‘कोरोना बोलता है!’

सुबह-सवेरे अपने एक सज्जन मित्र आये। मित्र हैं तो सज्जन ही होंगे, वरना आजकल सज्जनता को ढूंढना वैसा ही कठिन हो रहा है, जैसे ‘कोरोना’ की ‘वैक्सीन’ को ढूंढना। दुर्जन भी सभी जगह पाये जाते हैं, ऐसा मैं नहीं, नित्य अखबारों की सुर्खियां बोलती हैं। अपराधियों  और पुलिस-वालों का घाल-मेल भी बोलते हैं। खैर, अपने मित्र ने आते ही घोषणा की-‘आजकल केवल कोरोना’ बोल रहा है, बाकी सब सन्नाटा है। ‘कोरोना’ के नित्य-प्रति बढ़ते आंकड़े बोल रहे हैं और आम-जन सहमा-सहमा है।
मैंने कहा, ‘सन्नाटा कहां है? आप बोल रहे हैं, मैं बोल रहा हूं, और बाहर पक्षी भी चहचहा रहे हैं। सन्नाटे में तो आदमी पगला जाता है या मृत्यु-समाधि ले लेता है।’
यमपुरी में जाने वालों की लम्बी कतार लगी है, भीतर जाने के लिए वहां भी ‘वेटिंग’ चल रही है। धरती पर बचे दो-पाया जीव तो सहमी अवस्था में पगला रहे हैं, तभी तो खुदकुशी के आंकड़े भी बढ़ रहे हैं। उन्होंने अपना तर्क-बाण छोड़ा।
लोग दो गज की दूरी न अपनाकर प्यार से एक-दूसरे के गले मिल रहे हैं। कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। टी.वी. की टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए आम और खास सभी तरह के तरीके अपनाये जा रहे हैं। बहसों का दौर चल रहा है। सरकार से अधिक बहस-कर्ताओं को जानकारी है। डाक्टर से अधिक इन लोगों के टोटके बोलते हैं। चोर-बाज़ारी के धंधे को चार-चांद लगा रहे हैं। मैंने अपनी तर्कों की पोटली को खोलते हुए कहा।
‘अमां यार, तुम भी अज़ीब अहमक हो। बातों को इधर-उधर घुमाने का ़फन जानते हो। तुम भी जानते हो कि हमारे नेताओं तक के हाथ-पांव फूले हुए हैं। उन्हें अपने काले-कारनामों से अधिक इस मुए ‘कोरोना’ से डर लग रहा है। यात्राएं स्थगित की जा रही हैं, मुखौटों के भीतर अपने मुखों को छुपाया जा रहा है। देश में महंगाई और बढ़ती ़गरीबी की समस्या को ‘सन्नाटे’ के कूड़ादान में फैंक दिया गया है। मान्यताएं एवं निष्ठाएं अपना वजूद खो चुकी हैं।’ उन्होंने बिना हथियार डाले बात को आगे बढ़ाया।
मैं भी जल्दी हथियार डालने वालों में अपने आपको शुमार नहीं करना चाहता था। इसलिए अपनी विवेक पिटारी से कुछ और तर्क प्रस्तुत करने लगा- ‘मित्र, तुम भी गलत नहीं हो, लेकिन इतना भी सन्नाटा नहीं है। सरकार का सैंसेक्स बोल रहा है। सरहदों पर गर्जनाएं हो रही हैं। सत्ता-पक्ष और विपक्ष में चल रहा रस्साकशी का खेल ‘अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना ऱाग’ अलाप रहा है। कुछ टी.वी. चैनल तो बाकायदा राग-दरबारी की लय पर नाच रहे हैं। ग्रहणों के परिणामों पर लम्बी-चौड़ी घोषणाएं बोल रही हैं। कुछ के हिसाब से तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणियां बोल रही हैं। ये सब बनाई गई बातें हैं। असल बात तो यह है कि अभी केवल ‘कोरोना’ बोल रहा है और बाकी सब सन्नाटे को झुठलाने की बातें हैं। उन्होंने कहा और वापिस चल दिये। 
मैंने इत्मीनान की सांस ली। किसी बहस का ज्यादा लम्बा खिंच जाना भी अच्छा नहीं माना जा सकता।
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