समाज के माथे पर कलंक  है कन्या भ्रूण हत्या

आज का मानव, बेशक अपने को आधुनिक मान रहा है और पत्थर युग के लोगों को असभ्य/पशु वृति का कहने में जरा-सा भी संकोच नहीं करता। जरा गौर/ध्यान से देखें आधुनिक मनुष्य के कृत्य से तो यह बात उभर कर प्रस्तुत होगी कि पत्थर युग के लोगों की भावनाएं आधुनिक युग के मानव से हज़ार दर्जे उत्तम थीं। अब देखें आधुनिक, सभ्य मनुष्य को, जो अपनी बेटी/कन्या को जन्म लेने से पहले ही मां के पेट में टुकड़े-टुकड़े कर देता है। उस समय उस बेटी का दिल/हृदय क्या कहता होगा? हम कंजकों के पैर धोकर वह जल चरणा-अमृत के रूप में पीते हैं। फिर इसी धरती पर कन्या भ्रूण हत्या होना निंदनीय है। कोई भी धर्म कन्या-भ्रूण हत्या की आज्ञा नहीं देता। न जाने फिर भी क्यों हमारा समाज कन्या भ्रूण हत्या से अपने हाथों को खून से अपवित्र करता है।आज भी हम विश्व में जगत-गुरु की उपाधि/पदवी प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए आवश्यक है कि हमें अपने समाज के माथे पर लगीं कलंक रूप से कुरीतियों को दूर करना होगा। इन कुरीतियों में प्रमुख है—कन्या-भ्रूण हत्या। इसलिए आज समय की मांग है कि हम इन बच्चियों के भविष्य को बचाएं और कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराई को इस समाज से जड़ से मिटाएं। यह हम सभी के प्रयासों से ही सम्भव हो सकेगा। आज की मांग है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’

—तलविंदर शास्त्री