पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ को सज़ा-ए-मौत

कहा जाता है कि पापी को मारने के लिए पाप ही बड़ा बलवान होता है। परवेज़ मुशर्रफ गत कई वर्षों से पाकिस्तान से रफू-चक्कर होकर दुबई में बैठा है। सन् 2007 में इसने अपने दौर-ए-हुकूमत के समय पाकिस्तान पर आपातकाल लगाया था। इसी जुर्म में पाकिस्तान की विशेष न्यायालय ने इसे मौत की सज़ा सुनाई है। जनरल परवेज़ मुशर्रफ को हकूमत का चस्का सन् 1999 में तब लगा जब उसने नवाज़ शरीफ का तख्ता पलट कर सरकार पर कब्ज़ा कर लिया। मई, 2000 में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि पाकिस्तान में चुनाव करवाए जाएं। मुशर्रफ जून 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति रफ़ीक तरार को हटाकर स्वयं ही राष्ट्रपति बन गए। परवेज़ मुशर्रफ पर एक काला दाग भारत की ओर से यह भी लगा कि इसने जनरल होते हुए भारत के साथ कारगिल की लड़ाई लड़ी। हालांकि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए एक बस लेकर लाहौर पहुंचे थे परन्तु इस चालबाज जनरल ने सारा खेल ही बिगाड़ दिया। कारगिल की लड़ाई भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में एक कड़वा अध्याय बन गई, जिसे ज्यादातर भारतीय हिन्द-पाक दोस्ती की पीठ में छुरा घोंपने की कार्रवाई मानते हैं। हम यहां इतिहास के कई दर्दनाक पन्नों को पलटना चाहते हैं, ताकि इस शातिर दिमाग के कुकर्मों को जग-जाहिर कर सकें। नवाज़ शरीफ के बारे में तो ऐसी खबरें भी आने लगी थीं कि यह तानाशाह उसे फांसी के तख्ते तक ज़रूर ले जायेगा परन्तु सऊदी अरब और अमरीका के दबाव में यह फांसी न दे सका और नवाज़ शरीफ को पाकिस्तान छोड़ कर चले जाने की शर्त रख दी। वहीं नवाज़ शरीफ ने (सन् 2004 में) एक साक्षात्कार में यह कहा था कि वह जनरल मुशर्रफ से नहीं डरते और न ही किसी तरह की गिरफ्तारी से। नवाज़ शरीफ मुशर्रफ से किसी भी शर्त पर कोई भी समझौता नहीं करेगा।वह सऊदी अरब में रह कर परवेज़ मुशर्रफ के काले कारनामों का कच्चा चिट्ठा जग-जाहिर करते रहेंगे। मुशर्रफ ने पाकिस्तान को एक तमाशा, एक मज़ाक का मजमून बना दिया है। कारगिल संघर्ष के पश्चात् अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे आगरा में बातचीत के लिए बुलाया क्योंकि उनका मानना था कि दोस्त बदले जा सकते हैं, परन्तु पड़ोसी नहीं। इसलिए पड़ोसी कैसा भी हो उसे सीधे रास्ते पर लाने का प्रयास जारी रखना चाहिए। इस पर नवाज़ शरीफ ने कहा था कि परवेज़ मुशर्रफ भरोसे के काबिल नहीं है, इसे आगरा में बुलाना भारत की राजनीतिक भूल थी।बलूचिस्तान के राष्ट्रवादी नेता और बलूचियों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले नवाब अकबर खान बुगती को बलूचिस्तान के कोहलू ज़िले में एक स्थान पर धोखे से पाक फौज द्वारा कत्ल कर दिया गया और साथ में कई बलूची सहयोगी भी मारे गए। इसके पश्चात् बलूचिस्तान में संघर्ष को दबाने के लिए इस ज़ालिम ने कई प्रयास किए। एक अनुमान के अनुसार 25,000 से अधिक बलूची युवकों का अपहरण करके मौत के घाट उतार दिया, जिनका आज तक कोई सुराग नहीं मिला। इस पर भी इसकी रक्त पिपासा शांत न हुई और इसने रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के बाद जब बेनज़ीर भुट्टो अपनी बस में बैठी तो उसे आत्मघाती हमले के साथ मार दिया गया। इसी आरोप में मुशर्रफ पाकिस्तान से भगौड़ा हुआ और कई यूरोपीय देशों में धक्के खाने के पश्चात् दुबई में आकर रहने लगा। लाल मस्जिद की घटना तो पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा जानता है। कई नमाज़ियों को इसने दहशतगर्द कहकर मौत के घाट उतार दिया।  