कला जगत में नया अध्याय रचने वाले एंडी वारहोल

आज से हजारों साल पहले तक के इतिहास पर नजर डालें तो यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए चित्रकला का सहारा लिया था। हालांकि इन गुफाओं के चित्रों की बात करें तो यहां आकृतियां हैं, जिसे हम मूर्त कला मानते हैं। आशय यह कि इन गुफाओं के चित्र अमूर्त कला से बहुत अलग हैं किन्तु आज भी लोकप्रिय हैं। इन गुफा चित्रों से लेकर आज की वर्तमान कला परिदृश्य तक आते-आते कला और कलाकृतियों की यह लम्बी यात्रा कई जटिल पड़ावों से होकर गुजरी है। इस यात्रा में समय समय पर कई कलाकारों ने विभिन्न शैलीगत विकल्पों को अपनाया, जिसने इस कला यात्रा में निरंतरता बनाये रखी। बदलते दौर के साथ-साथ यह यात्रा यहां तक आ पहुंची कि अब किसी भी सफल कलाकार के लिए उसकी अपनी निजी शैली का होना अनिवार्य तत्व बन गया है। पिछली सदी के छठे दशक को याद करें तो अमरीका में जिस पॉप कल्चर का जन्म हुआ, उसे अब बीता हुआ कल मान लिया गया है। संगीत से लेकर फैशन की दुनिया में इसकी लोकप्रियता में खासी कमी आई है। लेकिन कला की दुनिया में अगर ऐसा नहीं हो पाया तो उसका श्रेय जाता है कलाकार एंडी वारहोल को। इस कलाकार यानी एंडी वारहोल ने न केवल पॉप आर्ट के युग को परिभाषित किया है बल्कि कहना चाहिए कि पूरी तरह से एक युग का निर्माण किया है। एंडी के जीवन के सूत्रवाक्य की बात करें तो उन्होंने लिखा- ‘पैसा कमाना कला है और काम करना भी कला है और अच्छा व्यवसाय करना सबसे अच्छी कला है।’ प्रत्येक कलाकार अपने जीवन में घटी घटनाओं से प्रेरणा लेता है या यूं कहा जाए कि कलाकार की रचना में उसका बीता हुआ कल प्रतिबिंबित होता है। ऐसा ही कुछ इस कलाकार के साथ भी हुआ, स्लोवाकिया के प्रवासियों के घर जन्मे, बालक वारहोल का बचपन सामान्य से बहुत दूर था। उनके पिता, रूसी वारहोल एक मेहनतकश थे, वहीं उनकी मां जूलिया वारहोल कढ़ाई का काम करती थीं। धार्मिक रूप से उनका परिवार एक ऐसा बाइजेंटाइन कैथोलिक था, जिन्हें अपनी स्लोवाकियाई संस्कृति और विरासत से गहरा जुड़ाव था। आठ साल की उम्र में वारहोल तंत्रिकातंत्र से जुडी एक ऐसी बीमारी से ग्रसित हुए जिसके कारण उन्हें कई महीनों तक बिस्तर पर रहना पड़ा। बीमारी की इसी अवस्था में उनकी मां जो स्वयं एक कलाकार भी थी, ने उनका परिचय रेखांकनों की दुनिया से कराया। देखते ही देखते रेखाओं से खेलने का यह क्रम वारहोल के बचपन का पसंदीदा शगल बन गया। वारहोल फिल्मों के भी शौकीन थे इसलिए जब मां ने उन्हें नौ साल की उम्र में एक कैमरा खरीद कर दिया, तो उन्होंने फोटोग्राफी भी करनी शुरू कर दी। यही नहीं अपने घर के तहखाने में इसके लिए एक डार्करूम भी तैयार कर लिया, जिसमें नैगेटिव डिवैल्प करना और प्रिंट निकालना जारी रखा। वारहोल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई होम्स एलिमेंटरी स्कूल में की और इसी क्रम में पिट्सबर्ग में कार्नेगी इंस्टीच्यूट (अब कार्नेगी म्यूजियम ऑफ आर्ट) में कला का अध्ययन भी करते रहे। हालांकि वारहोल के पिता ने अपने बेटे की कलात्मक प्रतिभा को पहचान लिया था, इसलिए उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले यह आदेश दिया कि उनके जीवन की बचत वारहोल के कॉलेज की शिक्षा के खर्च में लगाया जाये। उसी वर्ष वारहोल ने शेंले हाईस्कूल में दाखिला लिया, जहां से स्नातक के बाद 1945 में कला अध्ययन के लिए कार्नेगी इंस्टीच्यूट फॉर टैक्नोलॉजी (अब कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी) में दाखिला लिया। इस दाखिले ने उनके कलात्मक विकास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन को चिह्नित किया; क्योंकि उन्होंने कला अध्ययन के लिए वाणिज्यिक कला यानी अप्लाइड आर्ट विषय चुना। हम जानते हैं कि वाणिज्यिक कला में वाणिज्यिक प्रचार और विज्ञापन से जुड़ी शिक्षा दी जाती है। सामान्य तौर पर वाणिज्यिक कला से जुड़े कलाकार समकालीन कला से अपने को दूर ही रखते हैं, लेकिन वारहोल इस मामले में कुछ अलग हटकर सामने आये।