हरियाणा के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगा बरोदा उप-चुनाव

हरियाणा में तीन सप्ताह के बाद होने जा रहा बरोदा उपचुनाव न सिर्फ बेहद रोचक एवं निर्णायक होगा बल्कि प्रदेश की आने वाले दिनों की राजनीतिक दिशा भी तय करेगा। बरोदा उपचुनाव के लिए सत्ताधारी भाजपा-जजपा गठबंधन के साथ-साथ कांग्रेस की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। इनेलो इस उपचुनाव के माध्यम से प्रदेश की राजनीति में अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पाने के लिए प्रयासरत है। 
बरोदा सीट कांग्रेस के विधायक रहे श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन के बाद खाली हुई है और श्रीकृष्ण हुड्डा कुल 6 बार विधायक रहे और 3 बार बरोदा से व 3 बार किलोई से विधायक चुने गए। 2005 में जब भूपेन्द्र सिंह हुड्डा लोकसभा सांसद रहते हुए मुख्यमंत्री बने थे तो उन्हें विधायक बनवाने के लिए श्रीकृष्ण हुड्डा ने अपनी किलोई सीट खाली करके उन्हें दी थी और तभी भूपेन्द्र हुड्डा मुख्यमंत्री के पद पर बने रह सके थे। उसके बाद भूपेन्द्र हुड्डा निरंतर किलोई से और श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा से विधायक चुने जाते रहे। यह सीट 2009 में सामान्य हुई थी। उससे पहले यह सीट आरक्षित थी। अब कांग्रेस इस सीट को हर हाल में जीतना चाहती है। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भूपेन्द्र हुड्डा की निजी प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। बरोदा सीट भूपेन्द्र हुड्डा के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है। 
बरोदा से लगातार 7 बार चुनाव जीत चुकी है चौटाला की पार्टी
बरोदा सीट जब आरक्षित थी तो इस सीट से 1977 से लेकर 2005 तक लगातार 7 बार चौधरी देवीलाल व ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी के उम्मीदवार चुनाव जीते थे। सामान्य सीट होने के बाद चौटाला परिवार इस सीट को नहीं जीत पाया। 2018 में इनेलो के दोफाड़ होने और चौटाला परिवार में फूट पड़ने के बाद जहां पिछले विधानसभा चुनाव में जजपा ने हरियाणा विधानसभा की 10 सीटें जीती थीं, वहीं इनेलो मात्र एक सीट पर सिमट कर रह गई थी। इस उप-चुनाव के जरिए एक बार फिर जहां इनेलो प्रदेश में अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन वापस पाने के लिए प्रयासरत है वहीं कांग्रेस हर हाल में इस सीट को जीतना चाहती है। कांग्रेस के पिछले विधानसभा चुनाव में 31 विधायक जीते थे और श्रीकृष्ण हुड्डा का निधन होने से अब कांग्रेस के पास 30 विधायक रह गए हैं। कांग्रेस चाहती है कि कृषि बिलों को लेकर किसानों की नाराज़गी का इस उप-चुनाव में पूरा फायदा उठाया जाए ताकि आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के पक्ष में अभी से माहौल बनना शुरू हो जाए। 
विपक्ष में रहते चौटाला परिवार ने जीते सबसे ज्यादा उप-चुनाव 
आमतौर पर यह माना जाता है कि ज्यादातर उपचुनाव सत्तापक्ष द्वारा जीते जाते हैं लेकिन हरियाणा में सरकार के खिलाफ ज़्यादातर उप-चुनाव जीतने का रिकॉर्ड चौटाला परिवार के नाम है। हरियाणा अलग राज्य बनने के बाद जब प्रदेश में बंसीलाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार थी तो एमरजैंसी लगने से पहले हुए रोड़ी उप-चुनाव को चौधरी देवीलाल ने सरकार के खिलाफ न सिर्फ भारी बहुमत से चुनाव जीता था बल्कि रोड़ी उपचुनाव से ही देवीलाल दो साल बाद 1977 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए। 
राजीव-लौंगोवाल समझौते के खिलाफ चौधरी देवीलाल व डॉ. मंगल सैन ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था और इन सीटों पर हुए उप-चुनाव में देवीलाल ने फिर से महम से चुनाव लड़ा और सरकार के खिलाफ चुनाव जीतकर प्रदेश में फिर से अपनी पार्टी की हवा बनाने में सफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि दो साल बाद 1987 में हुए हरियाणा विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर देवीलाल के नेतृत्व वाले गठबंधन को करीब 85 सीटें मिलीं और वह फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। 
