फसली विभिन्नता की ओर बढ़ते पंजाब के कदम 

फसली विभिन्नता के पक्ष से कपास-नरमा, मक्की तथा बासमती की फसलें उभर कर ऊपर आ रही हैं। नरमे की काश्त 501465 हैक्टेयर रकबे में हुई है जिसमें देसी कपास की 8306 हैक्टेयर रकबे में बिजाई की गई है। (गत वर्ष कपास-नरमे की फसल 3.98 लाख  हैक्टेयर रकबे में थी। सन् 2018 में चिट्टी मक्खी के हमले के कारण यह रकबा कम करके 2.68 लाख हैक्टेयर रह गया था)। तुप्का सिंचाई के अधीन 82.81 लाख हैक्टेयर रकबा है। वट्टों तथा बैड्डों पर बिजाई किया गया रकबा 4246 हैक्टेयर है। मक्की की काश्त 2.38 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। लक्ष्य 2.50 लाख हैक्टेयर रकबा मक्की की काश्त में लाने का है।
 गत वर्ष 1.10 लाख हैक्टेयर रकबे में मक्की की काश्त की गई थी और उपज 3.96 लाख टन हुई थी। औसत उत्पादन 36.25 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर रहा था। बासमती का निर्यात तथा इससे आने वाली विदेशी मुद्रा को मुख्य रखते हुए यह महत्वपूर्ण  फसल है, जो धान की जगह ले रही है। इसकी बिजाई 31 जुलाई तक चलेगा। लगभग 7 लाख हैक्टेयर रकबा इसकी काश्त में आने की संभावना है। कृषि तथा किसान भलाई विभाग के डायरैक्टर स्वतंत्र कुमार एरी के अनुसार बासमती की काश्त हेतु रकबा और भी बढ़ सकता है, क्योंकि निर्यातकों के पास विदेशों से बासमती की सप्लाई संबंधी आर्डर आने के बाद काश्तकारों को इसका लाभदायक भाव मिलने की उम्मीद बन गई है। 
कृषि तथा किसान भलाई विभाग मक्की की काश्त हेतु रकबा बढ़ाने के लिए यत्नशील है, परन्तु किसानों को इसका लाभदायक भाव न मिलने के कारण तथा फसल एम.एस.पी. पर भी न बिकने का कारण किसानों में उत्साह कम है। चाहे कि मक्की उत्पादकों की विभाग द्वारा हौसला अफजाई की जा रही है। मक्की की काश्त में होशियारपुर जिला अग्रणी है, जहां 72700 हैक्टेयर रकबे में इस फसल की बिजाई की जा चुकी है। इसके बाद रूपनगर जिला आता है, जहां 27,900 हैक्टेयर रकबा इस फसल की काश्त में आ चुका है। तीसरे दर्जे पर शहीद भगत सिंह नगर है जहां 14,500 हैक्टेयर रकबे पर इस फसल की काश्त पूरी हो चुकी है। इसके बाद मोगा जिला आता है जहां 12,800 हैक्टेयर रकबे पर बिजाई हो चुकी है। पठानकोट जिले में 11,800 हैक्टेयर रकबे में काश्त हो चुकी है और संगरूर जिले में 11,100 हैक्टेयर रकबा इस फसल के अधीन आ चुका है। जालन्धर में भी  मक्की की काश्त 9,750 हैक्टेयर रकबे में पूरी हो चुकी है। मोहाली जिले में 10,000 हैक्टेयर रकबे में मक्की की बिजाई हो चुकी है। मुक्तसर जिले में 7200 हैक्टेयर, बठिंडा में 7160 हैक्टेयर, बरनाला में 5500 हैक्टेयर, अमृतसर में 4300 हैक्टेयर, फतेहगढ़ साहिब में 5750 हैक्टेयर, लुधियाना में 6080 हैक्टेयर, मानसा में 5510 हैक्टेयर, पटियाला में 5010 हैक्टेयर तथा फरीदकोट में 3120 हैक्टेयर, फिरोज़पुर में 4015 हैक्टेयर तथा फाजिलका में 4065 हैक्टेयर रकबे में मक्की की काश्त पूरी हो चुकी है। 