वारहोल ने अपनी इस वाणिज्यिक शिक्षा को समकालीन कला से जोड़कर, जो कुछ रचा, वह आज कला की दुनिया का एक नया अध्याय बन चुका है। जब उन्होंने कैंपस सूप के डिब्बे के माध्यम से अपनी कृतियों को दुनिया के सामने लाये। कला की दुनिया में यह नए सोच का पर्याय सा बन गया। इस कृति को रचने के लिए उन्होंने स्क्रीन प्रिंटिंग की उस तकनीक को अपनाया, जिसका प्रयोग व्यावसायिक कला के लिए सामान्य तौर पर किया जाता है। बताते चलें कि लेजर-जेट और ऑफसेट प्रिंटिंग जैसे अति-आधुनिक तकनीकों के आविष्कार से पहले बड़े पैमाने पर प्रिंटिंग जैसी जरूरतों के लिए स्क्रीन प्रिंटिंग सबसे प्रभावी और प्रचलित तरीका थी। इसी स्क्रीन प्रिंटिंग ने एंडी वारहोल की उस शैली को जन्म दिया, जो आगे चलकर उनकी पहचान बन गयी। इसका उपयोग उन्होंने अपनी कलाकृति को रचने में हमेशा किया, यही कारण था कि बाद में भी शायद ही किसी अन्य माध्यम का इस्तेमाल उन्होंने चित्र रचना के लिए किया। यह समझने के लिए कि वारहोल ने कला की दुनिया को किस प्रकार से प्रभावित किया और पॉप कला जैसी शैली को जन्म दिया।  उन्होंने चटख और गहरे रंगों में लोकप्रिय व्यक्तियों के जो व्यक्ति- चित्र बनाये, उनमें मर्लिन मुनरो, एलिजाबेथ टेलर, मिक जैगर और माओ त्से-तुंग के व्यक्ति चित्र शामिल हैं। इन चित्रों को मिली प्रसिद्धि का एक सुखद परिणाम यह रहा कि इसके बाद वारहोल को अन्य मशहूर हस्तियों से इस तरह के व्यक्तिचित्र बनाने का भारी आर्डर मिलना शुरू हो गया। उनकी एक कृति ‘म्पहीज म्सअपेमे’ को 2008 में मिली,100 मिलियन की कीमत ने इस चित्र को विश्व इतिहास में सबसे मूल्यवान चित्रों में से एक का दर्जा दिला दिया। वर्ष 1964 में वारहोल ने ‘ज्ीम थ्ंबजवतल’ नाम से अपने जिस आर्ट स्टूडियो की शुरुआत की वह न्यूयॉर्क की महत्वपूर्ण जगहों की सूची का हिस्सा हो गई। देखा जाये तो यह वह दौर था जब एंडी अपनी प्रसिद्धि और सफलता के शिखर पर आसीन हो चुके थे।लेकिन इस सफलता की कीमत उन्हें भी चुकानी पड़ी और वैलेरी जीन सोलानास नामक महिला ने 3 जून 1968 को उन पर कातिलाना हमला कर दिया। हालांकि वैलेरी गिरफ्तार कर ली गई और उसपर मुकद्दमा भी चला, दरअसल वह चाहती थी कि एंडी उसकी स्क्रिप्ट पर फिल्म निर्माण में उसकी अपेक्षित सहयोग करें। बहरहाल इस हमले में एंडी बच तो गए लेकिन उसके बाद उनके लिए आजीवन एक खास तरह का जैकेट पहनना अनिवार्य सा हो गया। 70 के दशक में, वारहोल ने मीडिया के अन्य माध्यमों में अपना सृजन जारी रखा। उन्होंने द फिलॉस्फी ऑफ  एंडी वारहोल और एक्सपोजर जैसी किताबें भी लिखीं। इसी क्रम में वारहोल ने वीडियो कला के साथ भी बड़े पैमाने पर प्रयोग किया और इस दौरान 60 से अधिक फिल्मों का निर्माण भी किया। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में ‘स्लीप’ शामिल है, जिसमें कवि जॉन गिओर्नो को छह घंटे के लिए सोते हुए दिखाया गया है और ‘खाना’ नाम से एक अन्य फिल्म जिसमें एक आदमी को 45 मिनट तक मशरूम खाते दिखाया गया है। वास्तव में यह सब उपभोक्तावादी और फटाफट वाली संस्कृति के प्रतीकात्मक विरोध का एक हिस्सा था। वैसे वारहोल ने मूर्तिकला और फोटोग्राफी में भी नए प्रयोग किये। इसके बाद 80 के दशक में उन्होंने टेलीविजन में कदम रखा, जहां कुछ कार्यक्रमों में एमटीवी की मेजबानी भी की। लगभग 58 साल की उम्र में 22 फरवरी 1987 को इस विलक्षण कलाकार की मृत्यु हो गयी। किन्तु जब भी कला की दुनिया में पॉप आर्ट व न्यू मीडिया आर्ट की चर्चा होगी एंडी वॉरहोल के जिक्र के बिना वह अधूरा ही रहेगी।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर