अयोध्या के बाद क्या अब काशी और मथुरा विवाद खोला जाएगा ?

अयोध्या मसले पर सुप्रीम फैसला आ गया है और इसके साथ वर्षों पुराना विवाद समाप्त हो गया है। ज्ञात इतिहास में पहला विवाद 1850 के दशक में शुरू हुआ था। 1880 के दशक में एक अदालती आदेश ने वह विवाद समाप्त कर विवादित स्थल के एक हिस्से पर हिन्दुओं को दूसरे हिस्से पर मुसलमानों को क्रमश: पूजा करने और नमाज पढ़ने का अधिकार दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उस अदालती फैसले की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। उसी के आधार पर कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि विवादित स्थल पर दोनों पक्षों की उपासना का अधिकार साबित होता है। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला स्थल हिन्दुओं का जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद खड़ी थी, वह मुसलमानों का। लेकिन तथ्य यह भी है कि अब वहां मस्जिद नहीं है और बाबर के समय मस्जिद बनने के पहले वह मुसलमानों का स्थल नहीं था। मस्जिद 1992 में ही टूट चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी याद किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए उस मस्जिद को तोड़ दिया गया था।
इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए पांचों जजों ने मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन उपलब्ध कराने का आदेश सरकार को दिया और पूरे विवादित स्थल को मंदिर बनाने के लिए केन्द्र सरकार को सुपुर्द कर दिया। इससे बेहतर फैसला वह कर ही नहीं सकता था। हालांकि कुछ हिन्दुवादी तत्व अयोध्या में कहीं भी बाबरी मस्जिद के फि र से निर्माण का विरोध करते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद उनके विरोध का कोई मतलब नहीं रहा। पहले से ही अयोध्या में अनेक मस्जिदें हैं। एक और मस्जिद बन जाने से वहां कोई फ र्क नहीं पड़ेगा।अयोध्या में राममंदिर-बाबरी मस्जिद का विवाद तो हल हो गया है। विवादित स्थल के एक छोटे टुकड़े के साथ कुल 67 एकड़ जमीन पर अब एक भव्य राम मंदिर बनेगा और शायद अब भारत में हिन्दू आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र बन जाए, लेकिन यह मानना नादानी होगी कि इसके साथ पूजा स्थलों को लेकर हिन्दू-मुस्लिम विवाद हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। गौरतलब है कि जो लोग राम मंदिर का आंदोलन चला रहे थे, वे काशी और मथुरा के मसले को भी उठाया करते थे। उनका एक नारा था, ‘‘अयोध्या तो झांकी है, काशी मथुरा बाकी है।’’ काशी और मथुरा ही क्यों, ऐसे सैंकड़ों नहीं, तो दर्जनों मुस्लिम स्थल हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था। बहरहाल, राम मंदिर के लिए आंदोलन करने वाले नेता कहा करते थे कि मुसलमान हमें अयोध्या, मथुरा और काशी दे दें। ये तीनों मिलने के बाद हम किसी और स्थल पर दावा नहीं करेंगे। इसके पीछे उनका तर्क होता था कि राम के अलावा कृष्ण और शिव हम हिन्दुओं की आस्था के सबसे बड़े केन्द्र हैं। यदि वे तीनों हमें मिल जाएं, तो फि र हम किसी और पर दावा नहीं करेंगे। अब अयोध्या का विवादित स्थल राम मन्दिर के लिए उन्हें उपलब्ध हो गया है। इसलिए इसकी पूरी संभावना है कि वे काशी और मथुरा के विवादित स्थल को पाने के लिए भी जोर मारेंगे। काशी में विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी मस्जिद है। वह मस्जिद मूल विश्वनाथ मंदिर के ऊपरी भागों में बदलाव करके ही बनाई गई थी। अयोध्या में राम मन्दिर होने का तो कोई ऐतिहासिक प्रमाण ही नहीं है। पुरातत्व विभाग की खुदाई के आधार पर एक गैर मुस्लिम स्ट्रक्चर वहां होने की बात साबित हुई थी। उसके आधार पर वह स्थल मंदिर के लिए दे दिया गया। यदि सुप्रीम कोर्ट का यह ताजा फैसला नजीर बनता है, तो काशी में ज्ञानवापी मस्जिद का विश्वनाथ मंदिर पर बनना एक ऐतिहासिक तथ्य है। उस मस्जिद पर तो हिन्दुओं का दावा कानूनी रूप से और भी मजबूत होगा। यहां यह गौर करना भी जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद भले मुसलमानों की थी, लेकिन मस्जिद बनने के पहले उस जमीन पर उनका मालिकाना हक साबित नहीं होता। उसी के आधार पर ज्ञानवापी मस्जिद स्थल पर मस्जिद बनने से पहले उसका मालिकाना हक नहीं होना एक तथ्य है। वैसे चूंकि औरंगजेब के समय में वह मस्जिद बनी थी, तो शायद बादशाह होने के नाते उसने उस जमीन का मालिकाना हक भी मस्जिद को दिया होगा। सच्चाई चाहे जो भी हो, उस पर विवाद की संभावना से हम इन्कार नहीं कर सकते। मथुरा में भी कृष्ण के जन्मस्थान मंदिर के पास एक ईदगाह है। उसके बारे में भी इतिहास यही कहता है कि वह औरंगजेब के जमाने में बनाया गया था। वैसे वहां कृष्ण मंदिर भी मौजूद है, लेकिन कहा जाता है कि मूल मंदिर उसी स्थल पर था, जहां आज ईदगाह है। ईदगाह हटाने की मांग भी हिन्दूवादी संगठन उठाते रहते हैं। अयोध्या में राम मन्दिर के साथ मथुरा में कृष्ण के और भी भव्य मंदिर बनाने की मांग को वे जोर-शोर से उठा सकते हैं। जाहिर है, अयोध्या फैसले के बाद मंदिर- मस्जिद विवाद समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि यह और भी तेज होने की संभावना है। इसी आशंका के कारण मुस्लिम पक्ष अयोध्या के विवादित स्थल पर अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। अब देखना होगा कि अब नये विवाद देश और समाज के सामने कितनी गंभीर चुनौती पेश करते हैं और उससे समाज और देश कैसे निबटता है। (संवाद)