कृषि तथा किसान भलाई विभाग के सचिव काहन सिंह पन्नु के अनुसार भविष्य में पंजाब सरकार कपास-नरमे की काश्त हेतु रकबा बढ़ाने पर ज़ोर देगी। इस वर्ष पटियाला जिले के पटियाला ब्लाक में 10 एकड़ तथा फतेहगढ़ साहिब में 14.5 एकड़ रकबे में भी कपास-नरमे की काश्त की गई है। इन ब्लाकों में चुनिंदा गांवों में आजमाईश की जा रही है। लुधियाना जिले में भी कुछ रकबे में कपास-नरमा लगा हुआ है। चाहे यह दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब की फसल है, जहां यह फसल अहम समझी जाती है। सन् 2015-16 में नरमे पर चिट्टी मक्खी का हमला होने के कारण उत्पादकता बड़े स्तर पर प्रभावित हुई थी, जिस कारण इसकी काश्त हेतु रकबा कम हो गया। परन्तु जल्द ही पंजाब सरकार ने मशीनरी छिड़काव तथा सही कीटनाशकों का प्रबंध करके इस पर  काबू पा लिया जिसमें निजी कम्पनियों का भी बड़े स्तर पर सहयोग लिया गया। 
यू.पी.एल. ने सस्ते किराए पर नरमे पर छिड़राव करने हेतु मशीनी स्प्रे सेवा किसानों को उपलब्ध की। चिट्टी मक्खी फसल का बहुत नुक्सान करती है और ‘पत्ता मरोड़’ लाती है। वर्ष 2015-16 में उत्पादकता कम होकर 197 किलो रूई प्रति हैक्टेयर पर आ गई, जो सन् 2018 में बढ़ कर 778 किलो रूई प्रति हैक्टेयर हो गई। गत वर्ष उत्पादकता में और भी वृद्धि हुई। चिट्टी मक्खी के नुक्सान को रोकने के लिए मशीनी स्प्रे की विशेष अहमियत है। इसकी कस्टम सेवा किसानों को ज़रूरत के समय उपलब्ध होनी चाहिए। नैप्सैक स्प्रे से किया गया छिड़काव पत्तों के नीचे नहीं पहुंचता और फिर एकसार भी नहीं होता। पी.ए.यू. के विशेषज्ञों के अनुसार कीड़ों-मकौड़ों तथा बीमारियों पर काबू तभी पाया जा सकता है यदि कीटनाशकों को सही मात्रा में सही जगह पर उचित स्प्रे से छिड़काव किया जाए। नरमे-कपास की फसल फफूंद, बैक्टीरिया तथा विषाणु की बीमारियों का शिकार होती हैं, जिसके बाद इस फसल का उत्पादन कम हो जाता है। गत वर्ष सितम्बर में भारी बारिश होने के कारण कपास-नरमा पैदा करने वाले क्षेत्रों में नरमे की फसल पर इस फफूंद का हमला पाया गया। यदि टींडों पर हलमा हो जाए तो रूई की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। नरमा-कपास विश्व की मुख्य रेशे वाली फसल है। इसकी काश्त के लिए इस वर्ष बठिंडा जिले में 1,72,488 हैक्टेयर, फाजिल्का में 1,22,011 हैक्टेयर, मुक्तसर में 1,01,126, हैक्टेयर तथा मानसा में 93,675 हैक्टेयर, संगरूर में 6,050 हैक्टेयर, फरीदकोट में 3,564 हैक्टेयर, बरनाला में 1,736 हैक्टेयर रकबा है। राज्य के 1,154 गांवों में इसकी बिजाई की गई है। 
आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बासमती की पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-6 तथा पूसा बासमती-1637 जैसी कम ऊंचाई वाली असंवेदनशील किस्में विकसित होने के बाद तथा पंजाब के बासमती के जी.आई. ज़ोन में आने के बाद पंजाब की बासमती की गुणवत्ता अधिक मानी गई है। इसका कम से कम सहायक मूल्य (एम.एस.पी.) तय होना चाहिए ताकि किसानों को एक विशेष कीमत मिलना सुनिश्चित हो जाए। इससे फसली-विभिन्नता में सफलता हासिल होगी।