देश में सूचना अधिकार कानून की दुर्दशा क्यों ?

भारत में देश के लोगों को और लोकतंत्र को भी सशक्त बनाने के लिए नई सदी में जो कानून बने हैं, उनमें सबसे ऊपर सूचना के अधिकार कानून को रखा जाएगा। यह कानून सच में लोगों को ताकत देने वाला है। गलत काम करने वाले इससे कितना घबराते हैं, इसकी मिसाल यह है कि देश में पिछले 15 साल में सैकड़ों की संख्या में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं और उनकी हत्या हुई है, परन्तु अब हकीकत यह है कि पिछले कुछ बरसों में व्यवस्थित तरीके से इस कानून को कमजोर किया जा रहा है। कुछ समय पहले ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने पीएम केयर्स फंड का ब्यौरा आरटीआई के तहत जारी करने से इन्कार किया है। बहरहाल, यह स्थिति सिर्फ  केंद्र की नहीं है, राज्यों में भी ऐसे ही हालात हैं। देश के 29 राज्यों में सूचना आयोग हैं पर हकीकत यह है कि नौ राज्यों में यह आयोग बिना अध्यक्ष के काम कर रहा है। कई राज्यों में तो महीनों से मुख्य सूचना आयुक्त नहीं हैं।  केंद्रीय सूचना आयोग में भी मुख्य सूचना आयुक्त बिमल जुल्का अगस्त में रिटायर हो गए। उनकी जगह किसी की नियुक्ति नहीं हुई है। देश भर में सूचना आयोगों के सामने सवा दो लाख के करीब मामले लंबित हैं, जिनकी संख्या आने वाले दिनों में बढ़ने ही वाली है। 
डिसलाइक का रहस्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मिल रहे डिसलाइक का क्या रहस्य है? अचानक दो महीने पहले ऐसा क्या हुआ, जिसकी वजह से प्रधानमंत्री के वीडियोज को लाइक से ज्यादा डिसलाइक किया जाने लगा? काफी समय के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र को सम्बोधित किया। जैसे ही उनका संबोधन शुरू हुआ और भाजपा  के यू-ट्यूब चैनल पर लाइव हुआ, उसे डिसलाइक मिलने लगे। एक मिनट के अंदर 28 सौ लाइक थे और साढ़े चार हजार डिसलाइक हो गए। आनन-फानन में पार्टी ने नम्बर्स छिपा दिए। उनका 12 मिनट का भाषण खत्म हुआ तो भाजपा के यू-ट्यूब चैनल पर नहीं दिख रहा था कि कितने लोगों ने इसे लाइक किया और कितने लोगों ने डिसलाइक किया। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय, मोदी की अपनी साइट और पीआईबी की साइट पर लाइक्स ज्यादा थे। वहां लाइक्स ज्यादा थे तो दिख रहे थे। भाजपा की साइट पर नहीं दिख रहे थे। इसका मतलब है कि वहां डिसलाइक ज्यादा थे। इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या भाजपा का आई.टी. सेल ठीक काम नहीं कर रहा है? 
विकास की जगह ‘सुधार’
भारत में अगर किसी एक शब्द का सर्वाधिक मजाक बना है तो वह शब्द है ‘विकास’। छह साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास का वादा किया था। उसके बाद से इसका जितना मजाक बना है, वह ऐतिहासिक है। अभी बिहार चुनाव में एक रिपोर्टर का वीडियो : वायरल हो रहा है, जिसमें वह एक बुजुर्ग ग्रामीण से पूछता है : विकास आपके गांव में पहुंचा? बुजुर्ग का जवाब था, विकास! हमको नहीं पता है। हम बीमार थे। गांव से बाहर गए थे। बुजुर्ग का जवाब कोई तन्ज़ नहीं था। उन्होंने बहुत भोलेपन से यह बात कही थी, परंतु यह अपने आप विकास के दावे पर एक चोट हो गई। बहरहाल, सारे स्डैंट अप कॉमेडियन विकास को लेकर मजाक बना रहे हैं, व्यंग्य लिखे जा रहे हैं और कार्टून बनाए जा रहे हैं। इसीलिए ऐसा लग रहा है कि विकास की बजाय अब सुधार का नया शब्द चलन में आया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले सप्ताह मैसूर विश्व विद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए अपनी सरकार की ढेर सारी उपलब्धियां बताईं पर एक बार भी विकास शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने सिर्फ  सुधारों की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने बीते छह साल में जितने सुधार किए हैं, उतने सुधार कभी नहीं हुए। उन्होंने कृषि, शिक्षा, श्रम सबके सुधारों के बारे में बताया। सोचने वाली बात है कि बिना सुधार हुए ही जब इतना विकास हो गया है तो सुधार के बाद कितना विकास होगा!
सैंट्रल विस्टा की योजना
दिल्ली में सेंट्रल विस्टा का काम शुरू हो गया है। नया संसद भवन बनाया जा रहा है और उसके साथ साथ आस-पास की कई ऐतिहासिक इमारतों को तोड़ा भी जाएगा। हालांकि पुराने संसद भवन को बनाए रखना है। वहां संभवत: संसदीय संग्रहालय बनेगा  लेकिन उसके पास श्रम शक्ति भवन, ट्रांस्पोर्ट भवन और रक्षा भवन को तोड़ कर नई इमारतें बनाई जाएंगी। गौरतलब है कि सेंट्रल विस्टा के तहत राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट के बीच कई नई इमारतें बननी हैं, जिनमें सरकारी विभागों के कार्यालय होंगे। ट्रांसपोर्ट भवन की जगह जो बिल्ंिडग बनेगी, उसमें सांसदों के चेंबर होंगे। पुराने संसद भवन में मंत्रियों के लिए तो कमरा होता है लेकिन सांसदों के लिए कोई कमरा नहीं है। वे या तो संसद भवन स्थित पार्टियों के दफ्तर में या सेंट्रल हॉल मे बैठते हैं। नए संसद भवन में शायद सेंट्रल हॉल नहीं रहेगा। कोरोना वायरस के संकट के बीच इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार विपक्ष के निशाने पर है। विपक्ष का कहना है कि जब सारे प्रोजेक्ट रोक दिए गए हैं तो इसे क्यों नहीं स्थगित किया जा रहा है?
ठाकरे का केंद्र पर पलटवार
महाराष्ट्र में सरकार बनाने के बाद से ही केंद्र की मोदी सरकार, राज्यपाल और भाजपा के हमले झेल रहे मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तगड़ा पलटवार किया है। उद्धव ने फैसला लिया है कि अब सीबीआई को किसी भी मामले में जांच करने से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। उद्धव ठाकरे से पहले ऐसा ही फैसला पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, राजस्थान में अशोक गहलोत और छत्तीसगढ में भूपेश बघेल भी कर चुके हैं। आंध्र प्रदेश में जब चंद्रबाबू नायडू मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी ऐसा ही फैसला लिया था। कुछ दिन पहले ही ठाकरे सरकार ने एक और पलटवार करते हुए कहा था कि यदि बॉलीवुड के ड्रग्स मामले में भाजपा नेताओं के कनेक्शन की जांच नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने नहीं की तो मामले को मुंबई पुलिस को सौंप दिया जाएगा।