लंगाह के मामले में जत्थेदार अकाल त़ख्त ने अपनाया कड़ा रुख

इस समय पंजाब के सिख धार्मिक तथा अकाली राजनीतिक हलकों में पूर्व मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह के अमृतपान का मामला बहुत गर्माया हुआ है। इस मामले का प्रभाव एक तरफ सिख धर्म में श्री अकाल त़ख्त साहिब के भविष्य की भूमिका तथा दूसरी तरफ अकाली दल तथा पंजाब की समूची राजनीति पर  काफी गहरा पड़ेगा। धार्मिक क्षेत्र में तो यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि क्या श्री अकाल त़ख्त साहिब द्वारा निष्काषित व्यक्ति को कोई अन्य संस्था या पांच प्यारे अमृतपान करवा कर तनखह लगा सकते हैं? क्या यह अमृतपान करवाना एस.जी.पी.सी. की सिख रैहत मर्यादा के अनुसार है? हालांकि जत्थेदार अकाल त़ख्त साहिब द्वारा लिए गए तुरंत एक्शन की सिखों में प्रशंसा हो रही है, परन्तु कुछ पक्ष इसका विरोध करके इसे सिख रैहत मर्यादा के अनुसार भी करार दे रहे हैं। परन्तु हम इस घटना के धार्मिक पहलू पर बहस नहीं कर रहे, बल्कि इसके राजनीतिक प्रभाव तथा पृष्ठभूमि के बारे में विचार कर रहे हैं क्योंकि श्री अकाल त़ख्त साहिब से जारी प्रैस नोट के अनुसार लंगाह के साथ मेल-मिलाप रखने के आरोप में एक  धर्म प्रचार कमेटी के पूर्व सदस्य तथा एक शिरोमणि कमेटी सदस्य को तनखाहिया करार दे दिया गया है। उनको शिरोमणि कमेटी के अन्य पदों से भी हटाने के निर्देश जारी किये गए हैं, परन्तु यदि बात इतनी ही होती तो इसका पंजाब की राजनीति पर सीमित सा प्रभाव ही होना था, परन्तु इस प्रैस नोट के अनुसार जत्थेदार साहिब ने अकाली दल को निर्देश दिया है कि लंगाह के साथ मेल-मिलाप रखने वाले अन्य नेताओं के बारे पार्टी स्तर पर जांच के करके पार्टी से बाहर किया जाए। उन्होंने शिरोमणि कमेटी को भी लंगाह के साथ मेल-मिलाप रखने वाले पदाधिकारियों/कर्मचारियों की जांच एक सब-कमेटी से करवा कर समुचित कार्रवाई करने के आदेश भी दिये हैं। जत्थेदार साहिब के ये दोनों आदेश अपने-आप में एक नयी मिसाल हैं। इन्होंने अकाली राजनीति में हड़कम्प मचा दिया है। यदि जत्थेदार साहिब यह आदेश ईमानदारी तथा सख्ती से लागू करवाने में सफल हो गए तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह वर्तमान समय के सभी पूर्व जत्थेदारों से अधिक प्रभावशाली बन जाएंगे और वह समूची सिख कौम का धार्मिक नेतृत्व करने के समर्थ माने जाने लगेंगे, परन्तु यदि वह यह आदेश मनवाने में असफल रहे या राजनीतिक दबाव मान कर पीछे हटे या लंगाह के साथ मेल-मिलाप रखने वालों  के बारे कार्रवाई में छोटे-बड़े नेता का भेदभाव दिखाई दिया तो इससे जत्थेदार की छवि को बड़ी क्षति पहुंचेगी। जिस तरह की चर्चाएं हैं, उनके अनुसार लंगाह को निष्कासित किए जाने के बाद उनके साथ मेल-मिलाप रखने वालों की संख्या बहुत बड़ी हो सकती है और उनमें अकाली दल के कई बड़े नेता भी शामिल हो सकते हैं, जिनके खिलाफ एक्शन लेना जत्थेदार श्री अकाल त़ख्त साहिब के लिए एक इम्तिहान साबित होगा। यहां एक घटना विशेष तौर पर वर्णनीय है। जब गुरदासपुर लोकसभा के उप-चुनाव हो रहे थे तो लंगाह को निष्कासित किए जाने के बाद आम आदमी पार्टी से बाहर हुए ‘अपना पंजाब पार्टी’ बनाने वाले सुच्चा सिंह छोटेपुर को अकाली दल में शामिल करने का फैसला लगभग पूरा हो गया था। बताया जाता है कि जब छोटेपुर ने अकाली दल में शामिल होना था तो बिलकुल आखिरी मौके पर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पीछे हट गए। चर्चा है कि यह फैसला बदलवाने में अकाली दल बादल के माझे के कुछ ‘प्रमुख’ अकाली नेताओं का दबाव था, जो कथित रूप में चाहते थे कि कुछ समय डाल कर इस जगह को सुच्चा सिंह लंगाह को माफी दिलवा कर वापस अकाली दल में लाने के लिए रिक्त रखा जा सके। अब देखने वाली बात यह होगी कि श्री अकाल त़ख्त साहिब की ओर से दिए गए आदेश की बात कहां तक पहुंचती है। 
अमृत-पान के पीछे की कहानी
सुच्चा सिंह लंगाह द्वारा गुरदास नंगल की गढ़ी में पांच प्यारों से अमृत-पान कर सिख पंथ तथा अकाली राजनीति में वापस आने की कोशिश से पहले उनके द्वारा अकाल त़ख्त साहिब से माफी मांगने की कई कोशिशें की गई थीं। हमारी जानकारी के अनुसार लंगाह ने अदालत से बरी होने के बाद पहले 18 अगस्त, 2018 को श्री अकाल त़ख्त साहिब पर माफीनामा भेजा। फिर 17 अक्तूबर, 2019 को दूसरा माफीनामा उस समय भेजा जब जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने पंथ से निष्काषित किए गए व्यक्तियों के माफी मांगने के  बारे कुछ कहा था, परन्तु लंगाह को कोई जबाव नहीं मिला। 13 मार्च, 2020 को लंगाह ने खुद श्री अकाल त़ख्त साहिब पर माफी हेतु पहुंच की। बताने वाले तो यह भी बताते हैं कि जब लंगाह के पहुंचने का समाचार मिला तो अकाल त़ख्त साहिब के जत्थेदार उस समय वहीं मौजूद थे परन्तु  वह यह कह कर चले गए कि वह तो पंथ से निष्कासित किए गए लंगाह के मुंह भी नहीं लगना चाहते। पता चला है कि जत्थेदार के इस कड़े रवैये के बाद ही गुरदास नंगल गढ़ी में अमृतपान करके वापसी की योजना बनाई गई थी। चर्चा है कि इसके पीछे 2022 के चुनावों में उम्मीदवार बनने की इच्छा भी शामिल है। 
प्रो. सरचांद सिंह की भूमिका?
इस मामले में दमदमी टकसाल के सलाहकार तथा एक बड़े अकाली नेता के पूर्व पी.ए. प्रो. सरचांद सिंह पर सुच्चा सिंह लंगाह को अमृतपान करवाने की योजना बनाने की अंगुलियां उठाई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि शिरोमणि कमेटी की धर्म प्रचार कमेटी की ओर से जारी ‘सिख रैहत मर्यादा’ पुस्तक के पन्ना नं. 30, 31 और 32 जिसमें चार कुरैहतों (बज्जर) का ज़िक्र है, में कुरैहत के बाद अमृत दोबारा छकने एवं तनखाह लगाने की विधि दर्ज की गई है।  सरचांद सिंह का कहना है कि ये सब अफवाहें हैं परन्तु आरोप लगाने वाले तो यह भी कहते हैं कि लंगाह के अमृतपान के समय प्रो. सरचांद सिंह ही लंगाह के साथ आए थे। 
क्या कोई साज़िश है?
इस दौरान बादल  अकाली दल के विरोधी अकाली हलकों में ज़ोरदार चर्चा है कि जत्थेदार श्री अकाल त़ख्त साहिब इस मामले में बहुत सख्त हैं। बताया जाता है कि उन्होंने ‘किसी’ को यह भी कहा है कि इसके पीछे एक बड़ी साज़िश है। कुछ हलके उनकी पंथक गतिविधियों से परेशान होकर ऐसे हालात पैदा करना चाहते हैं कि मैं खुद ही परेशान होकर पद छोड़ कर पीछे हट जाऊं, परन्तु मैं ऐसा नहीं करूंगा। यहां वर्णनीय है कि कुछ नियुक्तियों संबंधी जत्थेदार के फैसलों से नाराज़ कुछ शिरोमणि कमेटी सदस्यों द्वारा पिछले कुछ सप्ताह से उनके खिलाफ मुहिम चलाए जाने की बात की भी चर्चा है। हालांकि इस पूरी बात की पुष्टि के लिए जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के साथ सम्पर्क नहीं हो सका। इस दौरान यह चर्चा भी है कि जत्थेदार को इस मामले में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का समर्थन भी हासिल है। इस बारे में सुखबीर सिंह बादल तथा शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लौंगोवाल के मध्य हुई टैलीफोन वार्ता भी काफी चर्चा में है। समझा जा रहा है कि यदि जत्थेदार अकाल त़ख्त साहिब अपने फैसले पर कायम रहते हैं तो यह स्थिति पंजाब की राजनीति विशेषकर अकाली राजनीति में एक बड़ा तूफान लाने का कारण बन सकती है जिससे निकलने  वाले दूरगामी  नतीजे सिखों के लिए एक कौम के रूप में कैसे होंगे, अभी उनकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।

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