किसान नहीं छोड़ रहे उत्पादन के पक्ष से सर्वोत्तम पूसा-44 की काश्त 

धान की कटाई तेज़ी से चल रही है। इस बार कटाई कुछ देरी से हो रही है, क्योंकि बाढ़ के कारण काफी बड़े रकबे पर धान पुन: ट्रांसप्लांट करना पड़ा था, परन्तु एक अनुमान के अनुसार 40-45 प्रतिशत रकबे पर कटाई हो चुकी है। पंजाब सरकार द्वारा मना करने के बावजूद किसानों द्वारा धान की पूसा-44 किस्म की काश्त के अधीन काफी रकबा लाया गया है, जो गत वर्ष से थोड़ा-सा ही अधिक कहा जाता है। धान की पूसा-44 किस्म का उत्पादन दूसरी सभी किस्मों से अधिक होने के कारण विगत 25 वर्ष से यह किस्म किसानों की पसंद बनी हुई है। बहुत पहले कुछ वर्ष इस किस्म की काश्त बहुत विशाल रकबे पर होती रही, परन्तु फिर सरकारी यत्नों से इसकी काश्त कम होती चली गई। कुछ समय पहले कई वर्ष धान की बिजाई के अधीन कुल रकबे के 70 प्रतिशत हिस्से पर बिजाई के बाद भी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने इस किस्म को सर्टीफाइड नहीं किया। दलील यह दी जाती रही है कि अधिक समय लेने के कारण इस किस्म के लिए पानी की आवश्यकता अधिक है।
उत्पादन में कई राष्ट्रीय तथा राज्य पुरस्कार लेने वाले प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका बिशनपुर छन्ना (पटियाला) जिन्होंने 20 एकड़ रकबे में इस किस्म की बिजाई करके 42 क्ंिवटल प्रति एकड़ औसत उत्पादन प्राप्त किया, कहते हैं कि यह किस्म न तो पकने को अन्य किस्मों जैसे पी.आर.-122, पी.आर.-113, पी.आर.-114 तथा पी.आर.-121 आदि से अधिक समय लेती है और न ही यह पानी की खपत अधिक करती है। उसकी पूसा-44 किस्म की 20 एकड़ की फसल 145 दिन में पक कर तैयार हो गई, जबकि दूसरी अन्य किस्में भी पकने में इतना ही समय लेती हैं। मामूली 3-4 दिन का अंतर कभी-कभी पड़ जाता है। वह कहते हैं कि कम समय में पकने वाली किस्में जिन किसानों ने लगाई हैं, वे अब इनके बाद सब्ज़ियां, आलू लगाएंगे और फिर मक्की की फसल लेंगे। इस फसली चक्र में पानी की ज़रूरत पूसा-44 किस्म से अधिक हो जाएगी। कालेका कहते हैं कि उन्होंने 20 जून से पहले पूसा-44 किस्म नहीं लगाई और ट्यूबवैलों के अतिरिक्त और सिंचाई भी नहीं की। वैसे भी तो किसान सबमर्सिबल पम्पों को लगातार बिना ज़रूरत के चलाते हैं। चाहे इस वर्ष सभी किस्मों का उत्पादन अधिक रहा, परन्तु कालेका कहते हैं कि उन्हें पूसा-44 किस्म लगाने से दूसरी किस्मों से 8 से 10 क्ंिवटल प्रति एकड़ अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ है। पूसा-44 किस्म बेमौसमी बारिशों तथा तेज़ हवाओं में भी नहीं बिछी, जबकि दूसरी पी.आर. किस्में ज़मीन पर बिछ गई थीं। पूसा-44 किस्म की बिजाई करके कालेका ही खुश नहीं कि उन्हें 15 से 20 हज़ार रुपये अधिक लाभ मिला है। इसी गांव के विलियमजीत सिंह तथा कमलजीत सिंह भी पूसा-44 किस्म से अधिक उत्पादन प्राप्त करके तथा अधिक मुनाफा कमा कर बड़े खुश हैं। साधू सिंह सिद्धू गुल्हे (फिरोज़पुर) ने भी पूसा-44 किस्म लगाई है  और दूसरी सभी किस्मों से अधिक उत्पादन व लाभ प्राप्त किया है। गोगी गिल पायल तथा राजविन्दर सिंह जगराओं कहते हैं कि जिन किसानों ने पूसा-44 किस्म लगाई है, वे बड़ी संतुष्टि महसूस करते हैं कि उनको दूसरी किस्मों की काश्त करने वाले किसानों के मुकाबले अधिक  लाभ हुआ है।
किसान कहते हैं कि शैलर वाले इस किस्म की फसल को खरीदना अधिक पसंद करते हैं। कालेका को अपने खेत में पूसा-44 किस्म की फसल पर किसी ज़हर का इस्तेमाल नहीं करना पड़ा। वह कहते हैं कि ज़हरों के बिना ली गई पूसा-44 किस्म की फसल का दाना न ही काला और न ही दागी होता है। 
गत वर्ष पंजाब सरकार के निर्देशों को मानते हुए पंजाब राज्य बीच प्रमाणन अथारिटी ने पूसा-44 किस्म के बीज की सर्टीफिकेशन नहीं की, जिसके बाद जो किसान पूसा-44 की कृषि को नहीं छोड़ सकते थे, उन्होंने हरियाणा से बीज का प्रबंध किया या फिर उन्होंने गैर-सर्टीफाइड (टी.एल.) किस्म के बीज का ही उपयोग किया। इसके बावजूद उनका इस किस्म का उत्पादन 35 से 40 क्ंिवटल प्रति एकड़ से कम नहीं आया। संगरूर जिले के भवानीगढ़ निकट गहिलां गांव का गुरमेल सिंह कहता है कि वह पूसा-44 किस्म के खेत में इसकी सीलन में ही गेहूं की बिजाई करेगा और उसे गेहूं की बिजाई करने के लिए रौणी करने की ज़रूरत नहीं। 
पंजाब सरकार जो पूसा-44 किस्म की काश्त पर आगामी वर्ष रोक लगाना चाहती है, इस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है ताकि किसान पानी अधिक इस्तेमाल न करें, उन्हें उनकी पसंद पूरी करने की छूट होनी चाहिए। शुद्ध बीज का इस्तेमाल होना चाहिए।