सुर्खियों में भले हो, सुखद स्थिति में नहीं है मोर

अगस्त के तीसरे सप्ताह जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने इंस्टाग्राम पर प्रधानमंत्री आवास में राष्ट्रीय पक्षी मोर को दाना चुगाते हुए एक वीडियो साझा किया, तो सोशल मीडिया मेें मोर ट्रेंड करने लगा। फेसबुक में ऐसी सैकड़ों तस्वीरें पोस्ट हो गईं जिनमें कहीं कोई मोर को दाना चुगा रहा है, तो कहीं मानसून की झूमती घटाओं के बीच मोर मनोहर नृत्य कर रहा है, तो कहीं मोर पंखी से सजे एक से बढ़कर एक लुभाती चीजों का बाजार दिख रहा है। कहने का मतलब प्रधानमंत्री की इस तस्वीर के बाद सोशल मीडिया में हर तरफ  मोर पर ही चर्चा चल निकली। नि:संदेह मोर अपनी राष्ट्रीय चर्चा को डिजर्ब करता है; क्योंकि वह भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। यह दुनिया के सबसे  खूबसूरत पक्षियों में से है। शायद इन्हीं सब बातों के कारण 26 जनवरी 1963 को मोर को न केवल राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया बल्कि वह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम- 1972 के तहत देश का संरक्षित पक्षी भी हो गया, जिसका मतलब यह है कि भारत में कोई मोर का शिकार नहीं कर सकता, उसे कोई पिंजरे में नहीं रख सकता।लेकिन कहते हैं तमाम कानूनों में ही एक चोर दरवाज़ा मौजूद रहता है, जिसका अकसर दुरुपयोग किया जाता है। मोर के मामले में भी कुछ वैसा ही है। पहले वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मोर को ले आने के कारण उसका शिकार तो प्रतिबंधित हो गया, लेकिन पता नहीं क्या समझकर सरकार ने मोर पंखों के व्यापार की अनुमति दे दी। अब चूंकि दुनिया में मोर पंखों की बहुत ज्यादा मांग है, जिसके कुछ औषधीय कारण है तो ज्यादातर अंधविश्वास की वजह से इनकी मांग है। बहरहाल वजह कोई भी हो लेकिन जब खूब महंगे बिकने वाले मोर पंखों की ज्यादा से ज्यादा जरूरत महसूस की जायेगी, तो मोर भला महफूज कहां रह पाएंगे? शायद यह मोर पंखों से होने वाला फायदा ही था कि देश का यह राष्ट्रीय पक्षी लगातार संकट से घिरा रहा। एक जमाने में देश के हर हिस्से में बड़ी संख्या में पाया जाने वाला मोर पक्षी अब कुछ कम ही जगहों में रह गया है।  भारत के वन्यजीव संगठन के पास स्टाफ  की कमी होने के कारण सही सही यह पता नहीं है कि भारत में आखिरकार मोर हैं कितने? प्रकृति पर नजर रखने वाली संस्था वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर ने साल 1991 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि आजादी के समय भारत में मोरों की जितनी संख्या थी, अब उसके आधी रह गई है। इस तरह उसके मुताबिक मोर का अस्तित्व संकट में है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक साल 1991 में भारत में मोरों की संख्या लगभग 1 लाख थी। लेकिन इस समय मोरों की कितनी संख्या है इसे सही सही कोई नहीं बता सकता, क्योंकि जहां कुछ स्रोतों के मुताबिक यह लाख के आसपास ही है, वहीं कुछ अन्य स्रोत इनकी संख्या इससे काफी ज्यादा बताते हैं। हालांकि अब वन्यजीव संरक्षण अधिनियम कानून में संशोधन कर दिया गया है और मोर को लुप्त प्राय प्रजाति में रख दिया गया है, जिसके चलते मोर के पंख बेचने या खरीदने तक में दो साल की जेल हो सकती है। लेकिन अब भी इस कानून में झोल है। अगर किसी के घर में मोर पंख पाया जाता है तो इसे अपराध नहीं माना जायेगा। सवाल है अगर किसी के घर में मोर पंख पाया जाना किसी किस्म का आपराधिक कृत्य नहीं है तो फिर कैसे यह साबित हो सकता है कि कहीं पर मिले मोर के पंखे आपराधिक श्रेणी में आएं। बहरहाल मोर पक्षी के अस्तित्व में संकट भौगोलिक नजरिये से भी है। दक्षिण भारत में मोर बहुत ही खतरनाक स्थिति में पहुंच गये हैं, जबकि उत्तर भारत में विशेषकर राजस्थान में फिर भी इसकी संख्या ठीकठाक है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर