बहुत घातक है कोबाल्ट-60

कोबाल्ट का संषलेशनात्मक आईसोटोप है कोबाल्ट-60, परमाणु भट्ठी में इसको बनावटी तौर पर तैयार किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप में नहीं मिलता। इसको कोबाल्ट-59 के साथ एक न्यूट्रान टकरा कर पैदा किया जाता है। कोबाल्ट-60 का अर्द्ध आयु काल 5.27 वर्ष होता है। कोबाल्ट-60 एक सख्त नीली स्लेटी रंग की धातु है जो वैसे देखें तो लोहे तथा निकल से मिलती-जुलती लगती है। विश्व में अर्जेन्टीना, कनाडा, रूस के पास कोबाल्ट-60 के बड़े भंडार हैं। यह देश पूरी दुनिया के देशों की कोबाल्ट-60 की ज़रूरतों को पूरे करते हैं। 
उपयोगिता
कोबाल्ट-60 को उच्च तीव्रता और तेज घुसने की क्षमता वाली गामा विकरणें उत्पन्न करने का स्रोत माना जाता है। इसके अलावा भी कोबाल्ट-60 की उपयोगिता कितने ही क्षेत्रों में उल्लेखनीय है। रसायानिक तौर पर इसका प्रयोग ट्रेसर के तौर पर किया जाता है। इससे मैडीकल उपकरणों को ज़र्म रहित किया जाता है। कैंसर जैसे भयानक रोग के इलाज के लिए कोबाल्ट थैरेपी में, कोबाल्ट-60 से गामा किरण पुंज उत्पन्न किया जाता है। आज कोबाल्ट थैरेपी व्यापक तौर पर प्रयोग किए जाने लगी है। विकरणों द्वारा भोजन पदार्थों तथा रक्त को भी ज़र्म रहित किया जाता है। कोबाल्ट-60 को रोडियो धर्मी पदार्थों वाला एक ‘गंदा हथियार’ माना जाता है। कोबाल्ट से दूषित स्थान विरान हो जाते हैं जो उजड़ जाते हैं। 
क्यों घातक है?
जब कोबाल्ट-60 का अपघटन होता है, इससे उत्पन्न गामा विकरणें यदि बाहरी तौर पर चमड़ी के सम्पर्क में आ जाएं (अधिक मात्रा में) तो चमड़ी पर जलने के कारण घाव हो जाते हैं। विकरणों के कारण बुखार हो जाता है। कई बार विकरणें किसी की जान भी ले लेती हैं। यदि कम मात्रा में गामा विकरणों को चमड़ी, लीवर, गुर्दे और हड्डियां सोख लें तो कैंसर रोग लग जाता है। गामा विकरणों की आयनक शक्ति और घुसने की  क्षमता अल्फा-बीटा विकरणों से कहीं अधिक होती है। एक्स किरणों से भी अधिक। तीसरी दुनिया के लोग अब एक्स किरणों के स्थान पर गामा विकरणों का ही प्रयोग करने लगे हैं। इसका लाभ यह भी है कि कोबाल्ट-60 से उत्पन्न गामा विकरणें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि इनके लिए बिजली की कोई ज़रूरत नहीं पड़ती। कोबाल्ट-60 के प्रभाव से जो जलने के घाव हो जाते हैं उनको ठीक होने को काफी समय लग जाता है। 
कोबाल्ट-60 का निपटारा
जब किसी कम्पनी ने कोई रेडियोधर्मी विकिरणों का स्रोत या यंत्र कबाड़ बनना हो तो पहले परमाणु ऊर्जा विभाग से स्वीकृति लेनी पड़ती है। परमाणु ऊर्जा विभाग की हिदायतें बताती हैं कि विकिरणों के स्रोत को किस ढंग से निपटाना है। इसके तीन ढंग हो सकते हैं। पहला तो सीवरेज में बहा दिया जाए लेकिन इसके लिए प्रतिदिन में 0.37 एम.बी.क्यू की मात्रा तय है। दूसरा ढंग है ज़मीन में गड्डा बनकर उसमें दबा दिया जाए, लेकिन इसके लिए 3.7 एम.बी.क्यू की मात्रा तय है। एक शर्त यह भी है कि गड्डा 1.2 मीटर से ज्यादा गहरा हो। दोनों गड्ढे कम से कम एक दूसरे से 1.8 मीटर की दूरी पर होने चाहिए। तीसरा ढंग है कोबाल्ट-60 को इंसीनेरेटर में जला कर खत्म कर दिया जाए।
सावधान होने की ज़रूरत
विकिरणों से संबंधित हादसे खतरनाक होते हैं। आज जब ई-कचरा ढेरों का रूप ग्रहण कर रहा है तो लोगों को सावधान होने की बेहद ज़रूरत है। अगर इसी तरह कबाड़ में से ज़िंदा बम मिलने लगे तो कहीं निर्दोष लोग ऐसे ही न मर जाएं। बहुत भयानक होते हैं विकिरणों के स्रोत। अस्पताल, खोज, प्रयोगशालाएं और यूनिवर्सिटयां आदि और सावधान हो जाएं।