दमा कारण, लक्षण एवं उपचार

दमा श्वसन प्रणाली की एक जटिल समस्या है। शरीर का श्वसन तंत्र जब संक्र मण का शिकार हो जाता है और श्वास लेने में परेशानी होती है तो फेफड़ों से जुड़ी नलिकाएं प्रभावित होनी शुरू हो जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है और वे फूल जाती हैं।श्वास लेने पर हवा गर्म होकर गले से होते हुए श्वास नली में जाती हैं। आगे यह श्वास नली दो बड़ी नलिकाओं में विभाजित हो जाती है और फेफड़ों में यह छोटी-छोटी नलिकाओं में बंट जाती हैं तथा आगे चलकर फिर हजारों छोटी-छोटी श्वास नलिकाओं में बंट जाती हैं जिन्हें बरोंकियोल्स कहा जाता है। दमा रोग में यही बरोंकियोल्स प्रभावित होती हैं। जब व्यक्ति का सामना किसी कफ़ पैदा करने वाले तत्व से होता है तो श्वास नलिकाएं सिकुड़ व सूज जाती हैं जिसके परिणाम स्वरूप वायु मार्ग इतना संकरा हो जाता है कि श्वास लेने में अत्यन्त कठिनाई होती है। सीने पर अत्यधिक दबाव के साथ खांसना पड़ता है फिर भी पूरी तरह से श्वास नहीं ली जा सकती। श्वास लेते समय श्वास के साथ सां-सां की आवाज़ आती है। इसी अवस्था को ‘दमा‘ की संज्ञा दी गई है।दमा रोग की मुख्य वजह एलर्जी है परन्तु यह मनोवैज्ञानिक, अनुवांशिक एवं हृदय रोग के कारण भी हो सकता है। यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है। यौगिक चिकित्सा सिद्धांत में दमा के उपचार के लिए शरीर की प्राण ऊर्जा को बढ़ाकर इन संकरी व सूजी हुई श्वास नलिकाओं को खोला जाता है तथा अत्यधिक श्लेष्मा को बाहर निकाला जाता है। शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है।दमा का रोगी आहार-विहार में एक चम्मच हल्दी, गाय या बकरी के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करे। रात को पानी में बीस-पच्चीस किशमिश मुनक्का भिगोकर सुबह खाएं तथा बचा हुआ पानी भी पी लें। धूप में बैठकर हल्की मालिश करें, हल्का व सुपाच्य भोजन लें। शहद, लहसुन, तुलसी तथा अदरक का सेवन करें। तली हुई चीजें, ठण्डी चीजें, घी, पनीर आदि से परहेज करें। इस प्रकार इस जीवनचर्या और आहार-विहार के द्वारा दमा के इस भयानक रोग से हमेशा के लिए मुक्ति पाई जा सकती है।

(स्वास्थ्य दर्पण)