देश में अधिकतर दवाईयों की बिक्री दौरान कमाया जा रहा 5000 प्रतिशत लाभ

लुधियाना, 21 फरवरी (सलेमपुरी): इसमें कोई शक नहीं कि देश में डाक्टरी इलाज बेहद महंगा होने के कारण आम लोगों की पहुंच से बाहर होता है, जबकि अधिकतर मरीज़ तो इलाज न होने के कारण दम तोड़ जाते हैं जोकि देश के माथे पर कलंक है। देश में दवाइयाें की बढ़ती कीमतों पर चिंता जताते हुए डाक्टरों की राष्ट्रीय एसोसिएशन अलायंस आफ डॉक्टर फार ऐबीकल हैल्थ केयर ने दवाइयों की कीमतें तय करने वाली भारत सरकार की संस्था नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइजिंग अथारिटी (एनपीपीए) की चेयरपर्सन शुभ्रा सिंह को सौंपे एक ज्ञापन में मांग की है कि दवाइयों की कीमतें जिनमें दवाइयां व डाक्टरी उपकरण शामिल हैं, की कीमताें पर काबू रखा जाए और इन पर लाभ फार्मूले के आधारित उपभोक्ता को फैक्टरी कीमत से 30 प्रतिशत पर सीमित किया जाना चाहिए। एसोसिएशन के नेताओं ने बताया कि दवाइयाें की बिक्री में ज्यादा मुनाफे की जांच के लिए बनी कमेटी द्वारा देखा गया है, कि मौजूदा समय कुछ मामलों में यह मुनाफा 5000 प्रतिशत तक पहुंच चुका है जो उपभोक्ता से बहुत बड़ी बेइंसाफी है।  एसोसिएशन ने बताया कि कमेटी ने दवाइयोें की कीमतों को कम करने की मांग करते हुए 9 दिसम्बर 2015 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, परंतु बदकिस्मती से सरकार इस देशव्यापी बड़े मुद्दे को लेकर मूकदर्शक बनी बैठी है जबकि इस कारण उपभोक्ता (मरीज़) बेहद प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि दवाइयों पर खर्च सेहत सेवाओं में जेबों से होने वाले खर्च का लगभग 67 प्रतशित बनते हैं। एसोसिएशन ने कहा कि वह दवा उद्योग की इस बात से सहमत नहीं हैं कि दवाइयों में भारी मुनाफे को घटाने से उनकी बिक्री कम हो जाएगी, जबकि सच यह है कि दवा उत्पादक इसलिए ऐसा कह रहे हैं क्योंकि दवाइयों की कम्पनियों में आपस में घटिया किस्म का मुकाबला है, परंतु यदि कीमत एकसार की जाती है तो यह भय दूर हो जाएगा और मुकाबला केवल गुणवत्ता आधारित रह जाएगा। मुनाफे को सुचारू बनाना वास्तव में उद्योगों के लिए चीज़ों के आसान बना देगा। एसोसिएशन की कोर कमेटी के सदस्य डा. जी.एस. ग्रेवाल, डा. अरुण मित्रा व डा. मोनिका चैंडी ने कहा कि कितने सितम की बात है कि एक ही रसायनों वाली दवा विभिन्न कीमतों पर अलग-अलग ब्रांड के नाम पर बेची जा रही है जबकि ‘एक दवा एक मूल्य’ का फार्मूला होना चाहिए, सभी दवाइयां केवल फार्माकोलोजीकल/ रासायनिक नाम के तहत बेची जानी चाहिएं, कम्पनी का नाम उत्पाद डिब्बे/रैपर के नीचे लिखा जा सकता है। नेताओं ने कहा कि दवाई मरीज़ का चयन नहीं होती बल्कि डाक्टरों द्वारा नुस्खों का विवेक होता है। एक रासायन जिसे दवाई का लेबल लगाया गया है, को अपने आप ही निर्धारित सूची ज़रूरी दवाइयों के अधीन लाया जाना चाहिए। एसोसिएशन ने चेयरपर्सन से यह भी यकीनी बनाने के लिए कदम उठाए जाने की मांग की कि कम्पनियां कोरोना विषाणु के कारण दवाइयों की कमी के बहाने अधिक कीमत पर दवाइयां न बेचें।