गुटबाज़ी के कारण हरियाणा में नहीं घोषित हुए कांग्रेसी उम्मीदवार

हरियाणा कांग्रेस में भारी गुटबाजी के चलते अभी तक कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं हो पाई है। पिछले करीब एक पखवाड़े से कांग्रेसी टिकटों को लेकर बार-बार बैठकों का दौर होने के बावजूद जैसे ही कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी होने की संभावना बनती है तो उसी समय कोई न कोई अड़चन फिर खड़ी हो जाती है और उम्मीदवारों की सूची एक बार फिर रुक जाती है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान दोनों एकजुट हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव कुमारी शैलजा, सांसद रणदीप सुरजेवाला और कांग्रेस विधायक दल की पूर्व नेता श्रीमती किरण चौधरी एक तरफ हैं। हरियाणा की तीन लोकसभा सीटों अम्बाला, रोहतक व सिरसा के लिए कांग्रेस के नेताओं में लगभग सहमति बन चुकी है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक इन सीटों के लिए भी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं हो पाई है। कांग्रेस अंबाला से मुलाना के विधायक वरुण चौधरी, सिरसा से पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के नामों पर सहमत हो चुकी है। जबकि रोहतक सीट से दीपेंद्र हुड्डा या उनके परिवार के किसी सदस्य यानी नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा अथवा उनकी पत्नी आशा हुड्डा को चुनाव लड़वाने के मूड में है। कुरुक्षेत्र सीट कांग्रेस पहले ही आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ चुकी है। 
कांग्रेस में करनाल, सोनीपत, फरीदाबाद, गुरुग्राम, हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट को लेकर पेंच फंसा हुआ है। हुड्डा व उदयभान गुट भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से राव दान सिंह को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। जबकि शैलजा, सुरजेवाला और किरण गुट इस सीट से किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को टिकट दिए जाने के पक्षधर हैं। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट अटकने से गुरुग्राम सीट भी अटक गई है। कांग्रेस इन दोनों सीटों में से एक सीट पर यादव उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। अगर भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर श्रुति चौधरी को मैदान में उतारा गया तो निश्चित तौर पर गुरुग्राम सीट पर यादव समाज से उम्मीदवार उतारा जाएगा। इसके लिए पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव और राव दान सिंह में से किसी एक को टिकट मिल सकती है। इसी तरह कांग्रेस सोनीपत या करनाल में से किसी एक सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। लेकिन अभी तक दोनों में से किस सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारा जाए, इसको लेकर अभी संशय बना हुआ है। इसी तरह का पेंच हिसार सीट को लेकर भी है। 
हिसार के भाजपा सांसद बिजेंद्र सिंह देश के पहले ऐसे सीटिंग सांसद थे, जो चुनाव की घोषणा से पहले ही संसद सदस्यता व भाजपा से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए। बिजेंद्र सिंह आईएएस अधिकारी रहे हैं और वे पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं। बीरेंद्र सिंह की गांधी परिवार में गहरी पकड़ है। बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता भी 2014 में उचाना से विधायक बनी थी। अब पूरा परिवार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुका है। 
कांग्रेस आलाकमान हिसार सीट पर बिजेंद्र सिंह का दावा सबसे मजबूत मानती है। कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि संसद सदस्य होते हुए भाजपा व सांसद पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए बिजेंद्र सिंह का हिसार सीट पर पहला हक बनता है। लेकिन भूपेंद्र हुड्डा हिसार से पूर्व केंद्रीय मंत्री जय प्रकाश उर्फ जेपी को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। अगर हुड्डा व उदयभान गुट हिसार से जेपी को टिकट दिलवाने में सफल हो गए तो फिर बिजेंद्र सिंह को सोनीपत से टिकट मिल सकती है। इन्हीं दांव पेंचों और कांग्रेस की गुटबाजी के चलते अभी तक कांग्रेस हरियाणा में एक भी उम्मीदवार घोषित नहीं कर पाई है। भाजपा सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है, जबकि इनेलो अब तक 6 सीटों पर और जजपा 5 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर चुकी है। कांग्रेस के उम्मीदवार कब घोषित होंगे फिलहाल सभी की नजरें इस ओर लगी हुई है। 
