अकाली-भाजपा सम्बन्धों में आई दरार की परछाई पंजाब के उपचुनावों पर पड़ने के आसार

अबोहर, 29 सितम्बर (कुलदीप सिंह संधू) : भारतीय जनता पार्टी द्वारा हरियाणा में शिरोमणि अकाली दल के इकलौते विधायक को अपनी पार्टी में शामिल करने के पश्चात अकाली-भाजपा के दशकों पुरानी सांझ में आई दरार की परछाई पंजाब के उपचुनावों में पड़ने के आसार लग रहे हैं। भले ही अकाली लीडरशिप द्वारा पंजाब एवं दिल्ली में दोनों पार्टियों का गठबंधन कायम रहने की बात कही गई है परन्तु अकाली लीडरशिप एवं कार्यकर्ताओं के दिलों में भाजपा द्वारा पार्टी के साथ हरियाणा में आई बेवफाई का दर्द अवश्य झलक रहा है जो पंजाब में होने जा रहे उपचुनावों दौरान दोनों पार्टियों हेतु घातक सिद्ध हो सकता है। दूसरी ओर चार सीटों जलालाबाद, दाखा, मुकेरियां एवं फगवाड़ा के हो रहे चुनावों दौरान विधानसभा सीट जलालाबाद पर सबसे ज्यादा दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा क्योंकि यहां भले ही शिरोमणि अकाली दल द्वारा राज सिंह डिब्बीपुरा एवं कांग्रेस द्वारा रमिन्द्र सिंह आवला को चुनाव मैदान में उतारा गया है, परन्तु वास्तविक चुनावी जंग अकाली प्रधान सुखबीर सिंह बादल और कांग्रेस प्रधान सुनील कुमार जाखड़ के बीच ही होगी। स. बादल पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को कह चुके हैं कि पार्टी प्रत्याशी भले ही कोई हो आपने वोट मुझे प्रत्याशी समझकर ही डालनी है। उधर कांग्रेस पार्टी ने भी चारों सीटों में से सबसे पहले जलालाबाद से चुनाव प्रचार शुरू करके यह संदेश दिया है कि वह जलालाबाद सीट को अहम मानकर चल रही है। अब प्रश्न यह पैदा होता है कि शिरोमणि अकाली दल एवं भाजपा के बीच विगत दिनों पड़ी फूट के कारण क्या इन चारों सीटों पर अकाली-भाजपा के नेता आपसी तालमेल से चलेंगे या नहीं क्योंकि हरियाणा में भाजपा द्वारा गठबंधन धर्म न निभाए जाने के कारण अकाली नेताओं ने कड़ी नाराजगी पाई जा रही है। विश्लेषकों का मानना है कि इन चुनावों दौरान यदि अकाली दल एवं भाजपा के नेताओं ने अपना-अपना अहम न छोड़ा तो दोनों पार्टियों को नुक्सान उठाना पड़ सकता है। जो कांग्रेस के लिए फायदे वाली बात होगी और अकाली-भाजपा के इस नुक्सान के परिणाम उनको 2022 के आने वाले विधानसभा चुनावों में भुगतने पड़ेंगे।