खाड़ी देशों के साथ भारत के कूटनीतिक रिश्तों का स्वर्ण युग 

भारत का खाड़ी देशों के साथ हमेशा से ही महत्वपूर्ण आर्थिक और कूटनीतिक  सम्बंध रहा है। क्योंकि एक तरफ  जहां भारत की ऊर्जा निर्भरता खाड़ी देशों पर है, वहीं भारतीयों के लिए रोजगार के बड़े जरिये भी खाड़ी देश हैं। खाड़ी देशों में 75 लाख से ज्यादा भारतीय काम करते हैं जो हर साल करीब 55 अरब डॉलर की रकम स्वदेश भेजते हैं। यही वजह है कि आजादी के बाद से ही खाड़ी देश भारत की विदेश नीति के केंद्र में रहे हैं। लेकिन मई 2014 के बाद यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने पहले कार्यकाल हेतु शपथग्रहण के बाद से तो खाड़ी देशों के प्रति हमारी समूची कूटनीति ही रूपांतरित हो गई। इससे भारत और इन देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों  मेें एक नई गति और दिशा स्पष्ट हुई है। इससे हमें वैश्विक परिदृश्य में आर्थिक और सामरिक रूप से बेहतर स्थान भी प्राप्त हुआ है। साल 2014 के बाद से भारत के संबंध खाड़ी देशों के साथ लगातार बेहतर हुए हैं । इसे  2014 के बाद से भारत और खाड़ी देशों के बीच उच्चस्तरीय मुलाकातों और आपसी क्त्रियाकलापों से भी समझा जा सकता है। खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कई बार खाड़ी देशों की यात्रा करना। इसमें उनकी तीन बार तो संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा ही शामिल है। इसी तरह उन्होंने कतर, ओमान और बहरीन कि यात्राएं भी कई बार की हैं। सऊदी अरब के बादशाह मोहम्मद बिन सलमान ने प्रधानमंत्री मोदी को सऊदी अरब के सर्वोच्च नागरिक सम्मान किंग ‘अब्दुल्ला अजीज साश’ से नवाजा है। इसके पहले संयुक्त अरब अमीरात मोदी जी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान यानी जायद मेडल से भी सम्मानित कर चुका है।  इन विदेश यात्राओं के अलावा भी प्रधानमंत्री मोदी अलग-अलग बहुपक्षीय मंचों पर खाड़ी देशों के नेताओं से मिलते रहे हैं, जैसे कि जून 2019 में, जापान मेें हुई जी-20  बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कई खाड़ी देशों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की। इन  मुलाकातों  के दौरान हुई बातचीत में उन्होंने आपसी व्यापार-निवेश, सुरक्षा और रक्षा संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर दिया। वैसे भारत और खाड़ी देशों के बीच संबंधों का यह सिलसिला कोई नया नहीं है। सन 1955 मेें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सऊदी अरब की राजधानी रियाद की यात्रा की थी, वहीं 1983 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और साल  2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी सऊदी अरब की यात्रा की थी। लेकिन देखने वाली बात यह है कि जहां पिछले 6 दशकों से भी ज्यादा समय में देश के सिर्फ  तीन प्रधानमंत्रियों द्वारा खाड़ी की यात्रा की गई, वहीं पिछले करीब साढ़े पांच सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने खाड़ी के विभिन्न देशों की 7 बार यात्रा की है। इसके हमें सकारात्मक नतीजे भी मिलने शुरू हो गए हैं। मोदी सरकार के सफल कूटनीतिक प्रयासों की वजह से ही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों का भारत को हाल के सालों में सभी मामलों में सहयोग और समर्थन प्राप्त हुआ है। फरवरी 2019 में जब जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में आतंकवादियों ने सेना के ट्रक पर आत्मघाती हमला किया था, जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया था और इससे दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था। तब इस तनाव को खत्म करने के लिए सऊदी अरब ने ही दोनों देशों के बीच संदेशों के आदान प्रदान का काम किया था। इसी तरह जब पिछले दिनों भारत ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया तो भी भारत और पाकिस्तान के बीच बड़े तनाव को कम करने में सऊदी अरब ने भूमिका निभाने की कोशिश की, साथ ही वह भारत के साथ डटकर खड़ा भी रहा। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कश्मीर मामले पर तुर्की और मलेशिया की प्रतिक्रिया पाकिस्तान के साथ खड़े रहने की रही। मगर सऊदी अरब ने कश्मीर मुद्दे पर बढ़ते संकट को लेकर पाकिस्तान को साफ  चेताया कि वह संयम से काम ले। इस संबंध में जेएनयू के अंतर्राष्ट्रीय सम्बंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर पी.आर. कुमारास्वामी का मानना हैं कि खाड़ी देशों का सकारात्मक सहयोग मोदी की सफल कूटनीतिक प्रयासों का ही परिणाम है।भारत के खाड़ी देशों के साथ जब हम रिश्तों की बात करते हैं तो हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इन ज्यादातर देशों के ईरान के साथ तनावपूर्ण रिश्ते हैं। साथ ही सऊदी अरब द्वारा कतर का बहिष्कार किया जा रहा है, ऐसे जटिल माहौल के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी की सफल और कुशल नीतियों के चलते भारत को चाबहार बंदरगाह जैसे मुद्दे पर सफलता प्राप्त हुई, ईरान से तेल आयात करना बंद नहीं किया गया और सऊदी अरब तथा कतर के साथ हिन्दुस्तान के एक-साथ दोस्ताना संबंध हैं जिस कारण हम कतर से हाइड्रोकार्बन पर्याप्त मात्रा में आयात कर पा रहे हैं। ये सब सफलताएं नि:संदेह प्रधानमंत्री मोदी की कुशल खाड़ी डिप्लोमेसी का नतीजा हैं।

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