किसानों की आर्थिकता को नुक्सान पहुंचा सकते हैं केन्द्र सरकार के नये फैसले 

जून महीना फिर आ गया है। चाहे यह एक आदत सी बन गई है कि जून के पहले सप्ताह दिल करता है कि 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार में हुए जुल्मों एवं इंसाफ न मिलने की कहानी एक बार फिर लिखी जाए परंतु आज इस जुल्म की कहानी को साहिर लुधियानवी का एक शेयर समर्पित करके बात खत्म कर रहा हूं : 
जुल्म फिर जुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है, 
खून फिर खून है टपकेगा तो जम जएगा। 

असल में बात यहां पर ही समाप्त इस लिए नहीं करनी पड़ी क्योंकि जिस तरह के हालात इस देश में बनते जा रहै हैं, वह सिर्फ ‘एक देश-एक राशन कार्ड’ या ‘एक देश-एक मंडी’ के नारों तक ही सीमित नहीं हैं। वास्तव में यह भारत के फैडरल ढांचे के खात्मे की नींव रखी जा रही है। परंतु यह विषय बहुत बड़ा है इसलिए तो एक किताब भी बहुत छोटी रहेगी। सो, आज का विषय तो केन्द्रीय मंत्रीमंडल द्वारा पारित कुछ अध्यादेश हैं, जो पंजाब की बदहाली का कारण बन सकते हैं। वैसे यह पंजाब के लिए नहीं, हरियाणा के लिए भी घातक हैं। परंतु हरियाणा तो शायद बच जाएगा क्योंकि एक तो वहां उद्योग बहुत हैं। दूसरा हरियाणा को केन्द्र का सहारा भी अधिक मिलता है। परंतु पंजाब के लिए यह फैसला फांसी का फंदा बन सकता है। हालांकि जिस तरह के आसार हैं, पहले-पहले इसका विरोध रोकने हेतु और किसानों को भरमाने के लिए निजी व्यापारी किसानों को एम.एस.पी. से भी 5 से 10 प्रतिशत अधिक मूल्य अदा कर सकते हैं क्योंकि करीब 7.5 फीसदी लाभ तो उनको टैक्सों तथा आढ़ता से ही हो जाना है। परंतु इस तरह किसान झांसे में आ जाएगा कि वाह, यह तो बहुत बढ़िया है कि सरकार द्वारा तय कम से कम मूल्य से भी डेढ़ सौ रुपए प्रति क्ंिवटल अधिक मिल रहे हैं। परंतु यह प्रक्रिया पहले 2-3 वर्ष के लिए ही होगी। जब इस प्रक्रिया से पंजाब का मंडीकरण का ढांचा पूरी तरह तबाह हो गया तो फिर शुरू होगी किसान की बर्बादी की असल दास्तान। परंतु पंजाब की एक राज्य के रूप में आर्थिकता की बर्बादी के तो अभी से ही शुरू हो जाने के आसार नज़र आ रहे हैं।
बदले बदले से मेरे सरकार नज़र आते हैं।
घर की बर्बादी के आसार नज़र आते हैं।

इसे स्पष्ट समझने के लिए गत वर्ष रबी की फसलों के समय कृषि लागत तथा मूल्य कमीशन (सी.ए.सी.पी.) द्वारा जारी सिफारिशों की मद्द नम्बर 5.16 देखने की ज़रूरत है, जिसमें कहा गया है था कि अनाज की सरकारी खरीद अन्न भंडार  (करने की) समस्या खड़ी करती है। इसकी कीमत बढ़ जाती है। यह फसली विभिन्नता को भी प्रभावित करती है। खरीद व खर्च बढ़ जाता है। सिफारिश की गई कि (फसलों) एम.एस.