उचित योजनाबंदी की आवश्यकता

केन्द्र सरकार से सम्पर्क बनाकर एवं उसके सहयोग से देश की प्रत्येक प्रदेश सरकार कोविड -19  महामारी से निपटने के लिए सक्रिय है। इसका मुकाबला करना कई पक्षाें से अत्यधिक कठिन है, क्योंकि इससे लड़ते हुए अनेक प्रकार की समस्याएं भी सामने आ रही हैं। केन्द्र सरकार की ओर से 3 मई तक देश भर में तालाबंदी के दूसरे पड़ाव की घोषणा की गई थी। इसका मुख्य मन्तव्य अधिकतर लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर एकत्रित न होने देना एवं कोरोना वायरस को फैलने से रोकने संबंधी अधिकाधिक सावधानियों का उपयोग करना था, परंतु समूचे समाज को सख्ती से इस स्थिति में रखा जाना कठिन है क्योंकि आम लोगों की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई न कोई सक्रियता बनाये रखना आवश्यक है। इस समय के दौरान बेहद ज़रूरतमंद लोगों की आवश्यकताएं पूर्ण किया जाना भी बहुत ज़रूरी है। 
यदि उनके लिए राशन-पानी एवं लंगर की व्यवस्था की जाती है तो इसके लिए भी विशेष सतर्कता बरते जाने की आवश्यकता है। चाहे राज्यों ने अपनी-अपनी सीमाओं पर आवश्यक प्रबंध किये हुए हैं  परंतु आवश्यक वस्तुआें की आवाजाही के लिए मार्ग खोलना भी ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त कामगरों, मजदूरों एवं दैनिक वेतन भोगियों की अपनी समस्याएं हैं, जिन्हें नित्य-प्रति अपनी आय पर गुज़ारा करना होता है। पंजाब सरकार अपने प्रदेश एवं दूसरे राज्यों के मजदूरों की स्थिति को देखते हुए शर्तें लगाकर लघु उद्योग क्षेत्र को शुरू करना चाहती है। इस संबंध में भिन्न-भिन्न शहराें में काफी यत्न भी किये गये परंतु क्रियात्मक रूप में इसके लिए लागू होने वाली शर्तों एवं बन गये हालात को देखते हुए प्रत्येक धरातल पर उद्योगपतियाें ने प्रशासन के इन यत्नों के प्रति अभी सहमति नहीं दी, क्योंकि उनके समक्ष भी कच्चे माल एवं तैयार माल की सार-सम्भाल एवं बिक्री की भारी समस्याएं हैं। जिस  ढंग से इस काम को शुरू करवाने का यत्न किया गया है, वह अब तक असफल सिद्ध हुआ है। मंडियों में गेहूं की आमद एवं इसकी सार-सम्भाल के कार्यों में भी भारी मुश्किलें पेश आ रही हैं। फसल की देरी के साथ होने वाले अदायगी के संबंध में भी किसानों ने शिकायतें करना शुरू कर दिया है। यह काम अभी आधा-अधूरा है क्याेंकि मंडियों में गेहूं अधिक आ गई है परंतु उसके उठान  एवं उसे सही जगह पर लगाने के लिए अभी बेहतर व्यवस्था नज़र नहीं आ रही। पंजाब की आर्थिकता को सम्बल देने वाली यह गतिविधि अभी धीमी चाल से चल रही है। इसके पूरे होने से ही कृषि जगत में संतोष पैदा हो सकेगा। पंजाब में अब यह बात बड़ी सीमा तक महसूस की जाने लगी है कि यहां का राजनीतिक नेतृत्व इस महामारी के साथ निपटने के संबंध में पिछली कतार में आ खड़ा हुआ है। उनमें इससे निपटने के लिए इसलिए अधिक उत्साह दिखाई नहीं देता क्याेंकि समूचे रूप में की जा रही योजनाबंदी में अफसरशाही का बोलबाला ही दिखाई दे रहा है।
ये भी शिकायतें मिल रही हैं कि इन हालात में राजनीतिक नेताओं की कोई अधिक नहीं सुनी जा रही जितना गम्भीर एवं उलझा हुआ यह मामला है, उसके लिए प्रत्येक स्तर पर राजनीतिक नेताओं का सहयोग बहुत ज़रूरी प्रतीत होता है। मुख्यमंत्री के अपने निजी कारणाें के दृष्टिगत अपने घर से बाहर विचरण करने को लेकर कुछ सीमाएं हैं। इसलिए उनकी बड़ी निर्भरता कुछ अधिकारियों अथवा वीडियो कांफ्रैंसिंग के माध्यम से सम्पर्क बनाये रखने पर ही टिकी है। मंत्रियों एवं सरकार से संबंधित राजनीतिज्ञों की वुक्कत का इस बात से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पंजाब मंत्रिमंडल की 30 अप्रैल वीरवार को वीडियो कांफ्रैंसिंग के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण बैठक रखी गई थी जिसमें कोरोना महामारी को लेकर प्रदेश की मौजूदा स्थिति एवं 3 मई से तालाबंदी/कर्फ्यू को आगे बढ़ाने अथवा इसमें छूट देने के संबंध में विस्तृत विचार-विमर्श किया जाना था। इसके साथ ही कोरोना महामारी से निपटने के लिये भी विस्तृत रूप से बातचीत की जानी थी एवं मंत्रियों के साथ स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैयार की गई रिपोर्टों के संबंध में भी विचार-विमर्श होना था। साथी मंत्रियों के साथ यह भी विचार किया जाना था कि आगामी दिनों में तालाबंदी में किस-किस स्थान पर किस सीमा तक ढील दी जा सकती है, तथा किन-किन क्षेत्रों में क्या-क्या व्यवस्था की जानी चाहिए परंतु कल मंत्रिमंडल की इस बैठक से एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री की ओर से यह घोषणा की दी गई कि प्रदेश की रजिस्टर्ड दुकानें अपने 50 प्रतिशत स्टाफ के साथ सुबह 7 बजे से दिन के 11 बजे तक खुलेंगी, उद्योगाें को भी शर्तों के साथ काम करने की आज्ञा दे दी गई है। 
मुख्यमंत्री की ओर से यह घोषणा किस सीमा तक विस्तृत विचार-विमर्श के बाद की गई है, इस संबंध में तो हम कुछ नहीं कह सकते परंतु क्रियात्मक रूप में यह घोषणा किस सीमा तक सफल होगी तथा महामारी की ज़द में आए लोगाें के लिए कितनी संतोषजनक सिद्ध होगी, इस संबंध में निश्चय के साथ अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। यदि यह घोषणा क्रियात्मक रूप में पूरी तरह लागू नहीं होती तो यह जन मानस के भीतर पहले से उत्पन्न हुई अनिश्चितता एवं अशांति को और भी बढ़ाने का कारण बन सकती है। इस समय आवश्यकता स्पष्ट नीतियां बनाकर उन पर सही ढंग एवं सावधानीपूर्वक क्रियान्वयन किये जाने की है। इसी के साथ प्रदेश की सक्रियता को सही पथ पर डाला जा सकेगा।
            -बरजिन्दर सिंह हमदर्द