तेज़ होती हथियारों की दौड़

बड़ी चिन्ताजनक बात यह है कि आज इस धरती पर अनेक स्थानों पर भिन्न-भिन्न देशों में आपसी खींचतान चल रही है, जिससे आसमान पर युद्ध के बादल छाये हुये हैं। यदि युद्ध के इतिहास संबंधी सोचा जाये तो यह सिलसिला मानवीय इतिहास के साथ ही शुरू हो गया था तथा भविष्य में भी इसका कोई अंत दिखाई नहीं देता परन्तु इसके साथ ही विचारणीय बात यह है कि पिछली सदियों के युद्धों के मुकाबले आज की सदी के युद्ध जहां बेहद ़खतरनाक बन रहे हैं, वहीं इनमें धरती के पूर्ण विनाश का ़खतरा भी बेहद बढ़ गया है। पिछली सदी में विश्व के द्वितीय युद्ध का ही उदाहरण ले ले लिया जाए, तो इसमें अमरीका द्वारा जापान के दो शहरों हिरोशिमा तथा नागासाकी पर फैंके गये परमाणु बमों ने पलों में समूचे शहरों का विनाश कर दिया था। आज उस समय से लेकर अब तक और भी बेहद विनाशकारी परमाणु बम  ईजाद कर लिये गये हैं, जिनके कारण होने वाले विनाश संबंधी कल्पना भी नहीं जा सकती। यह बात सभी देश जानते हैं परन्तु इसके बावजूद आज घातक से घातक हथियार प्राप्त करने की दौड़ लगी हुई है। यह भी कि जितने बड़े स्तर पर राशि इन घातक हथियारों पर खर्च की जा रही है, उससे धरती को ऐसा स्वर्ग बनाया जा सकता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, परन्तु यह घातक दौड़ लगातार जारी है।
विश्व में पड़ चुकी आपसी कटु शत्रुता तथा पैदा हुये अविश्वास ने हथियार प्राप्ति की इस दौड़ को और भी तेज़ कर दिया है। अपने इस क्षेत्र का उदाहरण ही लिया जा सकता है, जहां अपने-अपने कारणों के दृष्टिगत चीन तथा भारत इस दौड़ में पड़ चुके हैं। पाकिस्तान के साथ युद्ध के लगातार ़खतरे को देखते हुये भारत अपनी हथियारों की शक्ति को और भी बढ़ा रहा है। रूस तथा यूक्रेन के युद्ध में जिस तरह बेहद घातक हथियारों का उपयोग किया जा रहा है, उसने भी मनुष्य को निष्प्राण करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। रूस जैसे शक्तिशाली देश का मुकाबला करने के लिए यूक्रेन द्वारा अमरीका तथा यूरोपियन देशों से अधिक से अधिक घातक हथियार प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत भी ऐसी स्थिति में अपनी सेना को लगातार शक्तिशाली बनाने के लिए यत्नशील दिखाई दे रहा है। इसे जहां 1962 में चीन से पराजय मिली थी, वहीं अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से अब तक इसके चार युद्ध हो चुके हैं। इसलिए भारत को हर पक्ष से हथियारबंद करना देश की मज़बूरी बन चुकी है। इसी बात के दृष्टिगत केन्द्र सरकार ने बहुत-से देशों की कम्पनियों को भारत में ही हथियार बनाने का आमंत्रण दिया हुआ है तथा इस संबंध में ज्यादातर निर्माण भी कर लिया गया है। दूसरी तरफ विदेशों से भी हथियार खरीदे जा रहे हैं। अगस्त मास में रक्षा मंत्रालय ने लगभग 7800 करोड़ के हथियारों की खरीद को भी स्वीकृति दी है, जिनमें हैलीकाप्टर तथा लाइट मशीनगनें भी शामिल हैं। भारत इलैक्ट्रानिक लिमि. द्वारा भी ऐसे हथियार बनाये जाने लगे हैं। सितम्बर में स्पेन के साथ 22000 करोड़ रुपये के विमानों की खरीद का सौदा किया गया है। इसके तहत 56 विमान भारत को सौंपे जाएंगे। इनमें से 40 विमान दो कम्पनियों के मध्य हुई औद्योगिक भागीदारी के रूप में भारत में ही बनाये जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत वर्ष अक्तूबर में वडोदरा में विमानों के निर्माण के प्लांट का नींव पत्थर भी रखा था। विगत दिवस रक्षा मंत्रालय ने 45000 करोड़ रुपये की लागत से मिसाइलों तथा लड़ाकू विमानों सहित अन्य सैनिक सामान की खरीद के लिए स्वीकृति दी है, जिनमें 12 सुखोई-30 एम.के.आई. लड़ाकू विमान भी शामिल हैं। इनमें से कुछ हथियारों का निर्माण हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमि. द्वारा भारत में करना भी शामिल है।
जहां तक भारत की सैनिक सामर्र्थ्य का संबंध है, भारत विश्व की चौथी सबसे शक्तिशाली सैनिक शक्ति बन चुका है। विश्व के 145 देशों में आज अमरीका पहले स्थान पर, रूस दूसरे तथा चीन तीसरे तथा भारत चौथे स्थान पर पहुंच चुका है जिसकी थल सेना, वायु सेना तथा नौ-सेना के पास बड़ी घातक सामर्थ्य वाले आधुनिक हथियार मौजूद हैं, परन्तु अभी भी चीन की सेना इससे कहीं अधिक शक्तिशाली है, जिसके कारण भारत की भी इस ओर दौड़ जारी है। आज के हालात के दृष्टिगत भारत के लिए इस पक्ष से शक्तिशाली होना ज़रूरी बन चुका है परन्तु यह अंतहीन होती दौड़ कब तक जारी रहेगी, इस पर कोई विश्वास नहीं है, परन्तु अब इस धरती को बचाने के लिए हथियारों की इस दौड़ का ़खत्म होना बेहद ज़रूरी प्रतीत होने लगा है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द