क्या बिहार में ‘ऑनलाइन’ चुनाव हो सकते हैं ?

दुनिया के बहुत कम आबादी वाले और बेहद विकसित देशों में तो ऑनलाइन चुनाव का प्रयोग हुआ है, लेकिन क्या भारत में ऑनलाइन चुनाव हो सकते हैं? यह लाख टके का सवाल पैदा हुआ है बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के एक बयान से। उन्होंने कहा है कि बिहार में ऑनलाइन चुनाव कराए जा सकते हैं। अभी हालांकि उन्होंने सिर्फ  सुझाव ही दिया है, मगर इससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल तो यही है कि क्या सचमुच किसी स्तर पर इस बारे में विचार हो रहा है? लेकिन अगर कहीं भी ऐसा विचार हो रहा है तो बेहद अनर्थकारी है और भारत जैसे देश में यह सोचना भी गुनाह है। ऑनलाइन चुनाव के बारे में सोचने से पहले यह तो सोचना चाहिए कि भारत में राज्यसभा की चंद सीटों के चुनाव दो महीने से अटके हैं। झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए सिर्फ  81 मतदाता हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में तीन सीटों के लिए 206, गुजरात में चार सीटों के लिए 177, राजस्थान में तीन सीटों के लिए 200, आंध्र प्रदेश में तीन सीटों के लिए 175 और मणिपुर तथा मेघालय में एक-एक सीट के लिए महज 60-60 मतदाता हैं, लेकिन इसके बावजूद चुनाव आयोग वहां चुनाव नहीं करा पा रहा है या इतने कम मतदाता वाले चुनाव भी ऑनलाइन कराने पर विचार नहीं कर रहा है। ऐसे में विधानसभा का चुनाव ऑनलाइन कराने के सुझाव को बकवास ही माना जाना चाहिए। 
दो किस्म की रेलगाड़ियां
पिछले दिनों दो तरह की विशेष ट्रेने चलीं। एक मजदूरों के लिए दूसरी सामान्य नागरिकों के लिए। सामान्य नागरिकों के लिए चलाई गई विशेष ट्रेन के सारे डिब्बे वातानुकूलित थे, जबकि मजदूरों के लिए चलाई गई ट्रेन के सारे डिब्बे सामान्य स्लीपर कोच वाले थे। इन दोनों किस्म के यात्रियों के लिए किए गए बंदोबस्त का फर्क यहीं समाप्त नहीं हुआ। असली फर्क तो तब पता चला जब ये यात्री अपने गंतव्य पर पहुंचे। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से पहुंचने वाले यात्रियों को स्टेशन से निकाल कर क्वारंटाइन सेंटर ले जाया गया, जबकि दूसरी विशेष ट्रेनों के यात्रियों को स्टेशन से सीधे घर जाने दिया गया। सवाल है कि इन दोनों ट्रेनों से सफर करने वाले यात्रियों के बीच क्या फर्क है? श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में सवार होने से पहले मजदूरों की स्टेशन थर्मल स्क्रीनिंग भी हुई, उन्होंने मास्क भी पहन रखा था, वे सैनिटाइजर से हाथ भी साफ  कर रहे थे और उनके फोन में भी ज़बरदस्ती आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करा दिया गया था। अगर किसी में भी कोरोना वायरस का लक्षण दिखाई दिया तो उसे ट्रेन में बैठने भी नहीं दिया गया। दूसरी तरह की विशेष ट्रेनों के यात्रियों के साथ भी ऐसा ही सब हुआ। फिर एक को क्वरंटाइन और दूसरे को रिहाई का क्या मतलब? क्या सरकार यह मानती है कि वातानुकूलित ट्रेनों में स़फर करने वालों को कोरोना का संक्रमण नहीं होगा? सरकार यह क्यों भूल गई कि कोरोना हवाईजहाज में बैठ कर आने वाले ही लेकर आए हैं और गरीबों को उन्होंने ही यह सौगात दी है।
मोदी सरकार की दूसरी पारी का एक वर्ष