पी. तथा खरीद की नीति को जांच कर छोड़ा जाए। इससे पहले मद्द नम्बर 5.14 में स्पष्ट कहा गया कि हमें पंजाब में 8.5 फीसदी तथा हरियाणा में 6.5 फीसदी अतिरिक्त खर्चे देने पड़ते हैं। गौरतलब है कि पंजाब तथा हरियाणा में ग्रामीण विकास फंड जमा मंडी फीस जमा आढ़त 8.5 तथा 6.5 फीसदी बनते हैं। यहां सिफारिश की गई कि हमें निजी खिलाड़ियों (व्यापारियों) को 1 या 2 फीसदी टैक्स लेकर खरीद के लिए उत्साहित करना चाहिए। अब इस बार 2020 में जारी सिफारिशों में कृषि लागत तथा मूल्य कमीशन अपनी मद्द 5-5 में दोहराता है कि कमिशन पंजाब तथा हरियाणा से अनाज की सरकारी खरीद बंद करने की सिफारिश पर दृढ़ है। इससे पानी का स्तर कम हो रहा है। वह बोनस देने वाले राज्यों में भी सरकारी खरीद बंद करने की बात कह रहा है। इससे स्पष्ट है कि केन्द्र सरकार की वास्तविक मंशा क्या है? सरकार द्वारा पारित किए गये नये अध्यादेशों जिन्हें चाहे कृषि, वणिज्य और व्यापार की तरक्की तथा सुविधा के नाम या किसानों के सशक्तिकरण तथा सुरक्षा समझौते का नाम दिया गया है परंतु इससे 1955 के आवश्यक वस्तुओं के कानून में  से कृषि उत्पादों को बाहर निकाल देना स्पष्ट प्रकट करता है कि यह किस की सुरक्षा, तरक्की व सुविधा के लिए किया गया है। फिर इस पर कोई खुली चर्चा या राज्यों की मर्जी भी नहीं पूछी गई। इसलिए समय भी वह चुना गया है जब कोरोना के कारण आपदा प्रबंधों के नाम पर एक तरह से आपातकालीन जैसी स्थिति है और सभी ताकतें केन्द्र के पास हैं। इस स्थिति में लोग अगर लोकतांत्रिक ढंग से इकट्ठा होकर इसका विरोध करना चाहें तो भी वे इतने ज़ोर से नहीं कर सकेंगे, जितने ज़ोर से वे सामान्य हालात में कर सकते थे। 
अब होगा क्या?
ये सभी अध्यादेश या कानूनी संशोधन व्यापारियों विशेषकर बड़े व्यापारियों के पक्ष में जाते हैं। पंजाब में धान तथा गेहूं की खरीद ही करीब 65-66 हज़ार करोड़ रुपए की होती है। कपास, मक्की, तेल बीज, दालें सब्ज़ियां, फल आदि मिला कर एक अंदाज़े के अनुसार यह 75-80 हज़ार करोड़ रुपए की फसलें मंडी में आती हैं। यदि अब नये कानून के अनुसार मंडी की सीमा में उससे जुड़े गांव शामिल नहीं रहेंगे तो किसान प्राकृतिक तौर पर अधिक पैसे मिलने के कारण अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेचने को प्राथमिकता देगा क्योंकि हाल ही में 2-3 वर्ष तो उसे फसल के पैसे भी उसी समय ही मिलेंगे। इसका सीधा व स्पष्ट मतलब है कि पंजाब सरकार मंडियों से होने वाली करीब चार-साढे चार हज़ार करोड़ रुपए की आय से हाथ धो बैठेगी। आढ़ती बेकार हो जाएंगे। मुनीमों, मज़दूरों ट्रांसपोर्टरों आदि क्षेत्रों में बेरोज़गारी फैल जाएगी क्योंकि निजी व्यापारियों के पास ऑटोमैटिक अनाज भंडारण के लिए गोदाम जिनको साइलो कहा जाता है, होंगे। जहां एक-एक दिन में 5 से 20 हज़ार ट्रालियां अनाज साफ करके सीधा रेल गाड़ियों में भरा जा सकेगा। जानकारी मिली है