कैनेडा का तरल सोना

‘ऐज़ कैनेडियन ऐज़ मैपल सिरप’ (As Canadian As Maple Syrup)  यह मशहूर कहावत कैनेडा पहुंच कर ही समझ आती है।  इस देश के ध्वज से लेकर लोगों के रहन-सहन तक, हरे-भरे दरख्तों से लेकर कृषि तक एवं निर्यात से लेकर मीठे तक ‘मैपल’ की अहम भूमिका है। कहा जा सकता है कि यह एक प्रकार से कैनेडा की पहचान का प्रतीक है।  कैनेडा में मैपल के वृक्ष बहुतायत में पाये जाते हैं। इस वृक्ष की दस किस्में तो केवल कैनेडा में ही पाई जाती हैं।  इस वृक्ष की विशेषता यह है कि कैनेडा की कंपकंपाती सर्दी में यह अपनी जड़ों एवं तने में स्टार्च जमा कर लेता है तथा फिर इसे मीठे रस में परिवर्तित कर देता है। शरद ऋतु समाप्त होने पर इसके तने में छोटे-छोटे छिद्र करके उनमें से इस मीठे रस को निकाल लिया जाता है तथा फिर अच्छी तरह से पका लिया जाता है, जिससे रस में पानी की मात्रा नाममात्र को रह जाती है तथा यह रस गाढ़ा हो जाता है। फिर इसे छान कर साफ बोतलों में बंद करके सील कर दिया जाता है तथा यह कहलाता है कैनेडा का दुनिया भर में प्रसिद्ध ‘मैपल सिरप’।  ग्लूकोज़, फ्रोकटोस, कार्बोहाइड्रेट्स, मैग्नीशियम, ज़िंक, कैल्शियम, रिबोफलेविन तथा ऐमीनो एसिड्स जैसे तत्वों से भरपूर इस स्वादिष्ट सिरप का उपयोग कैनेडा एवं अमरीका के अतिरिक्त पूरे यूरोप और आस्ट्रेलिया में भी भिन्न-भिन्न प्रकार के केक, चॉकलेट, टाफियां, बिस्कुट, पाइज़, सैंडविच, ब्रैड, आईसक्रीम बनाने हेतु किया जाता है। नाश्ते में खाए जाने वाले पकवानों जैसे पैनकेक, वोफल्ज़, दलिया अथवा फिर ताज़ा फलों की मिठास में वृद्धि करने के लिए अथवा चाय या कॉफी का आनंद मानने के लिए भी चीनी के स्थान पर ‘मैपल सिरप’ का इस्तेमाल किया जाता है। यह शहद की भांति तरल, खासकर बच्चों में बेहद लोकप्रिय है। विश्व के लगभग 82.3 प्रतिशत ‘मैपल सिरप’ का उत्पादन अथवा निर्यात कैनेडा ही करता है। पिछले वर्ष ही ‘मैपल सिरप’ तथा इससे बनाई गई वस्तुओं जिनकी अनुमानित कीमत 312.9 मिलियन डॉलर (अमरीकी) है, का निर्यात अकेले कैनेडा ने ही किया। इसी कारण ‘मैपल सिरप’ को कैनेडा में ‘लिक्विड गोल्ड’ (तरल सोना) भी कहा जाता है।क्यूबिक, ओंटैरियो, नोवा सकोटिया, न्यू इंग्लैड, न्यू बरनज़विक, ब्रिटिश कोलम्बिया, मैनीटोबा एवं सकैचूवन में खासतौर पर यह तरल सोना बनाया जाता है। मैपल वृक्षों को लगभग 30 साल की आयु के बाद इस सिरप को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। प्रत्येक शरद ऋतु के बाद लगभग एक महीना तक एक वृक्ष में से लगभग 35-50 लीटर रस निकाला जा सकता है तथा यह प्रक्रिया वृक्ष की उम्र लगभग 100 वर्ष होने तक चलती रहती है। इसके बाद उस वृक्ष में से रस निकालना बंद कर दिया जाता है। आज तक यह किसी को भी नहीं पता कि यह प्रक्रिया कब और कैसे शुरू हुई। कई दशकों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आती इस प्रक्रिया का वर्णन पुरातन लोक-गाथाओं में भी मिलता है।

लेखिका व तस्वीरें : सरविंदर कौर
चीफ एग्ज़ीक्यूटिव ‘अजीत प्रकाशन समूह’
E-mail  : sarvinder_ajit@yahoo.co.in 
Blog : sarvinderkaur.wordpress.com