने के लिए उन्हें उचित जानकारी दी जानी चाहिए। 
इस साल के अंत में होने वाले एससीओ शिखर सम्मेलन के बारे में क्षेत्र की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों के दृष्टिकोण से विचार-विमर्श बेहद महत्वपूर्ण होगा। अब अपने 25वें वर्ष में एससीओ अपने मूल छह संस्थापक सदस्यों से बढ़कर 10 सदस्य देशों, दो पर्यवेक्षक देशों और 14 संवाद भागीदारों के ‘बड़े परिवार’ में बदल गया है, जो पूर्वी यूरोपीय मैदानों से लेकर हिंद महासागर और प्रशांत रिम तक फैला हुआ है और इसमें दुनिया की लगभग आधी आबादी शामिल है।
एससीओ सूत्रों का कहना है कि यह संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग के लिए एक परिपक्व मंच बन गया है, जिसका प्रभाव, सामंजस्य और अपील लगातार बढ़ रही है। पिछले 25 वर्षों में यह ‘सुरक्षा का विशाल जहाज़’ आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ  लहरों पर सवार होकर क्षेत्रीय सुरक्षा में उत्कृष्ट योगदान दे रहा है। सुरक्षा सहयोग से उभरने वाले आर्थिक और व्यापारिक लाभांश और लोगों के बीच आदान-प्रदान भी उल्लेखनीय रहे हैं, जो सभी पहलुओं में सदस्य देशों के लोगों को एक-दूसरे के करीब लाते हैं।
भारत ने पिछले पांच वर्षों में अमरीका प्रायोजित क्वाड के प्रति अपने प्रेम के कारण ब्रिक्स और एससीओ के कामकाज की उपेक्षा की है। अब जब अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प लगातार अपने बयानों से भारत को अपमानित कर रहे हैं, तो यह एक ऐसा संवेदनशील मुद्दा बन गया है जिसके बारे में सभी जानते हैं। 10 मई को भारत-पाक के बीच हुए युद्ध विराम का श्रेय ट्रम्प स्वयं लेने का प्रयास कर रहे हैं। यहां तक कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ उन्होंने लंच पर बातचीत भी की। अब हमारे प्रधानमंत्री को पिछले पांच वर्षों में अपनायी गयी अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत प्रतीत हो रही है। अब समय आ गया है कि भारत को ग्लोबल साउथ के लिए लड़ने के लिए ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और अन्य विकासशील देशों के साथ संबंध मज़बूत करने चाहिएं। देश का हित ग्लोबल साउथ के साथ है, जिसे हमारी सरकार को नहीं भूलना चाहिए। (संवाद)

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