कि अडानी ग्रुप के पंजाब में इस समय 3 साइलो हैं और 18 नये बन रहे हैं। बेशक किसानों को पहले कुछ वर्ष अधिक पैसे मिलेंगे परन्तु जब मंडीकरण ढांचे पर सरकारी खरीद बंद हो जाएगी तो किसान निजी व्यापारियों की दया पर ही निर्भर हो जाएंगे। सरकारी खरीद के बिना निर्धारित किए कम से कम मूल्य सिर्फ तसल्ली और आंकड़ों की खेल बन जाएंगे। हमारे सामने है कि इस बार सरकार ने मक्की का समर्थन मूल्य 1850 रुपये प्रति क्ंिवटल घोषित किया था परन्तु सरकार खरीद नहीं करती। परिणाम यह है कि अभी कल ही एशिया की सबसे बड़ी अनाज मंडी खन्ना में आई मक्की की पहली ढेरी समर्थन मूल्य से 639 रुपए क्ंिवटल सस्ती 1111 रुपये क्ंिवटल में ही बिकी है।
अकाली दल बुरी तरह फंसा
हालांकि इस मामले पर कांग्रेस, ‘आप’ और अन्य राजनीतिक पार्टियों के लिए भी सवाल खड़े हो गए परन्तु अकाली दल बुरी तरह फंसता नज़र आ रहा है। क्योंकि एक तो अकाली दल किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द होने का दावा करता है और दूसरा वह केन्द्र सरकार में भागीदार भी है। हमारी जानकारी के अनुसार कई प्रमुख अकाली नेता भारतीय किसान यूनियनों के नेताओं से सम्पर्क करके यह समझाने के यत्न कर रहे हैं कि अगर केन्द्र सरकार कम से कम समर्थन मूल्य का विश्वास दिला रही है तो फिर किसानों का क्या नुकसान है? दूसरी तरफ कुछ अकाली नेता इसके खिलाफ स्पष्ट स्टैंड लेने के पक्ष में भी बताए जा रहे हैं। इस तरह यह स्थिति अकाली दल के लिए काफी मुश्किल भरी बनती नज़र आ रही है। क्योंकि यह अकाली दल के फैडरल ढांचे के स्टैंड के विपरीत ही नहीं जाती अपितु पंजाब की आर्थिक बर्बादी की एक नई शुरुआत भी हो सकती है। अब देखना होगा कि अकाली दल इस मुश्किल समय को एक अवसर बनाता है या नहीं। परन्तु एक बात स्पष्ट है कि इस स्थिति से अकाली दल का स्टैंड अकाली दल की मौजूदा लीडरशिप के भविष्य का फैसला ज़रूर कर देगा।
सिधू, पी.के., अमरेन्द्र और ‘आप’
चाहे कोई माने चाहे न माने परन्तु इस बात की बहुत चर्चा है कि चुनाव रणनीति विशेषज्ञ प्रशांत किशोर (पी.के.) आजकल आने वाले पंजाब के चुनावों से पूर्व तीसरा विकल्प खड़ा करने का पुरज़ोर प्रयास कर रहे हैं। परन्तु वह इस तीसरे विकल्प की धुरी आम आदमी पार्टी को बनाना चाहते हैं। दूसरी तरफ ऐसी सूचनाएं भी हैं कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के एक विश्वास पात्र अधिकारी ने पी.के. को इस बार फिर पंजाब कांग्रेस के चुनावी रणनीति की कमान सम्भालने के लिए कहा, परन्तु बात नहीं बनी। यह भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री इसलिए कांग्रेस हाईकमान को भी अपना प्रभावी रुतबा इस्तेमाल करने के लिए कह रहे हैं। हालांकि पंजाब के कांग्रेसी विधायकों से इस संबंधी बातचीत किए जाने की भी चर्चा है।