प्रभु यीशु मसीह का मुक्ति प़ैगाम

सृष्टि की रचना के समय परमेश्वर ने आदमी को अपने स्वरूप और अपने जैसा उत्पन्न किया। परमेश्वर ने आदमी को अदन के बाग में खेती और रक्षा करने के लिए रखा। परमेश्वर ने आदमी को आज्ञा दी कि वह हरेक वृक्ष के फल खाए परन्तु भले-बुरे की पहचान वाले एक वृक्ष के फल खाने से मना किया था। प्रभु ने कहा था कि जिस दिन वह इस वृक्ष के फल खाएगा, वह जरूर मरेगा। एक दिन शैतान द्वारा भरमाए जाने से आदम और उसकी बीवी हव्वा ने उस वृक्ष का फल खा लिया और इस प्रकार एक मनुष्य की अवज्ञाकारी से पाप संसार में आया। पाप से मौत आई और इस तरह मौत सभी मनुष्यों में फैल गई। परमेश्वर ने भिन्न-भिन्न समयों में आदमी से दोबारा रिश्ता कायम करने की कोशिश की। परमेश्वर के साथ चलने वाले धार्मिक जन नूह ने नाव की रचना करके मनुष्य जाति की जल-प्रलय से रक्षा की। नूह के पश्चात् अब्राहम और उसके वंश को ज्ञान देने का वायदा किया। एक और धार्मिक जन मूसा के ज़रिये परमेश्वर ने मनुष्य से राबता कायम करने की कोशिश की। 
योहन्ना रचित सुसमाचार के अनुसार ‘परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, उसका नाश न हो, अपितु वह अनन्त जीवन पाए।’ जब यीशु जगत  में देह धारण करके प्रगट हुए तो उस समय जगत में पाप अपनी चरम सीमा पर था। चोरी-चकारी, मार-काट, कत्ल की घटनाएं, झूठ-अपराध आदि का बोलबाला था। ऐसे समय में किसी उद्धारकर्त्ता की जरूरत थी जो जगत को पापों से छुटकारा दे सके, क्योंकि परमेश्वर जगत से प्रेम करता है। धर्म शास्त्र में लिखा है कि आदि में वचन था और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन ही परमेश्वर था। यह सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ। यहां पर वचन प्रभु यीशु को कहा गया है जो आदि में परमेश्वर के साथ था। वचन देहधारी हुआ, परन्तु वह न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, अपितु परमेश्वर की इच्छा से उत्पन्न हुआ। प्रभु यीशु के देह धारण करने के लिए औरत से जन्म लेने की आवश्यकता थी, जिस का प्रबन्ध परमेश्वर ने नासरत (इज़राइल) की रहने वाली पवित्र कुंवारी लड़की मरियम को चुन कर किया जो परमेश्वर की दासी थी और किसी पुरुष को नहीं जानती थी अर्थात् यीशु का जन्म पवित्र आत्मा द्वारा हुआ और यीशु पवित्र व परमेश्वर का पुत्र कहलाया। पवित्र शास्त्र कहते हैं —भविष्यवाणी के अनुसार ‘एक कुंवारी पुत्र को जन्म देगी और वह उसका नाम ईमानुएल रखेगी। ईमानुएल का अर्थ है ‘परमेश्वर हमारे संग’। धर्मशास्त्र बाईबल के अनुसार उन दिनों में ऐसा हुआ कि औगस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली कि सारे जगत के लोगों के नाम लिखे जाएं। यह जगत की पहली जनगणना थी। यूसुफ नाम का पुरुष अपनी मंगेतर मरियम के साथ जो गर्भवती थी, नाम लिखवाने के लिए अपने नगर बैतलहम को गया। उन्हीं दिनों में मरियम के जनने के दिन पूरे हुए। उन दोनों ने पूरे नगर में रात काटने के लिए जगह ढूंढने की कोशिश की परन्तु जनगणना के चलते भीड़ बढ़ने के कारण कोई जगह न मिली और उनको आखिर में पशुओं के तबेले में रात काटनी पड़ी। इस प्रकार बालक प्रभु यीशु का जन्म पशुओं के तबेले में हुआ। समझा जाता है कि प्रभु यीशु का जन्म एशिया महाद्वीप के देश इज़राइल के छोटे से नगर बैतलहम में हुआ।  सारे जगत में यीशु का जन्म दिवस 25 दिसम्बर को बड़े जोश और उत्साह से मनाया जाता है। इस लिए पूरा दिसम्बर महीना ही लगातार बड़े दिन के रूप में मनाया जाता है। आएं, हम इस पवित्र दिवस पर प्रभु यीशु को अपने हृदय में जन्म लेने दें और अपने पापों को धो दें और अपने पापों का प्रायश्चित कर पवित्र जीवन जियें। 

-तरसेम मसीह