उपकार 

रमाशंकर की कार जैसे हो सोसायटी के गेट में घुसी, गार्ड ने उन्हें रोककर कहा, ‘साहब, यह महाशय आपके नाम और पते की चिट्ठी लेकर न जाने कब से भटक रहे हैं।’
रमाशंकर ने चिट्ठी लेकर देखा, नाम और पता तो उन्हीं का था, पर जब उन्होंने चिट्ठी लाने वाले की ओर देखा तो उसे पहचान नहीं पाए। चिट्ठी एक बहुत थके से बुजुर्ग लेकर आए थे। उनके साथ बीमार सा एक लड़का भी था। उन्हें देखकर रमाशंकर को तरस आ गया। शायद बहुत देर से वे घर तलाश रहे थे। उन्हें अपने घर लाकर कहा, ‘पहले तो आप बैठ जाइए।’ इसके बाद नंकर को आवाज़ लगाई, ‘रामू इन्हें पानी लाकर दो।’
पानी पीकर बुजुर्ग ने थोड़ी राहत महसूस की तो रमाशंकर ने पूछा, ‘अब बताइए किससे मिलना है?’
‘तुम्हारे बाबा देवकुमार जी ने भेजा है। बहुत दयालु हैं वह। मेरे इस बच्चे की हालत बहुत खराब है। गांव में इलाज नहीं हो पा रहा था। किसी सरकारी अस्पताल में इसे भर्ती करवा दो बेटा, जान बच जाए इसकी। एकलौता बच्चा है।’ इतना कहते कहते बुजुर्ग का गला रुंध गया।
रमाशंकर ने उन्हें गेस्ट रूम में ठहराया। पत्नी से कहकर खाने का इंतजाम कराया। अगले दिन फैमिली डाक्टर को बुलाकर सारी जांच करवाकर इलाज शुरू करवा दिया। बुजुर्ग कहते रहे कि किसी सरकारी अस्पताल में करवा कर दो, पर रमाशंकर ने उसकी एक नहीं सुनी। बच्चे का पूरा इलाज अच्छी तरह करवा दिया।
बच्चे के ठीक होने पर बुजुर्ग गांव जाने लगे तो रमाशंकर को तमाम दुआएं दीं। रमाशंकर ने दिलासा देते हुए एक चिट्ठी देकर कहा, ‘इसे पिताजी को दे दीजिएगा।’
गांव पहुंच कर देवकुमारजी को वह चिट्ठी देकर बुजुर्ग बहुत तारीफ करने लगा, ‘आप का बेटा तो देवता है। कितना ध्यान रखा हमारा। अपने घर में रख कर इलाज करवाया।’
देवकुमार चिटठी पढ़कर दंग रह गए। उसमें लिखा था, ‘अब आप का बेटा इस पते पर नहीं रहता। कुछ समय पहले ही मैं यहां रहने आया हूं। पर मुझे भी आप अपना ही बेटा समझें। इनसे कुछ मत कहिएगा। आपकी वजह से मुझे इन अतिथि देवता से जितना आशीर्वाद और दुआएं मिली हैं, उस उपकार के लिए मैं आपका सदैव आभारी रहूंगा।  आपका रमाशंकर।’ देवकुमार सोचने लगे, आज भी दुनिया में इस तरह के लोग हैं क्या?