ऑनलाइन शिक्षा की सार्थकताला

लाकडाउन ने जिस चीज़ को सर्वाधिक प्रभावित किया, वहे हैं शिक्षा। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सारे संस्थान तत्काल बंद कर दिए गए, ताकि शारीरिक दूरी बनी रहे और कोरोना की महामारी से बचाव हो सके। आज की तारीख में बच्चों की शिक्षा अभिभावकों की प्राथमिकताओं के केन्द्र में है। इसलिए पठन-पाठन का अचानक परिदृश्य से गायब हो जाना गहरी चिंता का विषय बन गया था। इसी समय उम्मीद की किरण के रूप में ऑनलाइन शिक्षा सामने आई। पहले कुछेक, फिर तमाम संस्थानों ने इंटरनेट की सहायता से छात्रों को उनके घर में शिक्षा देना शुरू कर दिया। इसके पहले प्रतियोगी परीक्षा, शोध, विशेषज्ञता, महाविद्यालयीय शिक्षा के स्तर पर सामग्री के लिए गूगल, यू-ट्यूब, ई-पोर्टल और विभिन्न एप्स पर तो बहुत कुछ था, किन्तु इस बार लाकडाउन के दिनों में माध्यमिक व प्राथमिक शिक्षा के तहत व्हाट्स एप्प गु्रप बनाकर जिस तरह नियमित पाठ्य सामग्री भेजी गई, अध्यापक ऑनलाइन रहकर छात्रों की समस्याओं के समाधान के प्रति तत्पर दिखे, परीक्षा के प्रश्नों का मूल्यांकन हुआ, त्रुटियों का सुधार कराया गया, प्रोत्साहन के निमित्त अध्यापकों ने छात्रों को प्रेरक टिप्पणियां भेजीं, यह सब अभूतपूर्व था। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्तर पर संचालित माध्यमिक और प्राथमिक शिक्षा को गतिशील बनाने के लिए शिक्षकों ने इस पद्धति को अपनाया। इन छात्रों के पास लैपटाप नहीं हैं। कम ही छात्रों के अभिभावकों के पास  एंड्रायड हैंड सैट हैं। हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी की उपलब्धता भी कमज़ोर है। फिर भी आपसी तालमेल के साथ बच्चों ने इस पद्धति से जुड़कर जैसी प्रतिबद्धता दिखाई, वह अद्भुत है। शिक्षक और छात्र दोनों के लिए यह डिजीटल माध्यम संभावनाओं से भरा है। इसमें अध्यापक को छात्रों के सामने आने के पूर्व तैयार होना पड़ता है। पूर्ण तैयारी के साथ जब शिक्षक पढ़ाता है तो शिक्षण प्रभावी और गुणवत्तापूर्ण होता है। यह शिक्षा शास्त्र का सर्वमान्य सिद्धांत है। ऑनलाइन होने की स्थिति में अध्यापक की मैत्रीपूर्ण, संयत और अनुशासित रहना पड़ता है। छात्र भी स्क्रीन के सामने अधिक ध्यानमग्न और विषय केन्द्रित रहता है। इस प्रकार सीखने-सिखाने की गतिविधि आदर्श माहौल में सम्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में बच्चा जो पढ़ता है, उसे आसानी से आत्मसात कर लेता है। वैसे ऑनलाइन शिक्षा आदर्श नहीं कही जा सकती। इसमें शिक्षणेत्तर और पाठ्य सहगामी क्रिया-कलापों का बहुत कुछ अभाव होता है, जबकि शिक्षा में इसका बड़ा महत्त्व है। फिर भी लाकडाउन के थमे हुए समय में यह खूब असरकारी हुई, इसमें दो राय नहीं हो सकती। बच्चों को गर्मियों की छुट्ट्यिं का होमवर्क भी एक  निश्चित समय सारिणी के साथ ऑनलाइन ही वितरित हुआ है और बच्चे इसे रुचि के साथ कर भी रहे हैं। इस शिक्षण पद्धति से यह भी स्थापित हुआ कि तकनीक को नए संदर्भों से जोड़कर किस तरह आकस्मिक समस्याओं से निपटा जा सकता है। पारम्परिक टीचर के लिए भी यह ऑनलाइन वाली शिक्षा एक नया अनुभव है, जो सर्जनात्मक प्रेरणा का स्त्रोत बनकर उसके कार्य को सरस बना गया। प्रतिदिन जिस उत्साह और उत्सुकता से बच्चे पाठ्य सामग्री की प्रतीक्षा करते हैं, उसमेेें भविष्य की शिक्षा को रोचक, गुणवत्तापूर्ण और सरस बनाने के गहरे संकेत भी छिपे हैं। संभव है, भविष्य में शिक्षा के नीति-नियंता इससे और भी सबक लें। 

-ग्राम पोस्ट-जासापार, वाया-गोसाईं गंज
सुलतानपुर (उ.प्र.), पिन: 228119