उपकार का बदला

वाराणसी में गंगा में डूबते हुए वृद्ध को एक युवक ने बचा लिया। कुछ भी पुरस्कार न लेने पर उस वृद्ध ने अपना नाम-पता देकर कहा कि सुनो आवश्यकता पड़ने पर कलकत्ते (अब कोलकाता) आ जाना, मैं अवश्य ही तुम्हारी सहायता करूंगा। कुछ दिनों बाद वह युवक उस वृद्ध महाशय से मिला और अपनी कविता उनके सामने रखते हुआ बोला—इन्हें आप अपनी पत्रिका में छपवा दें। कविताओं को पढ़कर उस वृद्ध महाशय ने कहा—एक बात कहूं? बड़े ही सहमे-सहमे स्वर में युवक ने कहा—हां-हां कहिए। वृद्ध महाशय ने कहा—मैं आपकी इस कविता को  पत्रिका में प्रकाशित नहीं कर सकता हूं। तुम चाहो तो अपने उस ‘उपकार के बदले’ मुझे फिर से गंगा जी में धकेल सकते हो, मैं फिर से श्री गंगा जी में डूबने के लिए तैयार हूं। प्रिय पाठकों, वह वृद्ध महाशय थे बंगला मासिक पत्रिका ‘प्रवासी’ के सुप्रसिद्ध सम्पादक—स्वर्गीय रामानन्द चट्टोपाध्याय।

—धर्मपाल डोगरा, ‘मिन्टू’
मो. 75597-23557

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