किरायेदार मां-बाप

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इधर कोरोना नामक महामारी ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए थे। इस वायरस ने सभी की जिंदगी में उथल-पुथल मचा रखा था। इधर कुछ दिनों से गायत्री और नंदिनी में खटपट शुरू हो गई थी। क्योंकि घर में काम करने वाले रामू काका अपनी बीमार मां से मिलने गांव चले गए थे। काम को लेकर दोनों में सुबह से ही झगड़ा शुरू हो जाता। इस वजह से श्याम सुंदर बाबू और सावित्री जी चिंतित रहने लगे। बात यहां तक पहुंच गई कि चंदन ने उनसे पूछे बगैर घर बेच दिया। जमीन उसके नाम जो थी। जो पैसे मिले उससे अपने लिए नया घर खरीद लिया। उसके बूढ़े मां-बाप कैसे रहेंगे उससे उसे कोई मतलब नहीं था।
श्याम सुंदर बाबू और उनकी पत्नी इस पूरे प्रकरण से अनजान थे। उन्हें जब घर खाली करने का नोटिस मिला तब पता चला कि घर तो बिक चुका है। उन्होंने कोर्ट में बड़े बेटे के खिलाफ केस कर दिया। परिवार के सभी लोग परेशान रहने लगे। पंचायत हुई। लोकलाज का हवाला देकर लोगों ने श्याम सुंदर बाबू से मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया। वो राजी भी हो गए। इसी बीच एक और धोखा उनका इंतजार कर रहा था। नंदन आया और इस प्रकरण पर मौन रहा। मां-बाप का कुशल-क्षेम पूछे बगैर नंदनी को लेकर जहां नौकरी करता था चला गया। इसी गम में उनकी पत्नी भी बीमार रहने लगी। इस कोरोना काल में श्याम सुंदर बाबू बिल्कुल अकेले पड़ गए। अपने घर से बेघर। घर में काम करने वाले रामू काका भी अभी तक अपने गांव से नहीं लौटे थे। और सावित्री जी से घर का काम होता नहीं था। ऊपर से वह बीमार पड़ गई क्योंकि बेटों के विश्वासघात ने उन्हें बिल्कुल तोड़ दिया था। बड़े बेटे के घर में उन लोगों के लिए जगह नहीं थी। वह तो भला हो पंकज कुमार झा का जिन्होंने उनका मकान खरीदा था और उसी में जिस फ्लोर पर वे रहते थे उन्हें रहने के लिए दे दिया। वह तो किराया भी नहीं ले रहे थे लेकिन श्याम सुंदर बाबू नहीं माने। उन्हें बिना किराया दिए रहना मंजूर नहीं था। वो बोले, ‘पंकज बेटा यह आपका बड़प्पन है कि मकान खरीदने के बाद भी जिसमें हम रहते थे आपने उसी फ्लोर को हमें रहने के लिए दिया। इसके लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया। जब अपनों ने मुंह मोड़ लिया तो आपने हमें रहने के लिए आश्रय दिया। आपका एहसान हम कैसे चुका पाएंगे।
‘एहसान चुकाने का एक तरीका है यदि आप बुरा ना माने तो’, पंकज जी ने नम्रता के साथ कहा।
‘आप दोनों का खाना मेरे ही घर से आएगा। ऐसी हालत में माता जी खाना कैसे बनाएंगी।’
‘नहीं-नहीं पंकज बेटा जब तक रामू नहीं आ जाता तब तक मैं कोई और दूसरे नौकर का इंतजाम कर लूंगा और मुझे पेंशन तो मिलती ही है।’
‘जब तक रामू नहीं आ जाता तब तक आप मेरे यहां ही खाना खाएंगे। इसको रोना काल में आपको कोई नौकर-नौकरानी कहां मिलेगा।’
उन दोनों ने पंकज जी की बात मान ली। अपने ही घर में उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले रखा है, उसी में दोनों प्राणी चुपचाप रहते हैं। यह उनकी बदकिस्मती है कि जिस घर के कभी मालिक हुआ करते थे उसी घर में किराएदार बनकर रह रहे हैं।
पत्नी भी कोरोना काल में भगवान को प्यारी हो गई। बड़े बेटे को उन्होंने खबर भेजवाया लेकिन वह अपनी मां की अर्थी को कंधा देने तक नहीं आया। बेटी सुगंधा तो विदेश चली गई थी, वह चाह कर भी नहीं आ पाई। नंदन तो सात आठ सौ किलोमीटर दूर रहता है। लेकिन उसने भी अपने पिता से नाता तोड़ लिया है। बेचारे श्याम सुंदर बाबू 80 साल की अवस्था में नि:सहाय अकेले रह गए हैं। वह तो भला हो पंकज बाबू का जिन्होंने उनका मकान खरीदा और जिसके वह किराएदार हैं। वही इनकी देखभाल करते हैं। (समाप्त)

पता. संजय गांधी नगर रोड नं0.10 ए
हनुमान नगर, पटना-800026 
मो-8210781949

 

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