कितनी क्षमता है ‘एकांतवास’ में आपका जीवन बचाने की ?

देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हमारा जीवन बचाने के लिए ‘आईसोलेशन’ यानि एकांतवास को महत्व क्यों दिया? इस पर देश भर में खूब चर्चा हो रही है। हर एक व्यक्ति ने इस ढंग से प्रधानमंत्री की अपील को लिया कि एकांतवास ही कोरोना वायरस पराजित करने के लिए सफल हो सकता है। हम उन लोगों से सहमत नहीं जो यह कहते हैं, शब्दों से अधिक मुखर होती है खामोशी। क्या संकट की इस घड़ी में देश के नेताओं को खामोश रहना चाहिए तो कौन कहेगा कि किस रास्ते पर जाकर इस महामारी से बचा जा सकता है? संसार के 199 देश इस वायरस की चपेट में हैं तो क्या वहां के नेता आज तक यह भी नहीं समझ सके कि वायरस के इस चक्र को तोड़ना कैसे है? यह भी हकीकत है कि चीन से उठी यह महामारी भारत में बड़ी देर के बाद पहुंची। इटली, स्पेन, अमरीका और अन्य कई यूरोपियन देशों में यह हत्यारा वायरस लाशों के ढेर लगा रहा है। भारत में इसको रोकने के लिए जो पग उठाए उससे लगता था कि यह महामारी हमारे देश के लोगों को हानि नहीं पहुंचा सकेगी परन्तु कुछ लोग अपनी ज़िद और हठधर्मी के चलते महामारी की रोकथाम के रास्ते में रोड़े अटका रहे हैं। एक मानव शरीर यदि रोगों के लिए सुगम निशाना समझा जाता है तो इसके उपचार के लिए भी कोई न कोई रास्ता सामने आ जाता है। आज से चार-पांच महीने पहले किसी के स्वप्न में भी यह बात नहीं थी कि संसार को ऐसे भयानक रोग से मुकाबला करना पड़ेगा। वैज्ञानिक बिरादरी ने इस रोग से मुक्ति पाने के लिए शोध आरम्भ कर दिए। लेकिन जब तक कोई दवाई या टीकाकरण सामने नहीं आता तब तक हाथ पर हाथ धरे हताशा और निराशा में मौत की प्रतीक्षा तो नहीं की जा सकती। इस लिए हमारे देश के जागरूक प्रधानमंत्री ने दूरी बनाए रखने को और एकांतवास में अपने घर में रहने को सही रास्ता बताया। 22 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू लगाने का सुझाव दिया तो लोगों ने उनके कथन को श्रोद्धार्य किया और पूरे देश में ऐसा जनता कर्फ्यू लगा कि शायद ही किसी ने पहले देखा हो। कश्मीर से कन्या कुमारी तक पूरा देश अपने घर में बंद हो गया और शाम के पांच बजे ताली-थाली पीट कर उन लोगों का धन्यवाद किया जो इस जनता कर्फ्यू में वायरस के सामने सीना तान कर खड़े हो गए उनमें डाक्टर, नर्सें भी हैं, प्रशासक भी, सैनिक भी, पुलिस भी तथा साफ-सफाई में लगे कर्मचारी यहां एक शे’र इस तरह कहा गया है...
‘घर में रहे या चिता पर 
यह निर्णय आपको करना है’
यहां हम यह कहते हैं कि आर्थिक सफर रुक गया है, बेशक विकास की यात्रा थम गई है परन्तु जैसा प्रधानमंत्री ने कहा जान है तो जहान है ज़िंदगी न रही तो यह सब मेले, रौणकें उदासियों के अंधेरे में डूब जाएंगी। हमें शिकायत उन लोगों से है जो इतना भी नहीं समझते और धार्मिक भावनाओं को उभार कर अपने अनुयायियों को गुमराह कर रहे हैं। दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र में स्थित तबलीगी ज़मात के मरकज़ में जो लोग देश-विदेश से आए उनको इस बात का अहसास न दिलाया जा सका कि संसार इस वक्त कितने बड़े खतरे से जूझ रहा है। बहुत से लोग इस ज़मात में भाग लेने वाले कोरोना संक्रमित पाए गए। अच्छा होता यदि मौलाना साहिब इस खतरे को भांप लेते और प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील पर अमल करते तो कई लोगों पर इस अनहोनी का प्रभाव न देखा जाता। हम कानूनी दांवपेच में फंसी किसी भी बात पर कुछ कहना नहीं चाहते परन्तु प्रधानमंत्री मोदी ने 4 मार्च को भांप लिया था और 13 मार्च से एकांतवास में रहने की अपील शुरू कर दी थी। इस घातक बीमारी से बचने का कोई और रास्ता शायद संसार के सामने आया न हो हाथ मिलाना छोड़ नमस्ते की मुद्रा को आगे बढ़ाया गया। चिंताजनक तथ्य यह है कि कुछ लोग संजीदगी से इस रोग के खतरनाक पहलुओं को नहीं समझ रहे। संसार में आज तक एक अनुमान के अनुसार पचास हज़ार के करीब कीमती जानें वायरस नामक यह राक्षस ले चुका है और विकसित देश भी इस वायरस के सामने मजबूर और लाचार नज़र आते हैं। परन्तु भारत जो युगों से एकाग्रचित होना और एकांतवास करना ऋषियों और मुनियों की देन समझता है, उसे बचाव का यही मार्ग उत्तम लगा। होना तो यह चाहिए था कि सैकुलरिज़म यानि धर्म-निर्पेक्षता का ढिंढोरा पीटने वाले लोग हिन्दु मुसलमान की बात छोड़ केवल आईसोलेशन की ओर ही इमानदारी से जाते। भारत को अब इस कड़ी चुनौती से सामना करना पड़ रहा है। वायरस से ग्रस्त लोग जहां तहां पूरे देश में किसी एक समुदाय में ही सही फैल गए हैं, पुलिस घर-घर झांक रही है। एक-एक से पूछ रही है परन्तु कुछ अल्प संख्यक लोग अभी तक ज़िद पकड़े हैं। तबलीगी ज़मात के प्रबंधक शायद मानसिक और शारीरिक इम्तिहान लेने के प्रयास कर रहे हैं नहीं तो इंदौर पैरामैडिकल लोगों पर पथराव क्यों होता? दिल्ली में पुलिस कर्मियों पर थूका क्यों जाता? आज हालत यह है कि अस्पतालों में ऐसे लोगों की भरमार हो गई जो उस जमात से संबंधित थे। लोग समझ रहे थे कि धीरे-धीरे हम कोरोना के विरुद्ध इस लड़ाई में जीत की ओर बढ़ रहे हैं परन्तु कुछ ना समझ लोगों के कारण हमारी यह लड़ाई लम्बी होती जा रही है। एकांतवास तो उन शिक्षित लोगों ने आरम्भ कर दिया जो चाहे किसी भी समुदाय के हैं, वे समझते हैं कि कोरोना वायरस के चक्र को तोड़ने का यही एकमात्र तरीका है।