हिसार सीट पर चौटाला परिवार आमने-सामने
हिसार में लोकसभा चुनाव न सिर्फ काफी रोचक बनता जा रहा है बल्कि इस चुनाव में चौटाला परिवार की प्रतिष्ठा भी दांव पर लग गई है। विशेष बात यह है कि भाजपा, इनेलो व जजपा की ओर से चुनाव लड़ने वाले तीनों उम्मीदवार चौटाला परिवार से हैं। सबसे पहले भाजपा ने चौधरी देवीलाल के छोटे बेटे व रानियां से पिछली बार निर्दलीय विधायक चुने गए और प्रदेश की भाजपा सरकार में बिजली व जेल मंत्री रणजीत सिंह चौटाला को अपना उम्मीदवार बनाया है। रणजीत सिंह इनेलो प्रमुख चौधरी ओम प्रकाश चौटाला के छोटे भाई हैं। रणजीत सिंह के मुकाबले जजपा ने बाढड़ा से विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की पुत्रवधु नैना चौटाला को और इनेलो ने ओम प्रकाश चौटाला के छोटे भाई स्व. प्रताप चौटाला की पुत्रवधु सुनैना चौटाला को उम्मीदवार बनाया है। नैना चौटाला पूर्व सांसद अजय चौटाला की धर्मपत्नी हैं और पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की माता है। नैना चौटाला 2014 में डबवाली विधानसभा क्षेत्र से और 2019 में बाढड़ा से विधायक चुनी गई थी। डॉ. अजय चौटाला का परिवार हिसार सीट पर अपना मजबूत दावा मानता है, क्योंकि हिसार से सांसद रहे पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के निधन के बाद खाली हुई हिसार सीट से डॉ. अजय चौटाला ने लोकसभा का उपचुनाव लड़ा था और मामूली अंतर से वे चुनाव हार गए थे। 2014 में अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला हिसार से सांसद बने और 2019 में वे बिजेंद्र सिंह के मुकाबले चुनाव हार गए थे। 2019 में ही दुष्यंत चौटाला हिसार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले उचाना विधानसभा क्षेत्र से बिजेंद्र सिंह की माता प्रेमलता को हराकर विधायक बने और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बने थे। अभी भी वे उचाना से विधायक हैं। 
ठंडा हुआ ‘आप’ का चुनाव अभियान
नवीन जिंदल व अभय चौटाला के कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में आने से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी डॉ. सुशील गुप्ता का चुनाव अभियान न सिर्फ ठंडा पड़ने लगा है बल्कि धीरे-धीरे वे मुख्य मुकाबले से पिछड़ने लगे हैं। इस बार आम आदमी पार्टी कुरुक्षेत्र सीट से कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है। सबसे पहले डॉ. सुशील गुप्ता ही गठबंधन की ओर से मैदान में उतरे थे। सुशील गुप्ता के प्रति हरियाणा के कांग्रेसियों में कोई विशेष लगाव न होने और अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद ‘आप’ का चुनाव ठंडा पड़ गया है। इधर, इनेलो द्वारा अभय चौटाला को कुरुक्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारने और भाजपा द्वारा नवीन जिंदल को उम्मीदवार बनाने का सीधा नुकसान डॉ. सुशील गुप्ता को हो रहा है। नवीन जिंदल और उनके पिता स्व. ओम प्रकाश जिंदल कुरुक्षेत्र से सांसद रह चुके हैं। वे न सिर्फ इस हल्के के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं बल्कि कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र के अधिकांश कांगे्रसी नेताओं से उनके घनिष्ठ संबंध हैं। डॉ. सुशील गुप्ता जिन अग्रवाल समाज के मतदाताओं पर अपना अधिकार समझ रहे थे, वे मतदाता डॉ. सुशील गुप्ता के खेमे से छिटक कर नवीन जिंदल खेमे की तरफ चले गए हैं। दूसरी तरफ उन्हें भाजपा से नाराज जिन ग्रामीण मतदाताओं से वोट मिलने की उम्मीद थी, वे इनेलो उम्मीदवार अभय चौटाला के साथ जुड़ने लगे हैं। वैसे भी डॉ. सुशील गुप्ता कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र में बाहरी उम्मीदवार माने जा रहे हैं। जिसके चलते कुरुक्षेत्र में आम आदमी पार्टी का चुनाव निरंतर कमजोर पड़ने लगा है। 

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