शराब ज़िंदगी करे खराब

शराब का सेवन सदियों से हो रहा है। किसी के लिए यह एक दवा है , मानसिक थकावट दूर करने के लिए तो कइयों के लिए यह नशा है, गम दूर करने हेतु। दरअसल, देखा जाए तो यह कहना तनिक भी गलत नहीं होगा कि शराब खाना करे खराब। नि:संदेह अन्य नशों की भान्ति शराब भी एक बुरी लत है। इसने भी घरों के घर उजाड़ कर रख दिए हैं। विवाह विच्छेद होना आम-सी बात बन गई है। शराब के नशे में व्यक्ति बड़ी गलती कर बैठता है। कई बार शराब के नशे में व्यक्ति इतना आपा खो बैठता है कि उसे सलाखों के पीछे बैठना पड़ता है। फिर पश्चाताप के सिवाय उसके पास कुछ भी नहीं रहता। 
वास्तव में इस समय शराब की खपत हमारे यहां इतनी तेजी से बढ़ रही है कि यह अत्यधिक चिंतनीय विषय है। आप यह बात जान कर  हैरान रह जाएंगे कि साल 2010 से 2017 के मध्य हमारे देश में शराब की खपत 38 फीसदी बढ़ गई है । समूचे संसार में अभी-अभी 189 देशों में इसकी खपत में वर्ष 1990 से लेकर 2017 के मध्य 70 फीसदी बढ़ौतरी हुई है । यह आंकड़ा हरेक को चौंका देने वाला है। एक ओर हम विकास की बात बढ़-चढ़ कर करते हैं, पर दूसरी ओर शराब एवं नशीले पदार्थों के सेवन की गति में  उत्तरोत्तर तेजी से वृद्धि हो रही है। यह तो यही दर्शाता है कि शराब से होने वाली हानियां, बीमारियों से निपटने के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। इस बेहद बुरी आदत का दुष्प्रभाव हमारे देश के लोगों की सेहत पर सीधे तौर पर पड़ रहा है। शराब की लत से दो से ज्यादा गैर संक्रमित रोग होते हैं। मद्यनिषेध के अनुपालन और देश के प्रत्येक नागरिक की बढ़िया सेहत पर पूरा ध्यान देना मौजूदा सरकारों का कर्तव्य है पर अफ सोस ऐसा कतई नहीं हो रहा है। 
समस्त सरकारें अधिकाधिक राजस्व कमाने हेतु शराब के धन्धे को अपने आय स्रोत का मुख्य जरिया बना रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन राज्यों में शराबबंदी की कोशिशें की भी गईं हैं। वहां सत्ता की नीतियों को धत्ता बताते हुए एक बहुत बड़े शक्तिशाली माफिया ने अपने पैर जमा लिए हैं। इसीलिए लोगों को अब पहले की अपेक्षा शराब महंगी मिलने लगी है। इसके लिए समय की सरकारें भी मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। इस कुत्सित व्यापार में शक्तिशाली व्यक्तियों की मिलीभगत से सभी भली-भांति परिचित हैं । कुछेक साल पहले बिहार राज्य में शराबबंदी की कोशिश की गई मगर राज्य की व्यवस्था में चोर दरवाजे से ऐसा संभव तो क्या नामुमकिन-सा हो गया। स्थिति यह है कि वहां शराबबंदी के बाद प्रत्येक मिनट में तीन लीटर शराब बरामद हो रही है । 
निस्संदेह सरकारें शराब की खपत पर कमी तो अवश्य करना चाहतीं हैं पर सभी सरकारें शराब बेच कर ही अपने-अपने राज्य का विकास करना चाहतीं हैं पर इसमें कहीं भी औचित्य नजर नहीं आता। हालात बदतर हो रहें हैं । इससे मुक्ति पाने के लिए इच्छित परिणाम तभी सार्थक होंगे जब हम एकजुट होकर मन से भरपूर प्रयास करेंगे अन्यथा वैश्विक स्तर पर 2025 तक शराब की खपत में 10 फीसदी की कटौती का लक्ष्य पूरा होना बिल्कुल असंभव है। 
रैलियों, जलसे एवं सेमिनारों से इस गंभीरतम समस्या पर काबू नहीं पाया जा सकता। इसके लिए योजनाबद्ध होकर लड़ाई लड़नी होगी। शराब से होने वाली हानियों के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहिए। ऐसी भी बात नहीं है कि शराब से होने वाले नुकसान के बारे में समय-समय पर जागरूकता अभियान नहीं चलाया जा रहा। इस सबके बावजूद शराब की खपत कम होने का नाम नहीं ले रही। बल्कि समस्त कोशिशें बेकार जा रही हैं।  अधिकांश मजदूर वर्ग दिन भर की कमाई इस बुरी आदत को पूरा करने पर गुजार देता है। इससे वह अपना स्वास्थ्य तो खराब करता ही है साथ ही अपने परिवार के साथ अन्याय करता है। उसका परिवार आर्थिक तंगी से परेशान हो उठता है। देखा जाए तो अधिकांश अपराध भी शराब के नशे में किये जाते हैं। उस समय अपराधियों ने शराब अथवा किसी प्रकार का नशा किया होता है । इससे यह बात उभर कर आती है कि शराब हमारे समाज के लिए अत्यधिक हानिकारक है। समूचे समाज के लिए यह अहितकारी है। इससे समाज में एक नई आराजकता उत्पन्न होनी स्वाभाविक है। अन्तत: यही देखने में अभी तक आया है कि जिस-जिस राज्य में शराबबंदी की घोषणा की गई वहां अभी तक सार्थक नतीजे सामने नहीं आए हैं। 
गुजरात राज्य में भी यथासंभव सफ लता हाथ नहीं लगी। पंजाब राज्य में शराब की खपत का तो कोई हिसाब-किताब नहीं। अन्य नशों की भान्ति शराब ने भी यहां अपने पैर जमा रखे हैं। समाज व समय की मुख्य मांग है कि शराब का सेवन बंद अन्यथा कम अवश्य होना चाहिए। शौक अपनी जगह है पर स्वास्थ्य सर्वोपरि। फैसला आपके हाथ में है।