धान की पूसा-44 किस्म के अधीन कम नहीं हो रहा रकबा

धान की रोपाई पूरे जोबन पर है। संयुक्त डायरैक्टर कृषि बलदेव सिंह के अनुसार 24 लाख हैक्टेयर पर धान और 5.5 से 6 लाख हैक्टेयर पर बासमती किस्मों की काश्त की जाएगी।  किसानों का बहुमत विशेष करके मालवा में अभी तक पूसा-44 किस्म ही ट्रांसप्लांट कर रही है। थोड़ा सा लम्बा समय लेकर दूसरी सभी किस्मों से अधिक उत्पादन देने वाली पूसा-44 किस्म की रोपाई के लिए यह पूरा वातावरण अनुकूल है। फिर शैलरों वाले भी पूसा-44 किस्म को लेना पसंद करते हैं क्योंकि इसका दाना सख्त है। चावल शैलिंग में टूटता नहीं और चावलों की वसूली दूसरी किस्मों के मुकाबले अधिक है। पंजाब सरकार के साथ केन्द्र से पूसा-44 किस्म की अधिक बिजाई करके पंजाब में सभी किसानों से धान का अधिक उत्पादन लेकर ‘कृषि करमन पुरस्कार’ से सम्मानित और आईसीएआर-आईएआरआई से फैलो फार्मर अवार्ड प्राप्त करने वाला राज्य पुरस्कारी प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुरा छन्ना अपने पूरे 20 एकड़ रकबे पर ही पूसा-44 किस्म लगा रहा है। गत दो दशकों के दौरान उसने इसी किस्म को लगा कर अधिक लाभ कमाया है और ज़हरों का भी इस्तेमान नहीं किया। पी.ए.यू. से सम्मानित बलबीर सिंह जड़िया धर्मगढ़ भी एक बड़े रकबे में पूसा-44 किस्म ही लगा रहा है। वह इस किस्म के साथ बासमती भी लगाएगा। इनमें से कुछ किस्में उसे बाटों पर लगाने का प्रबंध किया है। वह कहता है कि बाटों पर लगाई गई बासमती को आम तौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह बारिशों के साथ ही पक जाती है जब ज़मीन का स्तर रिचार्ज होने लग जाता है। उसका पड़ोसी इन्द्रजीत सिंह 250 एकड़ रकबे पर पूसा-44 किस्म ट्रांसप्लांट कर रहा है। 
संगरूर जिले के प्रगतिशील किसान गुरमेल सिंह गहिलां और पटियाला जिले के रखड़ा का प्रमुख चावल उत्पादक चरणजीत सिंह कहता है कि उसने अपने 28 एकड़ के कुल रकबे पर धान की पूसा-44 किस्म ही लगाएगा। पंजाब राज्य बीज प्रमाणन अथारिटी ने जो इस किस्म का बीज सर्टीफाई करने और पंजाब सरकार के आदेशों के तहत रोक लगा दी, उससे किसान बिना तस्दीकशुदा बीज इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हो गए या फिर उन्होंने करनाल आदि स्टेशनों पर जाकर हरियाणा राज्य बीज प्रमाणन अथारिटी से तस्दीक किया हुआ बीज ला कर लगा लिया है। पंजाब राज्य बीज प्रमाणन अथारिटी के एक अधिकारी ने बताया कि पूसा-44 किस्म का बीज न तस्दीक किये जाने के बाद अथारिटी की आय पर भी काफी प्रभाव पड़ा है। 
चावलों के विश्व प्रसिद्ध ब्रीडर और आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह पूसा-44 किस्म जितना उत्पादन देने वाली एक किस्म विकसित करने पर अनुसंधान कर रहे हैं, जो पकने को कम समय लेगी। यह नई किस्म किसानों को जल्द ही उपलब्ध हो जाएगी। पंजाब सरकार द्वारा नई किस्म के विकास से पहले पूसा-44 किस्म की सर्टीफिकेशन पर रोक लगाना उचित नहीं था। कृषि एवं किसान भलाई विभाग के अनुमान के अनुसार 22 प्रतिशत रकबा पूसा-44 किस्म की काश्त के तहत आने की संभावना है परन्तु माहिर किसान नेताओं का कहना है कि यह रकबा 30 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। उत्पादकों और वैज्ञानिकों के अनुसार पूसा-44 किस्म पकने में 145 से 148 दिन लेती है जबकि पी.आर.-121, पी.आर.-122, पी.आर.-114 और पी.आर.-113 किस्में 145 दिनों में पक कर तैयार होती हैं। जो किसान कम समय में पकने वाली पूसा-126 जैसी किस्मों की बिजाई करते हैं, वे इसके बाद आलुओं की, फिर सब्ज़ियां और फिर मक्की की फसल लेते हैं। इस तरह पानी की खपत पूसा-44 किस्म से अधिक होती है। पूसा-44 किस्म दूसरी किस्मों के मुकाबले 10000 से 20000 रुपये प्रति एकड़ तक अधिक बट्टत देती है। 
पंजाब के प्रसिद्ध बीजों के ब्रिकेता राविंद्रजीत सिंह भट्ठल आफ भट्ठल बीज फार्म लुधियाना कहते हैं कि किसी डीलर या डिस्ट्रीब्यूटर के पास इस वर्ष पूसा-44 किस्म का बिना बिके कोई बीज नहीं रहा जबकि दूसरी सभी किस्मों का बीज गत वर्ष के मुकाबले 50 से 60 प्रतिशत बिका है। इस वर्ष एक लाभ अवश्य हुआ कि अप्रमाणित पीली पूसा और डोगर पूसा आदि हाईब्रिड किस्में किसानों ने नहीं लगाईं। पूसा-44 किस्म तो केन्द्र की फसलों की किस्मों और स्तरों की स्वीकृति देने संबंधी बनाई गई सब-कमेटी द्वारा नोटिफाइड है। दूसरी हाईब्रिड किस्में ( पीली पूसा, डोगर पूसा आदि) नोटिफाई भी नहीं और पूरी तरह अप्रमाणित हैं। अच्छा हुआ जो ये इस वर्ष काश्त में से निकल गईं। -मो. 98152-36307