फसली-विभिन्नता में बासमती का अहम स्थान

कोरोना वायरस के कारण प्रवासी खेत मज़दूरों के बहुसंख्या  में विभिन्न राज्यों से अपने-अपने घरों को चले जाने उपरान्त आई कमी के बावजूद भी धान की काश्त 88 फीसदी रकबे में पूर्ण हो चुकी है। लगभग 18 लाख हैक्टेयर रकबे में धान लग चुका है। काफी रकबा धान की सीधी बिजाई की मशीनों से लगा है और कुछ रकबा पैडी ट्रांसप्लांटर मशीनों से। धान की सीधी बिजाई की मशीनों और पैडी ट्रांसप्लांटर पंजाब सरकार ने किसानों को 40-50 फीसदी तक सबसिडी पर उपलब्ध किए हैं। चाहे यह सबसिडी किसानों को अभी तक मिली नहीं। यह सबसिडी बाद में उनके खातों में जमा करवाई जाएगी जिसका किसानों द्वारा विरोध भी हो रहा है क्योंकि वे चाहते हैं कि उनको शूरू में ही सबसिडी के पैसे कीमत में से काट कर मशीनें उपलब्ध करवा दी जाएं। कृषि तथा किसान कल्याण विभाग ने सबसिडी देने के तरीके में परिवर्तन इस कारण किया है कि सबसिडी के पैसे का दुरूपयोग न हो और वह सीधे किसानों तक पहुंचे। पहली बार खरीफ के मौसम में फसली-विभिन्नता में कुछ प्राप्ति हुई है। कपास-नरमे की काश्त 501465 हैक्टेयर रकबे में की जा चुकी है। इसकी काश्त पिछले वर्ष 3.92 लाख हैक्टेयर रकबे में की गई थी। इससे पहले सन् 2017-18 में सफेद मक्खी के हमले के कारण कपास-नरमे की काश्त में सिर्फ 2.61 लाख हैक्टेयर रकबा रह गया था। डायरैक्टर एरी मक्की का रकबा बढ़ाने के बहुत महत्व दे रहे हैं। इसकी काश्त अब तक 1.60 लाख हैक्टेयर रकबे में हो चुकी है। किसान मक्की की बिजाई से बड़ा गुरेज़ इस लिए करते हैं क्योंकि इसकी एम.एस.पी. नहीं मिलती और मंडी में बड़ा मंदा रहता है। कटाई के समय इसमें नमी अधिक होती है और इसे आढ़ती सस्ते भाव और जो 700-800 रुपए प्रति क्ंिवटल तक मंदा चला जाता है, खरीद लेते हैं और बाद में वे इसमें से नमी सुखा कर महंगे भाव बेचते हैं। सरकार ने मंडी बोर्ड की ओर से जो ड्रायर लगाए हैं, वह किसानों की बजाय आढ़ती ही इस्तेमाल कर रहे हैं। फिर मक्की के लिए भी पानी की ज़रूरत कुछ ज्यादा कम नहीं। शेष थोड़े-थोड़े रकबे पर कमाद, दालों तथा तेल बीज की फसलों की काश्त हुई है। फसली विभिन्नता योजना में मुख्य योगदान बासमती का है। बासमती की किस्मों की काश्त 7 लाख हैक्टेयर रकबे में की जानी है जबकि धान की 20 लाख हैक्टेयर पर यही लक्ष्य रखा गया है। गत वर्ष बासमती की काश्त 6.29 लाख हैक्टेयर  रकबे में हुई थी। बासमती की रोपाई अब शुरू है। किसान अधिक उत्पादन देने वाली पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1718, पूसा बासमती-6 (पूसा-1401) और पूसा बासमती-1509, प्रकाश असंवेदनशील किस्में जो आई. सी. ए. आर.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित हैं और भारत सरकार की फसलों के स्तर एवं किस्मों को प्रमाणिता देने वाली सब-कमेटी द्वारा नोटिफाइड हैं। इन किस्मों की पौध लगाते समय किसानों ने बीच का बाविस्टन + स्ट्रैपटोसाइक्लीन या ‘परोवैक्स’ दवाई के साथ संशोधन कर ही लिया होगा। अब ट्रांसप्लांट करते समय इन किस्मों की पौध की जड़ों को 6-7 घंटे ‘बाविस्टन’ या ‘साफ’ दवाई के घोल में डुबों कर रखना ज़रूरी है ताकि ये किस्में ‘झंडा रोग’ से मुक्त रहें। पूसा बासमती-1718 किस्म झुलस रोग का मुकाबला करने की पूरी समर्था रखती है। पूसा बासमती-1121 जिसका चावल विश्व का सबसे लम्बा चावल माना गया है, को झुलस रोग आ तो जाता है परन्तु हमेशा नहीं, कभी-कभी। बासमती की किस्मों की लम्बे समय के लिए धूप, अधिक नमी और यकीनी पानी को ज़रूरत है। परन्तु इन किस्मों को पानी की ज़रूरत धान की किस्मों के मुकाबले कम है। इन किस्मों को ठंडे तापमान में पकने देना चाहिए ताकि जो बढ़िया पकाने तथा खाने वाले गुण चावलों में आ जाएं। किसानों को बासमती की काश्त हेतु उचित ज़मीनें लेज़र कराहे के साथ एकसार करके खेत की तैयारी करनी चाहिए। पौध की आयु 30 दिन जब 5-6 पत्ते निकल आएं, खेत में से उखाड़ कर लगाने की तैयार हो जाती है। थोड़े समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509 जैसी किस्मों की पौध की आयु लगाते समय 25 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि पौध बड़ी उम्र की हो गई है तो उत्पादन कम हो जाएगा। पौध को गांठें नहीं पड़नी चाहिएं। बासमती किस्मों की पौध उगाने के लिए किसानों को विशेष ध्यान देना चाहिए। पौध की समय पर बिजाई कर  और समय पर ही उखाड़ कर खेत में लगानी चाहिए। उचित समय का होना उत्पादन तथा गुणवत्ता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। किसानों को बासमती की किस्मों को खाद डालने हेतु विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अधिकतर किसान धान की तरह अधिक यूरिया बासमती को डाली जाते है जिससे पौधे का प्रसार और ऊंचाई बढ़ जाती है जिस उपरान्त फसल गिर जाती है और उत्पादकता प्रभावित होती है। पूसा बासमती-1121 और पूसा बासमती-1718 को 36-48 किलो यूरिया या नाईट्रोजन खाद की दूसरी-तीसरी किश्त कभी खड़े पानी में नहीं डालनी चाहिए। खाद डालने के तीन दिन बाद पानी नहीं लगाना चाहिए। बुआईर् के समय यूरिया खाद नहीं डालनी चाहिए। यह खेत मज़दूरों के पैरों को भी खा जाती है और पैर सड़ जाते हैं। बसमती के फूटने के बाद और खाद नहीं डालनी चाहिए। खेत में पौध लगाने के 15 दिन तक पानी लगातार खड़ा रखना चाहिए। इसके बाद पानी तब लगाना चाहिए जब पानी दिये जाने को दो दिन हो गए हों। फूटने के समय फसल को पानी की कमी नहीं आने देनी चाहिए।