चटोरे लालजी का पेट और प्रेम

चटोरे लाल जी जैसा की नाम से ही विदित होता है। चाटने की कला में सिद्धहस्त हैं। इधर उनको डाईटिंग की खब्त सवार हुई है। उनको पतला होना है। सींकिया पहलवान। वैसा जैसा वो अपने जवानी के दिनों में थें। इसका कारण है कि उनकी सहकर्मी जोकि बहुत क्यूट और स्लिम सी हैं और, वो जिसको अपना क्रश मानती है। वो भी बहुत स्लिम सा है तो चटोरे लाल जी अपना दिल उस सहकर्मी को देना चाहते हैं लेकिन उनके दिल देने के रास्ते में उनका पेट चाइना की लम्बी दीवार की तरह बीच में आ जाता है और अपने बढ़े पेट के कारण वो परेशान रहतें हैं तो कहने का तात्पर्य ये है कि वे अपनी तोंद को पिचकाना चहकते हैं। वैसे तो चटोरे लाल जी पचास के आसपास के हैं लेकिन उनका दिल अभी जवान है और जैसा की हर आशिक के साथ होता है। उनके साथ भी हो रहा है। 
वो बार-बार प्रण लेते हैं और उनका प्रण ‘मेरा पल्लू सरका जाये रे’ वाले इंस्टा रील्स पर गाने बनाने वाली छोरियों की तरह बार-बार टूट जाता है। जैसे नेताओं की कमसिन, उम्र छोरियां, पुरानी शराब, महंगी गाडियां कमजोरी की तरह होती हैं। वैसे ही चटोरे लाल को सिंधाड़ा, पकौड़ी, गुलाब जामुन, ब्रेड पकौड़े को देखकर मुंह में पानी आने लगता है और उनका प्रण बार-बार टूट जाता है। वो रोज़ सोचते हैं कि कल से जंक फूड खाना बंद कर देंगे लेकिन उनका वो कल कभी नहीं आता। सुबह की गर्मा-गर्म कचौरियों की सुगंध जब उनके नासिका के छिद्रों से उनके मस्तिष्क में पहुंचती है तो उनमें एक पागल सांड की तरह बेकाबूपन पैदा हो जाता है और वो डाईटिंग को भूल जाते हैं। एक तरह से उनके इश्क और पेट की जंग में जीत हमेशा पेट की होती है। उनकी दिनचर्या कुछ ऐसी है कि सुबह उठकर देशी घी की बनीं मात्र दस बारह पुरियां, ठेले पर वो नाश्ते कर लेते हैं। इसके बाद भी अगर उनका मन ना भरा तो दूध की चार-पांच चाय पीते हैं। इतने के बाद वो  गपशप मारते हुए चौपाल पर निकल जाते हैं। जाड़े का समय हुआ तो कुछ शुद्ध घी का चार-पांच समोसा खा लेते हैं। गर्मी का मौसम हुआ और इष्ट मित्रों की कृपा हुई तो चार-पांच लस्सी भी खींच लेते हैं। बीच-बीच में दालमोट, सेव के पैकेट पर भी हाथ साफ करते रहते हैं। इतना पर भी इनका जी नहीं घबराता। शाम हुई तो कभी मोमोज, तो कभी बर्गर तो कभी इडली तो कभी डोसा पर भी हाथ फिरा देते हैं। जब इनसे इनका मन फिरने लगता है या कुछ नया ट्राई किया जाये की तर्ज पर वो कभी प्लेट दो प्लेट चिकेन चिल्ली, तो कभी चाऊमिन पर भी हाथ आजमाते हैं। भाई, पनीर चिल्ली तो उनकी कमजोरी है। इसके बिना तो सब सुखा-सुखा सा लगता है। सौभाग्य की बात है कि चटोरे लाल जी बहुत ही मिलनसार व्यक्ति हैं। और जो व्यक्ति मिलनसार होता है। उसका कुनबा भी बहुत बड़ा होता है। 
अपने गांव समाज के बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति भी हैं, चटोरे लाल जी। इस कारण उन्हें महीने में बीसियों बार दावतों का निमंत्रण भी मिलता रहता है। कहीं छठियारी, कहीं शादी-ब्याह, कहीं उदघाट्न-भोज, कहीं मृत्यु भोज हर दिन कहीं न कहीं, कुछ न -कुछ लगा ही रहता है। वहां उनका इंतजार गर्मा-गर्म पूरियां, कचौरियां, गोल गप्पे और चाट करते रहते हैं। जिनको देखकर वो अपने मन पर काबू नहीं रख पाते। रही सही कसर मिठाईयां कर जातीं हैं। जिस तरह हमारे यहां की राजनीति में पाकिस्तान को भकोस-भकोस कर हमारी मीडिया खाती है। चटोरे लाल जी मिठाईयां भी भकोस-भकोस कर खाते हैं। अगर काजू की बर्फी दिख गयी तो गर्दन से ऊपर तक खाने के बाद भी पाव भर या आधा किलो तक वो दबा ही देते हैं। जिस तरह से  इज़रायल, हमास युद्ध में हमास पर बार-बार इज़रायल मिसाइलें दागता है। वैसे ही चटोरे लाल जी अपने पेट पर प्लेटें दागते हैं। संयोग से किसी अन्य धर्मावलंबी ने उनको निमंत्रण दे दिया तो तो वो बिरयानी पर कत्लेआम मजा देते हैं। अब देखना ये है कि उनके प्रेम या पेट में किसकी जीत होती है। 

-बोकारो झारखंड, पिन-829144