मुशर्रफ से पूर्व जनरल जिया-उल-हक ने एक बहाना बनाकर नवाब कसूरी की हत्या की साज़िश में जुल्फिकार अली भुट्टो का नाम घसीटा और उसे सज़ा-ए-मौत दे दी। पाकिस्तान की राजनीति का यही तो दुखद पहलू है कि वहां जो सत्ता पर है, उसे ही जीवित रहने का अधिकार है बाकि के या तो देश छोड़ जाएं या फांसी के तख्ते पर झूल जाएं। नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम शरीफ ने एक बार कहा भी था कि फौजी जरनैलों के दबाव में एक जज ने उसके पिता को पनामा पेपर लीक के मामले में दोषी करार देकर 7 वर्ष की कैद सुना दी। क्या परवेज़ मुशर्रफ को सज़ा-ए-मौत देने के मामले में फौजी जरनैलों का मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद पर कोई दबाव है, जिसके अधीन वह परवेज़ मुशर्रफ की अदालत में गैर-मौजूदगी पर भी सज़ा की घोषणा कर गए। यह भी हकीकत है कि पाकिस्तान का कोई भी फौजी जरनैल हिन्दोस्तान से समझौते का कभी पक्षधर नहीं रहा। जब कभी बात अमन-शांति के लिए आगे बढ़ी तभी हिन्दोस्तान पर आतंकी हमला होता रहा। कभी कारगिल, कभी पठानकोट, कभी उरी तो कभी पुलवामा। हर बार भारत को अमन-शांति के लिए आगे कदम बढ़ाने पर भारी कीमत अदा करनी पड़ी। आतंकवाद के जन्मदाता जनरल जिया-उल-हक ने एक बार कहा भी था कि पाकिस्तान, हिन्दोस्तान से सीधी लड़ाई कभी लड़ भी नहीं सकता। इसीलिए प्रॉक्सी वार ज़रूरी है। आई.एस.आई. को जिया-उल-हक ने इस काम पर लगा दिया परन्तु परवेज़ मुशर्रफ उससे भी चार कदम आगे बढ़ा। सन् 2003 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान सार्क सम्मेलन में गए थे तब ‘सीज़फायर’ का एक समझौता हुआ था जिस पर परवेज़ मुशर्रफ ने अटल जी को आश्वासन दिया कि वे पाकिस्तान के नियंत्रण वाले किसी भी इलाके को किसी भी तरह से आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देंगे। कहा जाता है चोर चोरी से जाए पर हेराफेरी से नहीं जा सकता। सीमा पार से आतंकवाद को बढ़ावा न देने के अपने वायदे से पाकिस्तान कई बार मुकरा और आतंकवादियों को भारत भेजने का सिलसिला शुरू हो गया। भारत का एक अध्यापक जो सईद सलाउद्दीन के नाम से पाकिस्तान में जा बैठा और भारतीय युवकों को आतंकवाद के रास्ते चलने की योजना बनाने लगा। भारत में अलगाववादी धन और हथियारों के भरोसे घाटी के अमन-चैन को आग लगाने लगे। यह सारा धन जो पाकिस्तान के विकास पर खर्च हो सकता था, उसे भारत के भाड़े के आतंकवादियों तक भेजा जाने लगा। यह वही परवेज़ मुशर्रफ है, जिसने एक बार कहा था कि ओसामा बिन लोदन, हाफिज़ सईद, मसूद अज़हर और हक्कानी यह पाकिस्तान के हीरो हैं। क्या परवेज़ मुशर्रफ ऐसा कह कर आतंकवाद को शह नहीं देते रहे? मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मामला सन् 2013 से ही लंबित था परन्तु बड़ी धीमी गति से यह मुकद्दमा चलता रहा और इसी दौरान मुशर्रफ को देश छोड़ कर जाने का मौका मिल गया। मज़े की बात यह है कि सज़ा की घोषणा के पश्चात् आर्मी के कुछ जनरल इस फैसले को बदलवाने के लिए दबाव डालते सुने गए। इसके पीछे की बात यह है कि आर्मी के कमांडर इन चीफ कंवर जावेद बाजवा अपनी रिटायरमेंट की ओर बढ़ रहा है क्योंकि पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने उसे मात्र 6 महीने की एक्सटैंशन दी है और जो इनकी जगह लेने वाले हैं वह चाहते हैं कि जनरल बाजवा देश पर फौजी शासन न कर सके, होता यही रहा है। जब परवेज़ मुशर्रफ को तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने हटाने का फैसला किया तो जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ का तख्ता पलट दिया। पाकिस्तान आजकल आर्थिक तंगी, महंगाई और कानून व्यवस्था की बदहाली से जूझ रहा है। ऐसे में फौज को राज पलटा करना आसान लगता है। परन्तु ऐसा होगा नहीं, क्योंकि पाकिस्तानी फौज में भी धड़ेबंदी है। परवेज़ मुशर्रफ दुबई में बैठ कर भी फौज में धड़ेबंदी को हवा दे रहा है। हमें मालूम है कि यह सज़ा सिरे नहीं चढ़ेगी, क्योंकि परवेज़ मुशर्रफ पाकिस्तान आने वाले नहीं हैं और पाकिस्तान की फौज उसे वापिस लाने वाली नहीं।