चीनी राष्ट्रपति की सुखद यात्रा

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की तमिलनाडू के महाबलीपुरम की यात्रा लगभग 24 घंटे की थी, परन्तु जिस तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनौपचारिक ढंग से आपसी बातचीत की, प्रतिनिधियों के बीच हुई बातचीत तथा सारे समय के दौरान जिस तरह चीनी राष्ट्रपति विचरे, उसको बेहद भावपूर्ण कहा जा सकता है। भारत ने चीन के प्रमुख को हज़ारों वर्षों से दोनों देशों में पुराने संबंधों की याद दिलाई। दोनों ही देशों की विशाल धरती है। सदियों से अमीर सभ्याचार रहा है। इन पड़ोसी देशों की सदियों पुरानी आपसी साझ भी रही है। भारत से बुद्ध मत ने चीन तक का स़फर किया। चीनी यात्री लगातार यहां आते रहे। उन्होंने जो यादें लिखी वह भरपूर भी थी और स्नेह से भरी भी। बुद्ध धर्म के संबंध में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए सैकड़ों वर्षों से बौद्धी विद्वान इस धरती पर आते रहे।
लगभग सात दशक पूर्व ही दोनों देशों ने राजनीतिक और सामाजिक तौर पर बड़ी अंगड़ाइयां ली थीं। दोनों के शासन बदले थे। दोनों ही अपने करोड़ों नागरिकों की नियति को संवारने के लिए अपने-अपने प्रयास करते रहे हैं। दोनों का सीमांत विवाद भी भारत में ब्रिटिश सरकार के समय से ही चला आ रहा है। जब 1962 में चीन ने भारत पर हमला करके अपनी सीमाओं का स्वयं निर्णय करने का प्रयास किया और भारत के काफी हिस्से पर कब्ज़ा भी कर लिया, तो उस समय से लेकर दोनों देशों के संबंध पहले जैसे सुखद नहीं बन सके। चीन ने भारत की अपेक्षा पाकिस्तान को प्राथमिकता दी। पाकिस्तान से ही एशिया के बड़े हिस्से के साथ व्यापार करने के लिए सड़क बनाने को प्राथमिकता दी, वहां गवादर बंदरगाह के निर्माण पर उसने अरबों रुपये भी खर्च किये, परन्तु नये पैदा हुए हालात के कारण भारत और चीन को एक-दूसरे के निकट होने के लिए मजबूर होना पड़ा। दोनों देशों का आपसी व्यापार लगातार बना रहा। आज चीन की वस्तुओं की भारत में बाढ़ आई हुई है। दोनों देशों में 87 अरब डॉलर के माल का लेन-देन होता है, परन्तु भारत के लिए यह व्यापार असंतुलित है। भारत को चीन से ज्यादा वस्तुएं आती हैं, परन्तु भारत से चीन कम वस्तुएं मंगवाता है। उदाहरण के लिए 2018-19 में चीन और भारत के निर्यात और आयात में 53 अरब डॉलर का अंतर था। उससे पहले गत वर्ष यह अंतर 63 अरब डॉलर का था। भारत ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि इस अंतर को हर हाल में कम किया जाना चाहिए। 
1962 के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच सीमाओं की निशानदेही के बारे में भी लगातार बैठकें होती रही हैं। दोनों देशों की आपस में तीन हज़ार किलोमीटर के लगभग सीमाएं लगती हैं, परन्तु इसके बावजूद दोनों देशों के निचले से लेकर उच्च स्तर तक के अधिकारी एक-दूसरे के देशों में आते-जाते रहे हैं। अप्रैल 2018 में दोनों देशों के प्रमुखों नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग के बीच चीन के शहर वुहान में अनौपचारिक बातचीत हुई थी, जिसकी बड़ी चर्चा भी हुई थी। उस बातचीत के बाद यह प्रभाव बना था कि इससे दोनों देशों की एक स्तर पर आपसी सूझ-बूझ बढ़ी है। वुहान में इस अनौपचारिक बातचीत से पहले वर्ष 2017 में सिक्किम और भूटान की सीमाओं पर डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं में 70 दिन तक तनाव बना रहा था। परन्तु इस घटना के बाद दोनों देशों के नेताओं का अनौपचारिक ढंग से मिल-बैठना हैरानीजनक अवश्य था। इस बार भी इस अनौपचारिक बातचीत से पूर्व भारत की ओर से कश्मीर में धारा 370 हटाने के उठाये गये बड़े कदम के बाद पाकिस्तान ने प्रत्येक स्तर पर इसकी कड़ी आलोचना की थी। वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस समय के दौरान चीन का तीन बार दौरा भी किया था। चीन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान का पक्ष भी रखा था। ऐसी स्थिति में दोनों देशों के प्रमुखों की होने वाली इस दूसरी अनौपचारिक मुलाकात अनिश्चित बन गई थी। परन्तु चीनी नेता की भारत यात्रा दोनों देशों के संबंधों को सुखद बनाने में सहायक हुई है। दोनों देशों के नेताओं ने दुनिया भर में फैले आतंकवाद संबंधी भी बातचीत की है। आपसी व्यापार को बढ़ाने के बारे में बातचीत की है और भारत-चीन की सीमा पर किस ढंग से शांति बनाये रखनी है, इसके बारे में भी चर्चा की गई है। इसको दोनों देशों के नेताओं की परिपक्वता ही कहा जा सकता है कि दोनों ने कश्मीर मामले का ज़िक्र तक नहीं किया। नि:संदेह चीनी राष्ट्रपति की संक्षिप्त यात्रा ने दोनों देशों में पुन: एक नये अध्याय की शुरुआत की है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द