किरायेदार मां-बाप

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समय बीतता गया। नंदन एक बड़ी कम्पनी में मैनेजिंग डायरेक्टर बन गया। श्याम सुंदर बाबू बेटों से निश्चित होकर सुगंधा की शादी की तैयारियों में जुट गए। उन्होंने कई लड़कों को सुगंधा के लिए देखा लेकिन वह चाहते थे कि सुगंधा बैंक में है तो कोई बैंक अधिकारी मिल जाए तो ज्यादा अच्छा है। कई लोगों से उन्होंने इस बाबत चर्चा भी की था। कई साल बाद अचानक एक दिन उनकी मुलाकात अपने पुराने मित्र प्रोफेसर बी.एन. सिंह से हो गई। दोनों बिछड़े मित्रों में घर परिवार की बहुत सारी बातें हुई। इसी क्रम में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, नौकरी शादी-ब्याह की भीबातें हुई तो उन्हें पता चला कि प्रोफेसर साहब का मंझला बेटा भी पंजाब नेशनल बैंक में ही है। उसी बैंक में सुगंधा भी थी। दोनों ने तय किया कि क्यों न अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दी जाए? उन्होंने अपने मित्र प्रोफेसर बी.एन. सिंह के बेटे सौरव राज से बहुत ही धूमधाम से सुगंधा की शादी कर दी। सभी मित्रों और रिश्तेदारों ने शादी में बढ़ चढ़कर भाग लिया। गायत्री ने भी ननद की शादी में कोई कमी न होने दी।
नंदन ने अपनी कमाई से उपहार स्वरूप एक डायमंड का सेट और हनीमून ट्रिप का पैकेज दिया। सुगंधा विदा होकर अपने ससुराल चली गई। श्याम सुंदर बाबू को लगा कि उन्होंने चार धाम की यात्रा कर ली। श्याम सुंदर बाबू ने बच्चों की परवरिश बहुत ही मेहनत से और पेट काटकर की थी। अपनी सारी सुख-सुविधाओं का त्याग कर एक-एक पैसा उनके लिए जोड़ा था। बच्चे सेटल हो गए तो उन्हें लगा कि उनका दायित्व पूरा हो गया और आगे का जीवन अब आराम से कटेगा। उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री के साथ मिलकर रिटायरमेंट का प्लान बनाना शुरू कर दिया था। उन दोनों ने विचार किया कि अब बहुत हो गया सरकारी क्वार्टर में रहना। रिटायरमेंट के बाद उसे खाली करना ही पड़ेगा तो रहने के लिए अब अपना घर ज़रूरी हो गया है। अपने खुद के घर में बेटे-बहुओं के साथ अपनी बाकी जिंदगी चैन से काट देंगे। नंदन के लिए भी  बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते आ रहे थे। लेकिन उनकी बड़ी बहू गायत्री जिद पर अड़ी थी कि मेरे मामा की बेटी नंदिनी से ही नंदन की शादी होनी चाहिए। जबकि सावित्री जी चाहती थी कि नंदन की शादी उनकी सखी माधुरी की बेटी काजल से हो लेकिन गायत्री के आगे उनकी एक न चली। मजबूरन नंदिनी से नंदन की शादी करनी पड़ी।
रिटायरमेंट के बाद श्याम सुंदर बाबू ने अपना सारा पैसा जमीन खरीदने में ही लगा दिया। दोनों बेटों के सहयोग से दो मंजिला मकान भी बनकर तैयार हो गया। बड़े बेटे चंदन ने अपने नाम से ही रजिस्ट्री करवाई। क्योंकि मकान बनवाने में ज्यादा खर्च उसका लगा था। इसलिए श्याम सुंदर बाबू ने कोई आपत्ति नहीं जताई। बड़े धूमधाम से उन्होंने गृह प्रवेश किया। श्याम सुंदर बाबू और सावित्री जी को अब अपना जीवन सार्थक लग रहा था क्योंकि अपने सभी दायित्वों का निर्वाह उन्होंने कर दिया था। सावित्री जी ने कहा कि, ‘प्रभु से प्रार्थना है कि बाकी का जीवन उनकी सेवा और सत्संग में गुजरे।’
छुट्टियों में नंदन भी घर पर आया हुआ था। नंदिनी प्रेग्नेंट थी। श्याम सुंदर बाबू और सावित्री जी चाहते थे कि सभी परिवार एक साथ रहे। उन दोनों ने चंदन को बुलाया और कहा कि, ‘बेटे मैं चाहता हूं कि तुम दोनों का परिवार एक साथ ही रहे।
नंदन ने भी कहा कि ‘ठीक है पापा जैसा आप उचित समझें। वैसे भी तो भैया की नौकरी इसी शहर में है। बढ़िया रहेगा सभी लोग साथ रहेंगे तो आप लोगों की सेवा भी होगी और बच्चों से आप लोगों का मन भी लगा रहेगा। आराध्या और अध्यात्म भी तो आप दोनों के बगैर रह नहीं पाते हैं। मैं भी चाहता हूं कि मेरा पहला बच्चा आप लोगों के सानिध्य में ही पैदा हो और दादा-दादी के आशीर्वाद से फले-फुले।’
श्याम सुंदर बाबू बोले, ‘कितना! समझदार है तू नंदू। आज सीना चौड़ा हो गया तेरी बातों से।’ जब ज्यादा प्यार दिखाना होता था तो नंदू-चंदू नाम से ही अपने बच्चों को बुलाते थे।  
(क्रमश:)