श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संयुक्त स्थली रामेश्वरम

रामेश्वरम प्रारंभ से श्रद्धालुओं की नगरी मानी जाती थी पर अब इसका विकास इस तरह से किया गया है कि पर्यटक भी खूब आनंद उठा सकें। यहां पर अपने देश के अतिरिक्त विदेशों से भी लाखों पर्यटक आते हैं। मंदिर तो मुख्य आकर्षण हैं ही, इसके अतिरिक्त अन्य कई आकर्षण केंद्र हैं जहां पर्यटक पूरा आनंद उठाते हैं। रामेश्वरम मंदिर के पास धनुषकोटि सागर स्नान का विशेष महत्त्व है।
रामेश्वरम तीनों मार्गों से पहुंचा जा सकता है। रेल मार्ग द्वारा आप चेन्नई और मदुराई से यहां पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग द्वारा चेन्नई और त्रिवेन्द्रम से पर्यटक बसें यात्रियों को यहां तक लेकर आती हैं। वायु मार्ग द्वारा जाना हो तो त्रिवेन्द्रम और चेन्नई तक जाकर फिर टूरिस्ट बस की मदद से वहां पहुंचा जा सकता है।ठहरने के लिए यहां अनेक धर्मशालाएं, होटल, लॉज, गेस्ट हाउस आदि हैं। अपनी सुविधा और सामर्थ्य अनुसार यहां रहा जा सकता है। भारत के मुख्य तीर्थ स्थलों में रामेश्वरम का नाम प्रमुख है। इसे भारत का एक धाम माना जाता है। पहले रामेश्वरम भारत की भूमि से ज़ुड़ा हुआ था। माना जाता है कि किसी प्राकृतिक घटना के कारण इसका संबंध भारत से टूट गया और यह एक द्वीप में बदल गया। इस स्थान को रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग द्वीप या गंधमादन पर्वत भी कहा जाता है। यह द्वीप बंगाल की खाड़ी व अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग एक प्रमुख तीर्थ स्थल के साथ -साथ भारतीय शिल्पकला का एक खूबसूरत नमूना भी है। यह तीर्थ स्थल बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। नल तथा नील ने अपनी शिल्पकला में महारत के कारण यहां 100 योजन लम्बा तथा 10 योजन चौड़ा पुल बनाया था। इस पुल की सहायता से श्री राम चंद्र जी सीता को रावण से छ़ुड़ाने के लिए वानर सेना के साथ गए थे। सागर के किनारे पर भगवान विष्णु के महाशंख के आकार की तरह एक द्वीप है जिसे शंखद्वीप भी कहते हैं। 
रामेश्वरम मंदिर : रामेश्वरम का मंदिर बहुत विशाल है जो लगभग 1000 फुट लम्बा, 650 फुट चौड़ा और 125 फुट ऊंचा है। इस मंदिर के केंद्र में श्री राम जी द्वारा स्थापित बहुत सुंदर ज्योतिर्लिंग है जिसकी प्रतिदिन संगीत समारोह के साथ पूजा अर्चना की जाती है।
 प्रतिदिन गंगाजल ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाया जाता है जिसकी व्यवस्था हरिद्वार से की जाती है। यह मंदिर समुद्र तट पर बने होने के कारण इसके चारों ओर ऊंची प्राकृतिक चारदिवारी बनी हुई है। पूर्व और पश्चिम की ओर दस और सात मंजिले गोपुरम हैं जिन पर कई देवी देवताओं, पशुओं व पक्षियों की मूर्तियां बनी हैं जो पत्थर पर खोद कर बनाई गई हैं। ऊंचाई पर बनी होने के कारण ये मूर्तियां दूर से दिखाई देती हैं। सफेद रंग के नंदी जी जो लगभग चार मीटर ऊंचे हैं, उनकी प्रतिमा बहुत सुंदर लगती है।इस मंदिर का परिक्र मा पथ संसार का सबसे बढ़ा परिक्र मा पथ है जो लगभग बारह सौ मीटर का है। मंदिर के आंतरिक दरवाज़े के सामने एक सुंदर ध्वज स्तंभ है जो सोने से मढ़ा हुआ है।इसके अतिरिक्त अन्य मुख्य स्थल भी दर्शनीय हैं। धनुषकोटि मंदिर से 20 किलोमीटर दूर है और मोटर बोट द्वारा वहां पहुंचा जा सकता है। यहां पर पिंडदान कराया जाता है। यही पवित्र रामसेतु स्थान है। 21 तीर्थ मुख्य मंदिर के परिक्रमा मार्ग में कुएं के रूप में स्थित हैं। (उर्वशी)