1990 में ओम प्रकाश चौटाला ने दड़बाकलां विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता और वह मुख्यमंत्री बने। मेहम की घटनाओं के बाद विवादों में आए ओम प्रकाश चौटाला ने 1992 में शमशेर सिंह सुरजेवाला द्वारा राज्यसभा में जाने के बाद खाली हुई नरवाना सीट से चुनाव लड़ा और प्रदेश में भजन लाल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार होने के बावजूद भारी बहुमत से चुनाव जीतकर न सिर्फ महम के दाग को धोया बल्कि इसी के बलबूते वह फिर से 1999 व 2000 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे। ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला ने भी अपना राजनीतिक जीवन रोड़ी उप-चुनाव से शुरू किया था और प्रदेश में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार बनने के बाद उन्होंने 2010 में ऐलनाबाद उप-चुनाव में फिर से जीत दर्ज की थी। इस बार बरोदा उपचुनाव में इनेलो कितना प्रभाव दिखा पाएगी, यह अगले महीने आने वाले उप-चुनाव के नतीजों से साफ हो पाएगा।  
भाजपा लगाएगी पूरा ज़ोर
बरोदा उप-चुनाव के लिए भाजपा और जजपा ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लिया है और इस फैसले के तहत भाजपा के चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारा जाएगा और जजपा अपना जोर भाजपा उम्मीदवार को जीताने पर लगाएगी। 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस ने यह सीट जीती थी, वहीं भाजपा की ओर से उम्मीदवार बने नामी पहलवान योगेश्वर दत्त दूसरे स्थान पर रहे थे और जजपा प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे। उस चुनाव में इनेलो कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई थी और इनेलो उम्मीदवार की ज़मानत जब्त हो गई थी। 
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 40 सीटें मिली थीं और भारतीय जनता पार्टी ने जजपा व निर्दलीय विधायकों के सहारे सरकार बनाई थी। भाजपा इस सीट को हर हालत में जीतकर अपने विधायकों की संख्या 41 करना चाहती है। इधर, भाजपा पूरी तरह से गांवों व कृषि से जुड़े मतदाताओं पर आधारित बरोदा सीट जीतकर पूरे देश को यह भी संदेश देना चाहती है कि कृषि बिलों का जो विरोध हो रहा है, वह किसानों द्वारा नहीं किया जा रहा बल्कि राजनीतिक दलों द्वारा इसे मुद्दा बनाया जा रहा है। भाजपा यह भी मानती है कि अगर भाजपा यह सीट हार गई तो पूरे देश में यह संदेश जाएगा कि कृषि बिलों से नाराज़ किसानों ने बरोदा उप-चुनाव में भाजपा को हराकर न सिर्फ सरकार के खिलाफ फतवा दिया है बल्कि कृषि बिलों के खिलाफ भी इसे फतवा माना जाएगा। इसी के चलते आजकल सरकार व भाजपा संगठन का पूरा ध्यान बरोदा सीट पर लगा हुआ है और बरोदा उप-चुनाव जीतने के लिए हर तरह की तिकड़म लगाई जा रही है। वैसे भाजपा ने आज तक कभी भी बरोदा सीट नहीं जीती है और बरोदा पूरी तरह से ग्रामीण सीट होने के कारण भाजपा इस सीट के उप-चुनाव को लेकर अधिक गंभीर है। प्रदेश में कृषि बिलों को लेकर चल रहे किसानों व किसान संगठनों के विरोध का बरोदा सीट पर कितना असर पड़ेगा, यह भी इस सीट के चुनाव नतीजे से ही साफ हो पाएगा। 
सुरजेवाला को मिली एक और जिम्मेदारी
हरियाणा से पूर्व मंत्री रहे रणदीप सुरजेवाला आजकल कांग्रेस आलाकमान की आंख का तारा बने हुए हैं। रणदीप सुरजेवाला इस समय न सिर्फ कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और कांग्रेस वर्किंग कमेटी के स्थायी सदस्य हैं बल्कि वह कर्नाटक जैसे महत्वपूर्ण राज्य के प्रभारी भी हैं। रणदीप सुरजेवाला को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सलाहकारों की टीम में भी जगह मिली हुई है और उन्हें कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता व मीडिया प्रकोष्ठ के प्रमुख की जिम्मेदारी भी दी गई है। अब वह बिहार उपचुनाव के लिए पार्टी के स्टार प्रचारक के साथ-साथ चुनाव समन्वय व प्रबंधन कमेटी के भी चेयरमैन बनाए गए हैं।  
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