किसानों के रोष प्रदर्शन अध्यादेशों के संबंध में केन्द्र करे पुन: विचार

केन्द्र सरकार द्वारा जून महीने में कृषि संबंधी पारित किये गये तीन अध्यादेशों को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसानों में पैदा हो रहा रोष स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। गत दिवस कुछ किसान संगठनों के आह्वान पर इन दोनों प्रांतों में बहुत-से स्थानों पर किसानों ने अपना रोष प्रकट किया। कोरोना महामारी के दृष्टिगत व्यक्त किये गये इस रोष को संगठनों की ओर से सीमित रखने का भी यत्न किया गया। अधिक भीड़ एकत्रित न करके किसानों ने बड़ी संख्या में अपने-अपने ट्रैक्टर सड़कों पर लाकर यह प्रदर्शन किया। किसान नेताओं का कहना है कि इन अध्यादेशों के अनुसार इन दोनों राज्यों में चिरकाल से स्थापित मंडीकरण की व्यवस्था बिखर जाएगी। धीरे-धीरे सरकार की ओर से घोषित किये जाने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य का भोग पड़ जाएगा। यदि ऐसी घोषणाएं जारी भी रहीं तो भी क्रियात्मक रूप में घोषित ये मूल्य अर्थहीन होकर रह जाएंगे क्योंकि सरकार इन राज्यों में गेहूं और धान की प्रत्यक्ष खरीद से पीछे हट जाएगी।
व्यापारी एवं अन्य पक्ष प्रत्यक्ष रूप से किसानों के साथ समझौते करेंगे। वे अपने वायदे किस सीमा तक और कितने पूरे करते हैं, इस संबंध में विश्वास के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता। गेहूं एवं धान को किसानों की ओर से मंडी में लाने पर उनकी फसल की निर्धारित मूल्य के अनुसार खरीद होती है। प्रदेश को भी गेहूं एवं धान की खरीद से एक निश्चित आय होती है। किसानों के साथ सम्बद्ध आढ़तियों एवं कृषि मज़दूरों आदि को भी एक निश्चित आय मिलती है। प्रदेश सरकार भी मंडियों से होने वाली आय से प्राथमिकता के आधार पर सम्पर्क सड़कों एवं गांवों से सम्बद्ध अन्य योजनाओं को सम्पन्न करने का यत्न करती रही है, परन्तु यदि मंडियां ही नहीं रहेंगी अथवा यदि इनका दायरा अत्यधिक सीमित हो जाएगा, तो मंडीकरण का सम्पूर्ण तन्त्र पूरी तरह से बिखर जाएगा। किसानों में अपनी फसल की बिक्री को लेकर अनिश्चितता पैदा हो जाएगी। व्यापारियों एवं अन्य पक्षों के साथ फसलों के मूल्य संबंधी सौदेबाज़ी उन्हें किस ओर ले जाने में समर्थ होगी, इस संबंध में भी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकेगा। लघु किसान व्यापारियों के रहमो-करम पर हो जाएगा। मंडियों के कर्मचारी, आढ़ती एवं कृषि मज़दूर तक पर इस परिवर्तन का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष प्रभाव पड़ेगा। ‘एक देश एक मंडी’ को आधार बना कर शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों के दृष्टिगत अपने आप को मंडीकरण की चुनौतियों से अलग कर लेने की केन्द्र सरकार की इस नीति ने जहां पंजाब और हरियाणा के खेतों के ऊपर गहरे संकट को ला खड़ा किया है, वहीं किसानों को भी बुरी तरह से झिंझोड़ कर रख दिया है। 
पंजाब के मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पूर्व किसान संगठनों एवं अन्य सम्बद्ध पक्षों की बैठक बुलाकर यह स्पष्ट किया था कि वह केन्द्र सरकार के पास सभी पक्षों के योगदान से पंजाब का यह पक्ष रखेंगे जबकि अकाली दल (ब) का नेतृत्व एक प्रकार से इन अध्यादेशों का पक्ष-पोषण करते हुये ही दिखाई दे रहा है। चाहे वह अभी भी किसानों के हितों का समर्थन करने के दावे की बयानबाज़ी कर रहा है, जबकि उसे इस बात के लिए स्पष्ट रूप से यत्नशील होना चाहिए था कि केन्द्र सरकार इन अध्यादेशों के संबंध में पुन: विचार करे। केन्द्र सरकार को इन दो छोटे प्रदेशों को पिछले दशकों में देश के अन्न भंडार को भरने के लिए शाबाश देनी चाहिए, न कि उन्हें दृष्टिविगत करने की नीति अपनाई जाए। ऐसी नीति इन दोनों प्रदेशों के कृषि क्षेत्र के लिए भारी चुनौतियां खड़ी कर सकती है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द