कोट्टापडी एलीफेंट स्पा सैंटर जहां होती है हाथियों की मसाज

जहां गाय को बहुसंख्यक हिंदुस्तानी मां का दर्जा देते हैं वहीं दक्षिण भारत में हाथी को भगवान गणेश का लौकिक रूप समझा जाता है। यही वजह है कि दक्षिण भारत के ज्यादातर प्राचीन मंदिरों में पुजारियों की ही तरह हाथी भी इनके स्थायी सदस्य होते हैं। लेकिन हम आपको यह नहीं बता रहे, हम आपको केरल के त्रिशूर ज़िले में स्थित गुरुवयूर कृष्ण मंदिर की उस परंपरा के बारे में बता रहे हैं जो पूरी दुनिया में बिल्कुल अनूठी है। जी, हां! यहां के इस प्राचीन मंदिर में 60 से ज्यादा हाथी हैं जिन्हें साल में एक बार वैसे ही मसाज किया जाता है, जैसे कोई आदमी सुख और आनंद के लिए स्पा सेंटर पर जाकर मसाज करवाता है। हाथियों को दी जाने वाली इस मसाज को शायद इसलिए सुख थैरेपी कहा जाता है। वास्तव में त्रिशूर के गुरुवयूर मंदिर का अपना एक एलीफेंट स्पा सेंटर है, जिसका नाम है पुन्नाथूर कोटा एलीफेंट यार्ड। यह यार्ड मुख्य मंदिर से करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित है और 10 एकड़ में फैला हुआ है। जुलाई की तेज गर्मी में यहां मंदिर के हाथियों को जो आयुर्वेदिक थैरेपी दी जाती है, उसे स्थानीय भाषा में ‘सुख चिकित्सा’ कहते हैं। इस थैरेपी या विशेष मसाज में हाथियों को रगड़ रगड़कर नहलाया जाता है। इसके बाद इन्हें खाने के लिए चुनिंदा पौष्टिक खाना और हर्बल टॉनिक दिये जाते हैं। ये टॉनिक इनकी थकान मिटाकर, इन्हें स्वस्थ रखते हैं। मसाज के दौरान यहां हाथियों को जो खाना दिया जाता है उसे विशेषज्ञों की देख-रेख में तैयार किया जाता है। हाथियों के इस हॉलीडे इंज्वाय पैकेज का खर्च लाखों रुपये आता है। यह सारा खर्च मंदिर प्रशासन द्वारा उठाया जाता है। जिन दिनों हाथियों की यह दिव्य मसाज होती है, उन्हीं स्थानीय लोग प्यार से छूना चाहते हैं। वे तमाम लोग उन्हें अपने हाथों से मसाज का सुख देना चाहते हैं। इस स्पा सेंटर में 60-60 हाथियों को एक साथ स्पा ट्रीटमेंट दिया जाता है, जिसे देखने के लिए हजारों की भीड़ जमा होती है। इस विशेष स्पा के दौरान हर हाथी को काबू में रखने के लिए दो महावत होते हैं। फिर भी सारे हाथियों को स्पा सेंटर में एक साथ नहीं लाया जाता है। जिन दिनों इन्हें सुख थैरेपी हासिल होती है, उन दिनों हर हाथी को दिन में दो बार नहलाया जाता है। उसकी रोज मालिश होती है और प्यूमिक स्टोन से या नारियल के छिलके से रगड़कर उसके शरीर की धूल मिट्टी आदि साफ  की जाती है ताकि उसके रक्त संचार में वृद्धि हो। इस दौरान उसे प्रतिदिन 300 ग्राम हरी घास खिलायी जाती है। साथ ही इन्हीं दिनों एक हाथी को औसतन 50 किलो चावल में हल्दी और दूसरे पौष्टिक पदार्थ मिलाकर खिलाया जाता है। हाथियों की मांसपेशियों को टोनअप करने के लिए उन्हें नियमित चलाया जाता है। गौरतलब है कि केरल में मंदिरों में होने वाले उत्सवों में इन हाथियों का सदियों से इस्तेमाल होता रहा है। त्रिशूर पूरम उत्सव, एक ऐसा उत्सव है जिसमें हाथियों की सुंदरता को निखारा जाता है क्योंकि इस उत्सव में बड़ी संख्या में हाथी भाग लेते हैं। इस उत्सव की तैयारी के रूप में उन्हें पौष्टिक आहार खिलाकर ताकतवर बनाया जाता है। जिन दिनों हाथियों को स्पा थैरेपी की सुविधा दी जा रही होती है, उन दिनों इन्हें भरपूर आराम करने दिया जाता है ताकि वह आने वाले दिनों में कठिन परिश्रम कर सकें। इसमें प्रत्येक मंदिर समूह को 15 हाथियों को प्रदर्शित करने की अनुमति होती है। यह बड़ी कठिन कड़ी स्पर्धा होती है। हर मंदिर चाहता है कि प्रदर्शनी खत्म होने के बाद लोगों की जुबान में उसकी ही चर्चा हो। बेहतरीन और सुंदर छतरी रखने के लिए वह ईनाम के पात्र हो। इस प्रदर्शन की सारी गतिविधियों को गुप्त रखा जाता है ताकि एक-दूसरे को इसकी खबर न लगे। यह उत्सव आस्था के साथ-साथ आतिशबाजी के लिए भी जाना जाता है। यहां तरह-तरह की आकर्षक और आंखों को चौंधिया देने वाली रोशनी से त्रिशूर का आसमान जगमगा उठता है। लेकिन ये हाथी मंदिरों द्वारा खरीदे नहीं जाते बल्कि इन्हें श्रद्धालु चढ़ावे के रूप में मंदिरों को दान में देते हैं। हाथी यहां के विशाल भव्य मंदिरों में निर्माण कार्यों में हमेशा से सहायक रहे हैं। प्राचीनकाल में राजा और देवताओं की सवारी भी हाथी ही रहे हैं। गुरुवयूर मंदिर में साल 1985 में पहली बार हाथियों का एक कैंप लगा था, जहां उन्हें आराम देने और अपनी खुराक बढ़ाने के लिए विशेष तौर पर रखा गया था ताकि अगले 11 महीनों तक मंदिरों में होने वाले तमाम उत्सवों में उनका इस्तेमाल किया जा सके। बाद में एक पुराने किले को एलीफेंट सेंचुरी में बदलकर इसका नाम एन्नाकोटा रख दिया गया। जो अब ‘हाथियों के महल’ के नाम से जाना जाता है।स्पा के दौरान भले ही यहां हाथियों को स्वर्गिक आनंद मिलता है लेकिन इस स्पा यानी एन्नाकोटा को कई पशु कल्याण में लगी संस्थाओं की कड़ी आलोचना का भी सामना करना पड़ता है। क्योंकि हर हाथी को कानूनी तौर पर रहने के लिए 1800 स्क्वायर फिट जगह की जरूरत होती है। लेकिन स्पा के दौरान एक साथ जब 60 हाथियों के साथ रखा जाता है तो उन्हें घूमने फिरने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिलता। गौरतलब है कि यहां बिगडैल और मतवाले हाथियों को नहीं लाया जाता। क्योंकि मसाज, स्क्रबिंग, स्पा के दौरान उनके बिगड़ने और उत्पात मचाने का खतरा बढ़ जाता है। भारी जान माल के नुकसान की आशंका को देखते हुए इन हाथियों को कड़ी सुरक्षा के बीच यह विशेष ट्रीटमेंट दिया जाता है। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर