स़फर की कठिनाइयां 

देश भर में करोड़ों एवं पंजाब में लाखों प्रवासी श्रमिक अपने-अपने घरों में जाने के लिए बेहद उतावले दिखाई दे रहे हैं। 46 दिन की तालाबन्दी के दौरान चाहे स्थानीय सरकारों ने अपने-अपने धरातल पर उनके लिए रहने एवं खान-पान के अस्थायी प्रबन्ध करने के दावे किये हैं, परन्तु इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सम्भाला जाना अति कठिन था। सरकार की ओर से किये गये प्रबन्धों के बावजूद कई स्थानों से रिहायश एवं खान-पान के प्रबन्धों में अनेक त्रुटियां होने की शिकायतें मिलीं अथवा बड़ी संख्या में कामगरों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों में से गुज़रना पड़ा। इसीलिए उनमें से बहुतों ने पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर का स़फर तय करके अपने घरों में लौटने का फैसला लिया।
इनमें छोटे बच्चे एवं औरतें भी शामिल हैं। इस बात का अनुमान लगाना भी कठिन नहीं कि उन्हें कितनी कठिनाइयों में से निकलना पड़ेगा। इस संबंध में अनेक हृदय-विदारक समाचार भी सामने आ रहे हैं। औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से 16 मजदूरों के रेल की पटरी पर मालगाड़ी के नीचे आकर मारे जाने का दुखद समाचार मिला है, परन्तु महामारी ने जिस प्रकार के हालात पैदा कर दिये हैं, उनमें दूर-दूर फंसे प्रवासी किसी न किसी ढंग से अपने घरों में पहुंचने के इच्छुक हैं। चाहे बहुत से राज्यों की सरकारों ने अपने प्रदेश के अपने ही लोगों को लाने के संबंध में भारी हिचकिचाहट भी दिखाई तथा काफी देर इस कारण उन्हें अपने घरों को लौटने की इजाज़त नहीं मिल सकी। करोड़ों श्रमिकों का इस प्रकार अपने काम-धंधे वाले स्थानों को छोड़ कर जाना भारी परेशानी पैदा करने वाला कहा जा सकता है, परन्तु समूचे रूप में हर प्रकार का कार्य थम जाने के कारण इन श्रमिकों के लिए बेकारी की अवस्था में रह पाना भी अत्याधिक कठिन था। नि:संदेह इस प्रकार का पलायन अतीव परेशानी पैदा करने वाला है। जिन स्थानों से इन मजदूरों ने पलायन किया है, वहां एकदम पुन: कामकाज शुरू करना बेहद कठिन होगा। इस कारण जहां बहुत-सी फैक्टरियों के मालिक भी दुविधा में फंसे नज़र आते हैं, वहीं कृषि के क्षेत्र में श्रमिकों की कमी भी बड़ी सीमा तक खटकने लगी है, क्योंकि प्रत्येक वर्ष गेहूं की कटाई एवं धान की बुआई के लिए दूसरे राज्यों से पंजाब आने वाले श्रमिक भी मौजूदा संकट के कारण नहीं आ सके हैं। कई स्थानों पर अपने राज्यों को जा रहे मजदूरों को रोकने का यत्न भी किया गया परन्तु एक बार यदि किसी कार्य के संबध में किसी का मन बन जाए अथवा हालात ने मन उचाट कर दिया हो तो किसी को अधिक देर तक रोक पाना भी कठिन होता है। कई स्थानों पर तो ये भी शिकायतें आई हैं कि वहां के कामगर बिना किसी को सूचित किये ही अलोप हो गये हैं ताकि उन्हें रोका न जा सके। जहां तक पंजाब का संबंध है, यहां भी छोटे-बड़े औद्योगिक शहरों एवं गांवों में कृषि का कार्य करने वाले श्रमिकों की संख्या लाखों में है जो प्रदेश में अस्थायी तौर पर कार्य करने आये थे। इसके अतिरिक्त लाखों ऐसे ़गैर-पंजाबी भी हैं जो स्थायी तौर पर यहीं बस गये हैं। उन्हें यहां ऐसी कोई समस्या भी नहीं है। लाखों व्यक्तियों को अपने घरों में भेजना कठिन अवश्य है परन्तु इस बात के लिए प्रदेश सरकार की प्रशंसा करना बनता है कि उसकी ओर से जालन्धर, अमृतसर, लुधियाना एवं पटियाला से 500 रेलगाड़ियां भिन्न-भिन्न शहरों की ओर भेजने का प्रबन्ध किया गया है। इस कार्य के लिए 35 करोड़ रुपये की राशि भी रखी गई है। एक अनुमान के अनुसार सरकार के पोर्टल पर 10 लाख से अधिक मजदूरों ने अपने नाम पंजीकृत करवाये हैं। अब तक इन शहरों से अनेक गाड़ियां रवाना हो चुकी हैं, जिनमें शारीरिक दूरी बनाये रखने के प्रबन्ध किये गये हैं तथा स्वास्थ्य का निरीक्षण करने की व्यवस्था भी की गई है। जिन व्यक्तियों की बारी आती है, वे जैसे-कैसे हो, फासला तय करके उक्त शहरों के रेलवे स्टेशनों पर पहुंच जाते हैं। बहुत-से स्थानों पर पहुंचने के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड एवं अन्य प्रदेशों में भेजने की व्यवस्था की जा रही है। चाहे ऐसे प्रबन्ध अतीव पेचीदा दिखाई देते हैं, परन्तु बनाई गई नीति के तहत इन्हें हर सम्भव ढंग से पूरा किया जाना भी आवश्यक है,जिसके लिए मेहनत के साथ-साथ अच्छी योजनाबंदी की भी ज़रूरत है। इन सभी कठिनाइयों के बावजूद यदि ये प्रवासी अपने-अपने घरों एवं ठिकानों पर पहुंच जाते हैं तो यह अपने-आप में संतोषजनक बात होगी। हालात सुधरने के बाद ही इनका पुन: रोज़गार के लिए भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आना सम्भव हो सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द