हथियारों की दौड़

आज विश्व के कई भागों में भीषण युद्ध चल रहा है। रूस-यूक्रेन में हो रहे युद्ध के साथ-साथ इज़रायल तथा हमास के मध्य हो रहे युद्ध में भी विनाशकारी दृश्य देखने को मिल रहे हैं। चीन ने दक्षिणी समुद्र के ज्यादातर भाग पर हक जमाना शुरू कर दिया है, जिससे इसके दर्जनों ही पड़ोसी देशों सहित आस्ट्रेलिया से लेकर भारत तक समूचा विश्व भी प्रभावित हो रहा है। यह मामला कभी भी बड़े महायुद्ध में बदल सकता है। ऐसे वातावरण के कारण चीन के पड़ोसी देश भी हथियार खरीद कर अपनी सुरक्षा मज़बूत करने के लिए विवश हो रहे हैं। स्टाकहोम ‘इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीच्यूट’ की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार भारत सेना के साज़ो-सामान पर खर्च करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया है। अमरीका, रूस एवं चीन के बाद इसका नम्बर आता है। भारत ने वर्ष 2023 में हथियारों पर 6.92 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च किया है।
पिछले कुछ दशकों से देश की यह नीति ज़रूर रही है कि हथियारों के क्षेत्र में अधिक से अधिक उत्पादन देश में ही करने को प्राथमिकता दी जाये, इसलिए एक निर्धारित नीति के अधीन भारत ने विदेशी हथियार बनाने वाली कम्पनियों को यहां पर सैनिक हथियार बनाने के उद्योग लगाने को भी उत्साहित किया है। अपने इस यत्न में वह काफी हद तक सफल भी हुआ है। इसके बावजूद आंकड़ों के अनुसार 2019 से 2023 के बीच विश्व भर में निर्यात किये गये हथियारों में 9.5 प्रतिशत भारत का हिस्सा है। पिछले 5 वर्ष में भारत ने ही नहीं, अपितु बहुत-से एशियाई देशों ने भी इस क्षेत्र में दिल खोल कर खर्च किया है। भारत के बाद हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार सऊदी अरब है। इस पंक्ति में कतर, यूक्रेन, आस्ट्रेलिया आदि भी आते हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि पाकिस्तान आज कंगाली के किनारे पर खड़ा दिखाई दे रहा है परन्तु इसके बावजूद उसकी हथियार खरीदने की उत्सुकता कम नहीं हुई। भारत अभी तक ज्यादातर हथियार रूस से ही खरीदता रहा है, जबकि पाकिस्तान ने खरीद के इस क्षेत्र में चीन को प्राथमिकता दी है।
हम ऐसी समूची प्रक्रिया को एक बड़ी त्रासदी समझते हैं, हथियारों का संबंध विनाश के साथ है। आज के समय में अधिक से अधिक भयावह तथा जानलेवा हथियार बनाये जा रहे हैं, जिससे हमारी इस धरती को भी बड़ा ़खतरा पैदा हो गया है। इससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि एक तरफ जो देश बेहद ज़रूरतमंद हैं, जिनके ज्यादातर लोग ़गरीबी से जूझ रहे हैं जो आर्थिक रूप से लगातार बेहद कमज़ोर होते जा रहे हैं, उन देशों में भी हथियारों की बड़ी होड़ छिड़ी हुई है। भारत जैसा देश जो लगातार हथियारों पर अरबों-खरबों रुपये खर्च कर रहा है, में हर तरह के मानवीय विकास की बेहद ज़रूरत है, परन्तु इस देश का दुखांत यह बना रहा है कि बस्तीवादियों के षड्यंत्र का शिकार होकर इससे अलग हुआ देश पाकिस्तान ही इसका बड़ा दुश्मन बना हुआ है। सीमांत मामलों को लेकर 1962 में चीन की ओर से किये गये हमले के बाद भारत तथा चीन, दोनों देशों में कभी भी एकस्वर नहीं देखा गया। अकसर दोनों तरफ की सीमाओं पर तनाव बना रहता है। पाकिस्तान के साथ तो आपसी गोलाबारी प्रतिदिन की बात बन चुकी है। चाहे आज भी भारत चीन के मुकाबले में हथियारों के क्षेत्र में बहुत पीछे है परन्तु अपने आपको उसका सामना करने के लिए इसे इस दौड़ में शामिल होना पड़ रहा है। 
इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि अब तक वही देश प्रत्येक तरह से अपना सिक्का मनवाते रहे हैं जो हथियारों के पक्ष से बेहद मज़बूत थे। आज भी विश्व भर के देशों में ऐसी होड़ लगी दिखाई देती है। पिछली सदी में विश्व के दो महायुद्ध से सबक लेकर ज्यादातार यूरोपियन देशों ने अपनी सीमाओं को बेहद नरम करके आपस में सद्भावना का माहौल बनाया है तथा इससे उन्होंने बड़ी सीमा तक हथियारों की दौड़ से स्वयं को बचाने का यत्न किया है। इस बात में वह काफी हद तक सफल भी हुए हैं। इसके साथ उन्होंने अपने साधनों को विकास एवं मानवाधिकारों के लिए इस्तेमाल करने का यत्न किया है, यह क्रियान्वयन पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण बन सकता है। हम इस पक्ष से अपने देश की विवशता को ज़रूर समझते हैं परन्तु इसके बावजूद भी अपने पड़ोसियों के साथ सद्भावना बनाने के लिए हर तरह से यत्न किये जाते रहने चाहिएं। इसी में ही एशिया के इस क्षेत्र के लोगों की भलाई समझी जानी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भी हथियारों की दौड़ को कम करने के यत्न हर हाल में जारी रहने ज़रूरी हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द