पूसा-44, पी.आर.-126, बासमती तथा पी.आर. किस्में

गेहूं की कटाई लगभग समाप्त हो चुकी है। पंजाब, हरियाणा में धान-गेहूं का फसली-चक्कर प्रधान है। किसान अब गेहूं की सम्भाल तथा मंडीकरण के बाद धान, बासमती की बिजाई करने की योजना बना रहे हैं। वे बड़ी कशमकश में हैं कि धान की कौन-सी किस्म लगाएं। पूसा-44 किस्म उत्पादन के पक्ष से सर्वोत्तम होने के कारण गत 15 वर्ष से उनकी पहली पसंद रही है। यह किस्म आईसीएआर-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई थी और केन्द्र की फसलों की किस्में जारी करने वाली कमेटी (सीवीआरसी) द्वारा वर्ष 1994 में काश्त करने के लिए जारी की गई थी। इसकी काश्त पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, केरल तथा कर्नाटक राज्यों के सिंचाई अधीन रकबे में करने के लिए सिफारिश की गई थी। इसका औसत उत्पादन 32 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक रहा। यह एक कम ऊंचाई वाली पकने को (पौध सहित) 145 दिन तक का समय लेने वाली किस्म जिसके दाने लम्बे, पतले, तथा सख्त हैं, जारी की गई थी। कम्बाईन से काटने के लिए बड़ी योग्य किस्म है, क्योंकि इसकी नाड़ सख्त है और यह आंधी तथा झक्खड़ के बीच भी खड़ी रहती है। इस किस्म ने दूसरी सभी किस्मों से अधिक उत्पादन दिया। किसानों को इससे काफी आय हुई। 
गत कुछ वर्षों से यह किस्म विशेषज्ञों तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा चर्चा में रही। पंजाब सरकार द्वारा इसकी काश्त इसलिए कम करने या बंद करने के लिए कहा गया क्योंकि यह पकने में अन्य पी.आर. किस्मों से अधिक समय लेती थी। इसकी पानी की खपत अधिक थी तथा गेहूं की बिजाई की तैयारी के लिए कम समय छोड़ती थी। प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञों डा. गुरदेव सिंह खुश, डा. सरदारा सिंह जौहल, डा. रत्न लाल तथा डा. बलदेव सिंह ढिल्लों ने भी पूसा-44 किस्म की काश्त करने से किसानों को गुरेज़ करने के लिए कहा। हाल ही में निदेशक कृषि तथा किसान कल्याण विभाग ने मुख्य कृषि अधिकारियों को इस किस्म की बिक्री तथा बिजाई बंद करवाने के निर्देश दिये। पीएयू ने तो इस किस्म को पंजाब में काश्त करने की स्वीकृति नहीं दी थी, फिर भी यह किस्म कई वर्ष खेतों की रानी बनी रही। 
अब पीएयू तथा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा पी.आर.-126 किस्म की बिजाई करने की सिफारिश की जा रही है। यह किस्म पकने को (पौध सहित) 125-128 दिन लेती है। इसका औसत उत्पादन 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। किसानों पर ज़ोर डाला जा रहा है कि वे इस किस्म की ही बिजाई करें, परन्तु इस किस्म का राइस मिलों के मालिकों द्वारा विरोध किया जा रहा है क्योंकि इस किस्म के चावल में टोटा अधिक होता है और निकाल दूसरी किस्मों के मुकाबले कम है। सरकारी खरीद करने वाली एजैंसियों द्वारा निकाल 67 प्रतिशत लिया जाता है जबकि मिल मालिकों के अनुसार पी.आर.-126 किस्म में से निकाल 62 प्रतिशत आता है। कई मिलों वाले जहां तक कहते हैं कि वे इस किस्म का उत्पादन अपने शैलरों में नहीं लगने देंगे। कुछ किसानों ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा पूसा-44 किस्म के बीज की बिक्री तथा बिजाई पर पाबंदी लगने से पहले इसका बीज खरीद लिया था। कुछ बीज विक्रेता इस किस्म के बीज को भण्डार करे बैठे हैं। वे दुविधा में हैं कि वे अब क्या करें? इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट ने पूसा-44 किस्म का ब्रीडर श्रेणी का बीज पैदा करना बंद कर दिया है और पंजाब राज्य बीज प्रमाणन अथारिटी ने इस किस्म के बीज की रजिस्ट्रेशन तथा सर्टीफिकेशन बंद कर दी है। इससे यह किस्म अपने-आप ही भविष्य में काश्त से बाहर हो जाएगी। इसे खुशी से अलविदा कहा जाए, परन्तु पीली पूसा, डोगर पूसा तथा हाइब्रिड किस्में जिनकी किसानों द्वारा आम बिजाई की जा रही है, इन संबंधी कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की प्रतीत होती। 
धान की पौध लगाने का समय निकट आ गया है। किसान चिन्ता में हैं कि वे क्या करें? पंजाब सरकार ने अभी तक धान लगाना आरम्भ करने हेतु तिथि भी नहीं घोषित की। पंजाब प्रीज़र्वेशन आफ सब स्वाइल वाटर एक्ट, 2009 के तहत पंजाब सरकार प्रत्येक वर्ष यह तिथि निर्धारित करती है।  सामान्य तौर पर 10 से 20 जून के मध्य यह तिथि निर्धारित की जाती है। पी.आर.-126 तथा पूसा-44 किस्में लगाने संबंधी भी चर्चा हो रही है। ऐसी स्थिति में किसानों को चाहिए कि वे बासमती की कम समय में पकने वाली किस्मों में से चयन करके किसी किस्म की काश्त करें या फिर पी.आर.-121 (140 दिन), पी.आर.-128 (141 दिन) तथा पी.आर.-131 (140 दिन) किस्मों में से चयन कर लें। पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 तथा पूसा बासमती-1847 किस्में पकने को पी.आर.-126 की भांति कम समय लेती हैं। गत वर्ष इन किस्मों ने धान से अधिक लाभ दिया। इन किस्मों की पानी की ज़रूरत भी कम है। यदि उचित समय पर ट्रांसप्लांट की जाएं और मानसून जल्द आ जाए तो कई बार ये बारिश के पानी से ही पक जाती हैं। ये बासमती किस्में 25 क्ंिवटल प्रति एकड़ से अधिक उत्पादन दे देती हैं। गत वर्ष बासमती उत्पादकों ने मंडी में लाभदायक दाम होने के कारण धान उत्पादकों से अधिक बट्टत की थी। दूसरे देशों में इसकी मांग बढ़ रही है। इस किस्मों के चयन से फसली विभिन्नता भी आएगी और पानी की बचत भी होगी।