प्रेरक प्रसंग-सच की जीत

जिमथानिया नामक एक सुन्दर गांव था। गांव से थोड़ी दूर एक-सघन जंगल था। उस जंगल में विभिन्न प्रकार के पशु-पक्षी रहते थे। एक दिन गांव में रहने वाला एक लकड़हारा रोज की तरह जंगल से लकड़ियां काटकर अपने गांव लौट रहा था। तभी अचानक उसे झाड़ियों से निकलकर अपनी ओर आते शेर को देखा। लकड़हारा डरकर वहीं ठिठक गया। तभी शेर जोर से दहाड़ मारकर लकड़हारे से कहता है, देखो भाई आज मैं बहुत भूखा हूँ। कल से कुछ भी खाने को नहीं मिला है। 
अत: मैं तुम्हें  खाकर अपनी भूख मिटाऊंगा। तभी लकड़हारा घबरते हुए बोला- ठीक है। अगर मुझे खाने से-तुम्हारी भूख शान्त होती है और तुम्हारी जान भी बचती है तो मुझे तुम्हारी बात मंजूर है। लेकिन मैं तुम्हें पहले एक बात कहना चाहता हूँ कि इस वक्त भाई तुम अकेले हो, तुम्हारे पर किसी की जिम्मेदारी भी नहीं है। परन्तु मेरे घर पर मेरी बीवी व दो छोटे बच्चे हैं वे भी भूख से व्याकुल हो रहे हैं। इसलिए मैं यह लकड़ियां बेचकर मिल पैसों से भोजन लेकर घर जाऊंगा। मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं उन्हें भोजन देकर शीघ्र ही लौट आऊंगा।
तभी शेर ने कहा- क्या तुम मुझे मूर्ख समझते हो और मैं तुम्हारी बातों में आ जाऊगा। कुछ नहीं तुम्हें मेरा शिकार बनना ही पड़ेगा। तभी लकड़हारा रोने लगता है और कहता है भाई मुझे जाने दो मुझ पर विश्वास रखो, मैं वादा नहीं तोडूंगा। और शेर को उस पर दया आ जाती है, वह उससे कहता है ठीक है सूर्य डूबने से पहले यहीं आजाना इंतजार करूंगा।
लकड़हारा फटाफट लकड़ियां बेचकर गांव पहुंचकर अपनी बीबी-बच्चों को भोजन देकर शेर से किये वायदेनुसार जंगल में शेर के पास लौट आया। शेर उसे देखकर खुश हो जाता है और कहता है भला में तुम्हें मारकर पाप नहीं करना चाहता हूं क्योंकि तुम ईश्वर के सच्चे भक्त हो। 
लकड़हारे ने शेर की आत्मीयता देखकर उसे धन्यवाद दिया व खुशी.. खुशी घर लौट गया। इस कथा से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि हमें जीवन में सच बोलना चाहिए क्योंकि सच्चाई से ही हर व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता मिलती है।