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने छह साल हो गए। 26 मई को उनकी सरकार के छह साल पूरे जाएंगे। इस मौके पर ‘छह साल बेमिसाल’ नाम से एक वीडियो कैंपेन भी जारी हुआ। उनके दूसरे कार्यकाल का एक साल 30 मई को पूरा हो जाएगा। 
एक साल पहले 30 मई को ही मोदी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। सो, 30 मई 2020 को क्या होगा? क्या भारतीय जनता पार्टी और सरकार की ओर से इस मौके पर कोई बड़ा आयोजन होगा? इसकी उम्मीद कम है, क्योंकि कोरोना वायरस का संक्रमण 30 मई को चरम की ओर बढ़ रहा होगा। अभी हर दिन चार से पांच हजार मामले आ रहे हैं। इसलिए 30 मई को कोई बड़ा कार्यक्रम तो नहीं होगा, लेकिन केंद्र सरकार और पार्टी की ओर से सरकार के एक साल के कामकाज पर एक रिपोर्ट तैयार की जा रही है। इसमें सरकार की एक साल की उपलब्धियों का ब्यौरा होगा। हो सकता है कि रिपोर्ट कार्ड में कोरोना से लड़ने की रणनीति और दूसरे देशों के मुकाबले संक्रमितों की संख्या कम रखने के लिए प्रधानमंत्री की तारीफ  की जाए। सरकार की उपलब्धियों में 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का भी ब्यौरा होगा। हालांकि यह अलग बात है कि राहत पैकेज के नाम पर जो घोषणाएं हुई हैं, उनसे बुनियादी तौर पर किसी को राहत नहीं मिलने वाली है। 
आर्थिक पैकेज तथा विरोधाभास
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चार चरणों में जो आर्थिक पैकेज जारी किया है, उसे लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। आर्थिकी की समझ रखने वाले भी और नासमझ लोग भी अपने-अपने हिसाब से पैकेज की खिल्ली उड़ा रहे हैं क्योंकि यह ऐसा पैकेज है, जिसमें लाखों करोड़ रुपए बंट गए और किसी को कुछ मिला भी नहीं। बहरहाल, इस पर उठाए जा रहे सवालों के बीच एक अलग ही विरोधाभास की ओर कुछ आर्थिक जानकारों ने इशारा किया है, जो इस पैकेज से जाहिर होता है। वित्त मंत्री ने बड़े जोश-खरोश के साथ आठ करोड़ मजदूरों को मुफ्त राशन देने का ऐलान किया। इस योजना पर कुल खर्च साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए आएगा। इसी तरह 50 लाख रेहड़ी-पटरी वालों के लिए वित्त मंत्री ने पांच हजार करोड़ रुपए की एक योजना का ऐलान किया। यानी साढ़े आठ करोड़ लोगों के लिए साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए की योजना घोषित हुई। इसी पैकेज में रियल एस्टेट के लिए भी एक योजना घोषित की गई, जिसका लाभ छह से 16 लाख रुपए सालाना कमाई वाले ढाई लाख लोगों को मिलना है। इस मद में वित्त मंत्री ने 70 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। सोचिए, साढ़े आठ करोड़ लोगों के लिए के लिए साढ़े आठ हजार करोड़ और अढ़ाई लाख लोगों के लिए 70 हजार करोड़! गरीबों की ऐसी हितैषी सरकार दुनिया के किसी और देश में नहीं होगी।
चलते-चलते
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए शारीरिक दूरी कितनी होनी चाहिए? नरेंद्र मोदी का कहना है. ‘दो गज की दूरी बनाए रखें।’ अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं, ‘एक मीटर की दूरी बनाएं।’लेकिन जनता दोनों में से किसी की भी बात नहीं मान रही है। दिल्ली के बाजारों और बसों में मच रही धक्कमपेल इस बात की गवाह है।