प्रयोगशाला में पकौड़ा 

जिस तरह हमारे यहां पकौड़ों पर बात हो रही थी और इसको लेकर काफी चर्चा भी हुई थी। उस हिसाब से आने वाले समय में मेरा ये दावा है कि हमारी सरकार हमारे यहां के छात्रों के लिये बहुत जल्द ही ‘पकौड़ा विनिर्माण एवम प्रशिक्षण केंद्र’ खोल दे। तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। 
 वैसे भी हम ‘मेक इन इंडिया’ में विश्वास करते हैं, तो अगर हमारी सरकार के इस महत्वकांक्षी परियोजना की शुरूआत हुई और संयोग से ये कार्यक्रम चल निकला। तो हमारे देश में पकौड़ा जितना लोकप्रिय है। उसको देखते हुए, हमारे युवाओं को एक बहुत ही बेहतरीन रोज़गार मिल सकता है और हमारे देश में जिस हिसाब से शाम को हमारे यहां के ठेलों पर जो लंबी-लंबी कतारें लगतीं हैं। उसको देखते हुए जब यूरोपीय देशों की नज़र हमारे यहां के पकौड़ा बेचने वाले ग्रेजुएट लड़कों पर पड़ेगी, तो ये यूरोपीय देश अपने सैनिकों को खाड़ी मुल्कों से हटाकर हमारे देश में इन पकौड़ा बनाने वाले युवाओं की सुरक्षा में लगा देंगी। फिर पकौड़ा बनाने वाले युवाओं को थोक के भाव में हायर करने लगेंगी। जिससे हमारे देश का जी.डी.पी. अचानक से बहुत बढ़ जायेगा। इस बात के लिये प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर ये सरकार का मास्टर स्टोक मान लिया जायेगा और विपक्ष फिर से बैकफुट पर होगा।
उसके बाद विज्ञान एवम् तकनीक की डिग्रियों का कोई महत्व नहीं होगा।  जीव विज्ञानी, रासायन शास्त्री, भौतिकी शास्त्रियों का मोहभंग विज्ञान से हो चुका होगा। प्रयोगशालाओं का उपयोग पकौड़ा तलने के लिये होगा। तब पकौड़ों के प्रकार और उसके लिये नये-नये अनुसंधान केन्द्र खोले जायेंगे। ये भी प्रयोग किया जायेगा कि चंद्रमा और अन्य ग्रहों पर अगर पकौड़े तले जायें तो उनका स्वाद हमारे यहां के पकौड़ो से किस प्रकार अलग होगा या चांद पर पकौड़ा किसने सबसे पहली बार बनाया। ये बात कोर्स में पढ़ाई जायेगी। पकौड़ों पर तब राष्ट्रीय सैमीनार होंगे। देश के हर हिस्से में पकौड़ा तलने की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जायेगा। ‘पकौड़े की पाक-कला’ पर  देश के सभी हिस्सों से रिपोर्टें मंगवाई जायेंगी।
इन रिपोर्टें से मंगवाये गये सर्वे से थीसिसें लिखी जायेगी और पकौड़ा कैसे बनायें? इस विषय पर आने वाले समय में पी.एच.डी. की डिग्रियां मिलेंगी। यूनिवर्सिटीयां, प्याज के पकौड़े, साग के पकौड़े, मेथी के पकौड़े, मिर्ची के पकौड़े, सरीखे पाठयक्रम अपनी पाठय पुस्तकों में रखेंगीं।
मिशन चांद और मिशन मंगल के बाद पकौड़ा तलने के लिये और मुफीद ग्रहों पर हमारे यान जायेंगे। ये सब इसरो और नासा के सहयोग से किया जायेगा। सन् दो हजार नब्बे तक अलग-अलग ग्रहों पर देश का पकौड़ा तलने को लेकर एक वृहद कार्यक्रम रखा जायेगा। सन् इक्कीस सौ पर किस ग्रह पर कितना पकौड़ा तला जाये। इसका उत्पादन कैसे बढ़ाया जाये इस पर राष्ट्रीय संगोष्ठियां होंगी।
इतना सब हो जाने के बाद इसके मार्किटिंग की बात होगी। जिस तरह से अंग्रेजों ने हमें चाय पिला-पिला कर हमें चाय की आदत लगवा दी थी। उसी तरह हम अंग्रेजों के मुंह में मुफ्त के पकौड़े डाल-डालकर उन्हें पकौड़ा खिलाने की आदत डाल देंगें। इस तरह पकौड़ा उत्पादन करके हम चांद, मंगल और अन्य ग्रहों पर पकौड़ा तलने और बेचने का एक अनोखा रिकॉर्ड बनायेंगें और इस तरह हम पकौड़ा बेचकर अपने युवाओं को रोज़गार देंगे।